सार
MCD Election: राजनीतिक आलोचक सुधीर कुमार का कहना है कि नगर निगमों के एकीकरण का निर्णय राजनीतिक कदम नहीं था। यह बहुत सोच-विचार कर दिल्ली की जनता की बेहतरी के लिए लिया गया निर्णय है। नगर निगम के कर्मचारियों के वेतन पर जिस तरह दिल्ली सरकार और निगमों में टकराव होता रहा है, अब उस तरह की स्थिति नहीं होगी…
अप्रैल माह में जब तीनों नगर निगमों के एकीकरण के आधार पर एमसीडी चुनाव को टाला गया था, आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर हार की डर से चुनाव से ‘भागने’ का आरोप लगाया था। उस समय की परिस्थितियों में आम आदमी पार्टी का यह कदम राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप होते हुए भी पूरी तरह गलत भी नहीं लग रहा था। लेकिन आज भाजपा न केवल निगम चुनावों के लिए तैयार है, बल्कि उसे इस बात का भरोसा भी है कि वह निगम की सत्ता में ‘जीत का चौका’ लगाने में कामयाब रहेगी। छह महीने के अंदर भाजपा में यह आत्मविश्वास कैसे आया? आज की परिस्थिति में दिल्ली नगर निगम की चुनावी पिच पर कौन दल किस स्थिति में है?
राजनीतिक आलोचक सुधीर कुमार ने अमर उजाला को बताया कि नगर निगमों के एकीकरण का निर्णय राजनीतिक कदम नहीं था। यह बहुत सोच-विचार कर दिल्ली की जनता की बेहतरी के लिए लिया गया निर्णय है। नगर निगम के कर्मचारियों के वेतन पर जिस तरह दिल्ली सरकार और निगमों में टकराव होता रहा है, अब उस तरह की स्थिति नहीं होगी। दक्षिणी नगर निगम के अतिरिक्त बजट से सभी कर्मचारियों के भुगतान की आसान व्यवस्था हो सकेगी।
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि आप उस समय राजनीतिक रूप से बेहद ताकतवर थी। पार्टी ने इसी साल फरवरी में पंजाब में एतिहासिक सफलता (कुल 117 में 92 सीटें) हासिल की थी। इससे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता काफी ऊंची थी। यदि उस समय चुनाव होते तो दिल्ली नगर निगमों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता था।
बदल गया खेल
लेकिन छह महीने में ही दिल्ली की राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। अरविंद केजरीवाल के एक कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को हिंदुओं के देवी-देवताओं का अपमान करने के आरोप में इस्तीफ़ा देना पड़ा है, दूसरे कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन लगभग छह महीनों से जेल में हैं। केजरीवाल के दाहिने हाथ मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले में गंभीर लापरवाही करने के आरोप हैं और कभी भी उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। इसी तरह कई अन्य आम आदमी पार्टी नेताओं पर गंभीर मामले सामने आये हैं। इससे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की छवि पर गहरा असर पड़ा है। उसे निगम चुनावों में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पंजाब मॉडल पर भी सवाल
अरविंद केजरीवाल ने पंजाब को एक मॉडल स्टेट के रूप में दिखाने की कोशिश की है। लेकिन छह महीने के अंदर ही पंजाब की भगवंत मान सरकार के एक मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफ़ा देना पड़ा है। कुछ अन्य मंत्रियों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। राज्य में कई सनसनीखेज मर्डर हुए हैं और कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई हैं। राज्य में अलगाववादी खालिस्तानी आतंकवाद के दोबारा सर उठाने का खतरा मंडराता दिखाई पड़ रहा है। इससे केजरीवाल के उस दावे की भी हवा निकल गई है, जिसमें वे कहते थे कि यदि उनके हाथ में (दिल्ली में) पुलिस की ताकत होती तो वे प्रशासनिक व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करके दिखा देते।
बड़े दावों पर खरा न उतरने का नुकसान
सुधीर कुमार ने कहा कि कई बार राजनीतिक दल बहुत बढ़चढ़ कर दावे कर देते हैं, फौरी तौर पर उन्हें इसका लाभ भी मिल जाता है, लेकिन बाद में उन्हें इसका बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ता है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाब के पहले बहुत बड़े वायदे किये थे। लेकिन वे उन्हें पूरा नहीं कर पाये, 2022 के चुनाव में कांग्रेस को जो बड़ी पराजय देखनी पड़ी, उसमें अमरिंदर सरकार का अपने वादों पर खरा न उतर पाना भी एक बड़ी वजह थी।
उन्होंने कहा कि इसी तरह अरविंद केजरीवाल ने भी लोगों से बहुत बड़े-बड़े वादे किए थे। आंदोलन से निकलने के कारण लोग उनकी बातों का भरोसा करते थे। यही कारण है कि लोगों ने उन्हें एतिहासिक समर्थन दिया। लेकिन समय के साथ-साथ वे अपने दावों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं, यही कारण है कि अब उनकी बात में वह अपील नहीं दिखाई पड़ रही है, जो 2015 या 2017 में दिखाई देती थी। जनता भी देख रही है कि अब तक दिल्ली के प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली को जिम्मेदार ठहराते आ रहे केजरीवाल अब अचानक उसे राष्ट्रीय समस्या बताने लगे हैं।
अब जबकि उनके हाथ में पंजाब की भी सत्ता आ चुकी है, वे पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगाकर अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित कर सकते थे, वे अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। इससे राजनीतिक बयानबाजी तो की जा सकती है, लेकिन जनता के दिल में जगह नहीं बनाई जा सकती। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल की इस कथनी-करनी के अंतर का नुकसान आम आदमी पार्टी को दिल्ली और गुजरात में उठाना पड़ सकता है। यदि केजरीवाल अपनी उसी तरह की विश्वसनीयता दोबारा हासिल करनी है तो उन्हें ज्यादा व्यावहारिक राजनीति करनी होगी।
गुजरात-दिल्ली में बंटी केजरीवाल की ताकत
कांग्रेस और भाजपा के पास कार्यकर्ताओं और नेताओं की बड़ी फ़ौज है। यही कारण है कि ये दल एक साथ कई राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ने की ताकत रखते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी हो या कोई अन्य क्षेत्रीय दल, कार्यकर्ताओं और पैसे की सीमित उपलब्धता के कारण कई राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं लड़ सकते। चूंकि, गुजरात और दिल्ली नगर निगम चुनाव एक ही समय पर आयोजित हो रहे हैं, भाजपा दोनों ही चुनावों को बेहतर ढंग से लड़ने में सक्षम होगी, जबकि आम आदमी पार्टी इस मोर्चे पर कुछ कमजोर पड़ सकती है। उसे इसका राजनीतिक नुकसान हो सकता है।
केजरीवाल के लिए एमसीडी महत्त्वपूर्ण
अरविंद केजरीवाल दिल्ली नगर निगम चुनाव को हल्के में नहीं ले सकते। इसमें आम आदमी पार्टी की हार हुई, तो भाजपा इसे दिल्ली की जनता पर केजरीवाल की पकड़ के खत्म होने के तौर पर प्रचारित करेगी। वहीं वे गुजरात में असफल हुए तो पार्टी की आगे की संभावनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। शायद यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल स्वयं को गुजरात में फोकस रखने की रणनीति अपना रहे हैं, जबकि दिल्ली नगर निगम को उन्होंने मनीष सिसोदिया और विधायकों पर छोड़ दिया है। इस स्थिति में आम आदमी पार्टी को नुकसान और भाजपा को लाभ हो सकता है।
केजरीवाल ने नहीं निभाया कोई वादा
भाजपा सांसद रमेश बिधूडी ने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल हर बार नये वादे करते हैं, लेकिन वे अब तक किसी भी वादे पर खरे नहीं उतर सके हैं। भाजपा सांसद ने कहा कि दिल्ली में सरकार बनाते समय अरविंद केजरीवाल ने 70 वादे किए थे। इसके लिए लिखित घोषणा पत्र जारी किया गया था, लेकिन इनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया गया। यही कारण है कि जनता के बीच अब उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं रह गई है।
उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली नगर निगम के लिए सभी गरीबों को नये मकान देने का वादा करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3000 से ज्यादा गरीबों को मकान सौंपे हैं। हम बाकी गरीबों को भी नए मकान उपलब्ध करायेंगे। उन्होंने कहा कि इसके आलावा दिल्ली के लोगों को साफ़ पानी और शुद्ध वातावरण उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है और हम इस पर खरे उतरेंगे।
विस्तार
अप्रैल माह में जब तीनों नगर निगमों के एकीकरण के आधार पर एमसीडी चुनाव को टाला गया था, आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर हार की डर से चुनाव से ‘भागने’ का आरोप लगाया था। उस समय की परिस्थितियों में आम आदमी पार्टी का यह कदम राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप होते हुए भी पूरी तरह गलत भी नहीं लग रहा था। लेकिन आज भाजपा न केवल निगम चुनावों के लिए तैयार है, बल्कि उसे इस बात का भरोसा भी है कि वह निगम की सत्ता में ‘जीत का चौका’ लगाने में कामयाब रहेगी। छह महीने के अंदर भाजपा में यह आत्मविश्वास कैसे आया? आज की परिस्थिति में दिल्ली नगर निगम की चुनावी पिच पर कौन दल किस स्थिति में है?
राजनीतिक आलोचक सुधीर कुमार ने अमर उजाला को बताया कि नगर निगमों के एकीकरण का निर्णय राजनीतिक कदम नहीं था। यह बहुत सोच-विचार कर दिल्ली की जनता की बेहतरी के लिए लिया गया निर्णय है। नगर निगम के कर्मचारियों के वेतन पर जिस तरह दिल्ली सरकार और निगमों में टकराव होता रहा है, अब उस तरह की स्थिति नहीं होगी। दक्षिणी नगर निगम के अतिरिक्त बजट से सभी कर्मचारियों के भुगतान की आसान व्यवस्था हो सकेगी।
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि आप उस समय राजनीतिक रूप से बेहद ताकतवर थी। पार्टी ने इसी साल फरवरी में पंजाब में एतिहासिक सफलता (कुल 117 में 92 सीटें) हासिल की थी। इससे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता काफी ऊंची थी। यदि उस समय चुनाव होते तो दिल्ली नगर निगमों में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता था।
बदल गया खेल
लेकिन छह महीने में ही दिल्ली की राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। अरविंद केजरीवाल के एक कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को हिंदुओं के देवी-देवताओं का अपमान करने के आरोप में इस्तीफ़ा देना पड़ा है, दूसरे कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन लगभग छह महीनों से जेल में हैं। केजरीवाल के दाहिने हाथ मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले में गंभीर लापरवाही करने के आरोप हैं और कभी भी उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। इसी तरह कई अन्य आम आदमी पार्टी नेताओं पर गंभीर मामले सामने आये हैं। इससे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की छवि पर गहरा असर पड़ा है। उसे निगम चुनावों में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पंजाब मॉडल पर भी सवाल
अरविंद केजरीवाल ने पंजाब को एक मॉडल स्टेट के रूप में दिखाने की कोशिश की है। लेकिन छह महीने के अंदर ही पंजाब की भगवंत मान सरकार के एक मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफ़ा देना पड़ा है। कुछ अन्य मंत्रियों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। राज्य में कई सनसनीखेज मर्डर हुए हैं और कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई हैं। राज्य में अलगाववादी खालिस्तानी आतंकवाद के दोबारा सर उठाने का खतरा मंडराता दिखाई पड़ रहा है। इससे केजरीवाल के उस दावे की भी हवा निकल गई है, जिसमें वे कहते थे कि यदि उनके हाथ में (दिल्ली में) पुलिस की ताकत होती तो वे प्रशासनिक व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करके दिखा देते।
बड़े दावों पर खरा न उतरने का नुकसान
सुधीर कुमार ने कहा कि कई बार राजनीतिक दल बहुत बढ़चढ़ कर दावे कर देते हैं, फौरी तौर पर उन्हें इसका लाभ भी मिल जाता है, लेकिन बाद में उन्हें इसका बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ता है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाब के पहले बहुत बड़े वायदे किये थे। लेकिन वे उन्हें पूरा नहीं कर पाये, 2022 के चुनाव में कांग्रेस को जो बड़ी पराजय देखनी पड़ी, उसमें अमरिंदर सरकार का अपने वादों पर खरा न उतर पाना भी एक बड़ी वजह थी।
उन्होंने कहा कि इसी तरह अरविंद केजरीवाल ने भी लोगों से बहुत बड़े-बड़े वादे किए थे। आंदोलन से निकलने के कारण लोग उनकी बातों का भरोसा करते थे। यही कारण है कि लोगों ने उन्हें एतिहासिक समर्थन दिया। लेकिन समय के साथ-साथ वे अपने दावों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं, यही कारण है कि अब उनकी बात में वह अपील नहीं दिखाई पड़ रही है, जो 2015 या 2017 में दिखाई देती थी। जनता भी देख रही है कि अब तक दिल्ली के प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली को जिम्मेदार ठहराते आ रहे केजरीवाल अब अचानक उसे राष्ट्रीय समस्या बताने लगे हैं।
अब जबकि उनके हाथ में पंजाब की भी सत्ता आ चुकी है, वे पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगाकर अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित कर सकते थे, वे अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। इससे राजनीतिक बयानबाजी तो की जा सकती है, लेकिन जनता के दिल में जगह नहीं बनाई जा सकती। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल की इस कथनी-करनी के अंतर का नुकसान आम आदमी पार्टी को दिल्ली और गुजरात में उठाना पड़ सकता है। यदि केजरीवाल अपनी उसी तरह की विश्वसनीयता दोबारा हासिल करनी है तो उन्हें ज्यादा व्यावहारिक राजनीति करनी होगी।
गुजरात-दिल्ली में बंटी केजरीवाल की ताकत
कांग्रेस और भाजपा के पास कार्यकर्ताओं और नेताओं की बड़ी फ़ौज है। यही कारण है कि ये दल एक साथ कई राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ने की ताकत रखते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी हो या कोई अन्य क्षेत्रीय दल, कार्यकर्ताओं और पैसे की सीमित उपलब्धता के कारण कई राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं लड़ सकते। चूंकि, गुजरात और दिल्ली नगर निगम चुनाव एक ही समय पर आयोजित हो रहे हैं, भाजपा दोनों ही चुनावों को बेहतर ढंग से लड़ने में सक्षम होगी, जबकि आम आदमी पार्टी इस मोर्चे पर कुछ कमजोर पड़ सकती है। उसे इसका राजनीतिक नुकसान हो सकता है।
केजरीवाल के लिए एमसीडी महत्त्वपूर्ण
अरविंद केजरीवाल दिल्ली नगर निगम चुनाव को हल्के में नहीं ले सकते। इसमें आम आदमी पार्टी की हार हुई, तो भाजपा इसे दिल्ली की जनता पर केजरीवाल की पकड़ के खत्म होने के तौर पर प्रचारित करेगी। वहीं वे गुजरात में असफल हुए तो पार्टी की आगे की संभावनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। शायद यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल स्वयं को गुजरात में फोकस रखने की रणनीति अपना रहे हैं, जबकि दिल्ली नगर निगम को उन्होंने मनीष सिसोदिया और विधायकों पर छोड़ दिया है। इस स्थिति में आम आदमी पार्टी को नुकसान और भाजपा को लाभ हो सकता है।
केजरीवाल ने नहीं निभाया कोई वादा
भाजपा सांसद रमेश बिधूडी ने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल हर बार नये वादे करते हैं, लेकिन वे अब तक किसी भी वादे पर खरे नहीं उतर सके हैं। भाजपा सांसद ने कहा कि दिल्ली में सरकार बनाते समय अरविंद केजरीवाल ने 70 वादे किए थे। इसके लिए लिखित घोषणा पत्र जारी किया गया था, लेकिन इनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया गया। यही कारण है कि जनता के बीच अब उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं रह गई है।
उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली नगर निगम के लिए सभी गरीबों को नये मकान देने का वादा करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3000 से ज्यादा गरीबों को मकान सौंपे हैं। हम बाकी गरीबों को भी नए मकान उपलब्ध करायेंगे। उन्होंने कहा कि इसके आलावा दिल्ली के लोगों को साफ़ पानी और शुद्ध वातावरण उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है और हम इस पर खरे उतरेंगे।
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