भारत और चीन के बीच पिछले 29 महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध जारी है. भारत लगातार कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए आवश्यक हैं.
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भारत में चीन की घुसपैठ कोई नई बात नहीं है. चीन की रग-रग से भारत वाकिफ है और यह सीमा पर ड्रैगन की बुरी नीयत का ही नतीजा है कि दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं. खासकर जून 2020 में गलवान संघर्ष के बाद से पिछले 29 महीनों में चीन के प्रति भारत ने कई मौकों पर कड़ा रुख इख्तियार किया है. चीन की ‘कुनीति’ से पूरी दुनिया वाकिफ है. अब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक स्टडी ने भी प्रमाणित कर दिया है कि भारत में चीनी घुसपैठ आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं.
इस स्टडी के अनुसार, अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा हैं. बता दें कि भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर सीमा विवाद जारी है. भारत के अरुणाचल प्रदेश को चीन, दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत इसका विरोध करता है. अक्साई चिन लद्दाख का बड़ा इलाका है जो इस समय चीन के कब्जे में है.
“हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तनाव: भारत में चीनी सीमा अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण” विषय पर नीदरलैंड में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्फ्ट और नीदरलैंड डिफेंस एकेडमी ने यह अध्ययन किया है. उन्होंने पिछले 15 साल के मौलिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण किया, जिसमें चीन की विस्तारवादी नीति के बारे में काफी कुछ पता चला है. नेचर ह्यूमनिटीज और सोशल साइंस कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित रिसर्च स्टडी में सुब्रमण्यम और उनके सहयोगियों ने भारत के चीन में घुसपैठ की आशंकाओं पर अध्ययन किया है.
हर साल औसतन 341 बार घुसपैठ!
भारत सरकार के 2019 के आंकड़ों के अनुसार चीन की सेना ने 2016 से 2018 के बीच 1,025 बार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की. तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने नवंबर 2019 में लोकसभा को बताया था कि चीन की सेना ने 2016 में 273 बार घुसपैठ की जो 2017 में बढ़कर 426 हो गईं. 2018 में इस तरह की घटनाओं की संख्या 326 रही. तीन साल में 1,025 बार घुसपैठ का औसत निकालें तो चीन ने हर साल 341 बार घुसपैठ किया है. हालांकि 15 साल के आंकड़ों के आधार पर अध्ययनकर्ताओं ने प्रत्येक वर्ष घुसपैठ की औसतन 7.8 घटनाएं देखीं. भारत सरकार का आकलन इससे बहुत अधिक है.
चीन के नापाक इरादे
गुरुवार को जारी अध्ययन में कहा गया, हम देखते हैं कि संघर्ष को दो स्वतंत्र संघर्षों- पश्चिम और पूर्व में अलग-अलग किया जा सकता है जो अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख विवादित इलाकों के इर्दगिर्द है. हमारा निष्कर्ष है कि पश्चिम में चीनी अतिक्रमण रणनीतिक रूप से नियोजित हैं जिनका उद्देश्य स्थायी नियंत्रण पाना है, या कम से कम विवादित क्षेत्रों की स्पष्ट यथास्थिति बनाकर रखना है.
अध्ययन करने वाले दल ने घुसपैठ (इन्कर्जन) को भारत के क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्य इलाकों में सीमा के आसपास चीनी सैनिकों की पैदल या वाहनों से किसी तरह की गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है. उन्होंने एक मानचित्र पर 13 ऐसे स्थान चिह्नित किए हैं जहां बार-बार घुसपैठ होती है.
गलती से नहीं, जानबूझ कर घुसपैठ
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के अनुसार, अध्ययनकर्ताओं ने भारत में 2006 से 2020 तक चीनी घुसपैठ की घटनाओं के बारे में नये आंकड़ों को संग्रहित कर इनका विश्लेषण सांख्यिकीय पद्धतियों से किया. उन्होंने कहा कि संघर्ष को दो क्षेत्रों- पश्चिम या मध्य (अक्साई चिन क्षेत्र) और पूर्व (अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र) में बांटा जा सकता है.
भारत की पश्चिमी और मध्य सीमाओं पर चीनी घुसपैठ स्वतंत्र और आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं जो गलती से हो जाती हों. अनुसंधानकर्ताओं ने देखा कि समय के साथ आमतौर पर घुसपैठ की संख्या बढ़ रही है, वहीं वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पूर्व और मध्य क्षेत्रों में संघर्ष समन्वित विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा हैं.
अक्साई चिन को विकसित करना चाहता है चीन
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सुब्रह्मण्यम और नॉर्थवेस्टर्न के मैककॉर्मिक स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर वाल्टर पी मर्फी ने कहा कि पश्चिम और मध्य में हुई घुसपैठ की संख्या का समय के साथ अध्ययन करके, सांख्यिकीय रूप से यह स्पष्ट हो गया कि ये घुसपैठ आकस्मिक नहीं हैं. इनके अचानक होने की संभावना बहुत कम है, जो हमें बताती है कि यह एक समन्वित प्रयास है.
सुब्रह्मण्यम ने कहा, पश्चिमी क्षेत्र में अधिक घुसपैठ होने की बात आश्चर्यजनक नहीं है. अक्साई चिन एक रणनीतिक क्षेत्र है जिसे चीन विकसित करना चाहता है, इसलिए यह उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह चीन के और तिब्बत और शिनजियांग के चीनी स्वायत्त क्षेत्रों के बीच एक महत्वपूर्ण मार्ग है.
गलवान संघर्ष ने बढ़ाया गतिरोध
अध्ययन में जून 2020 में गलवान संघर्ष का उल्लेख किया गया है जिसमें 20 भारतीय जवानों की मौत हो गई थी. इसमें चीन के सैनिक भी मारे गये थे, जिनकी संख्या अज्ञात है. रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की खबरें अब रोजाना की बात हो गई है. भारत और चीन के बीच पिछले 29 महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध जारी है. भारत लगातार कहता रहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए आवश्यक हैं.
अन्य देशों से संबंधों का भी असर
स्टडी के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है. क्षेत्र के सैन्यीकरण का नकारात्मक पारिस्थितिकीय असर है. अध्ययन में कहा गया है कि देश केवल अपने से जुड़ी कार्रवाइयों पर प्रतिक्रिया नहीं देते, बल्कि अपने मित्र गठबंधनों और प्रतिद्वंद्वी देशों के समूहों से जुड़ी कार्रवाइयों पर भी सक्रियता दिखाते हैं.
इसमें कहा गया, क्वाड में भारत की भागीदारी, अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संवाद, चीन-भारत सीमा पर चीनी गतिविधि के लिए ट्रिगर के रूप में काम कर सकता है. दूसरी ओर, चीन पाकिस्तान के साथ सहयोगात्मक गतिविधियों में शामिल है, और अफगानिस्तान में पश्चिमी शक्तियों के वापस होने के बाद जो शून्य बन गया है, उसमें जगह बनाने के लिए तैयार है.
भारत के पास एक विकल्प ये भी
अध्ययन में कहा गया है कि भारत और चीन लगातार उच्च सतर्कता बरत रहे हैं और इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि निकट भविष्य में इस स्थिति में सुधार होगा. लेकिन संघर्ष का समाधान अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, विश्व अर्थव्यवस्था और हिमालय के क्षेत्र में विशिष्ट पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए अत्यंत लाभकारी होगा.
चीन की विदेश नीति तेजी से आक्रामक हो गई है, वह ताइवान के आसपास सैन्य अभ्यास बढ़ा रहा है और दक्षिण चीन सागर में उपस्थिति बढ़ा रहा है. चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने एक साझेदारी की है और भारत के लिए एक विकल्प है कि वह खुद को इन तीनों देशों के साथ संयोजित करे.
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