किन सीटों पर है सेब उत्पादकों का प्रभाव?
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में सेब काफी मायने रखता है. सेब में इतनी ताकत है कि यह सरकार को भी गिरा सकता है. अब हम आपको थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं. इस पहाड़ी राज्य ने 1990 में किसान आंदोलन को देखा था, उस समय सेब उत्पादक किसान तत्कालीन बीजेपी सरकार से इस फसल की एमएसपी तय करने की मांग कर रहे थे. तब प्रदेश के सीएम शांता कुमार थे. उस समय दौरान प्रदेश के सेब उत्पादक क्षेत्रों में इतना विरोध बढ़ गया था कि शिमला में उत्तेजित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सेना को फ्लैग मार्च करना पड़ा था.
22 जुलाई 1990 को जब कोटगढ़ में सैकड़ों किसान प्रदर्शन कर रहे थे तब पुलिस ने इन पर ओपन फायरिंग की थी, जिसमें तीन किसानों की मौत हो गई थी. इसके बाद से सरकार के खिलाफ किसानों का गुस्सा और ज्यादा भड़क गया. जिसका परिणाम चुनाव में देखने को मिला.
सेब उत्पादकों के 28 संगठनों ने इसी साल 5 अगस्त को शिमला में एक विरोध रैली की थी, जिसमें उनकी कटुता झलकी थी. रैली में उन्होंने सरकार पर अपनी मांगों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था.
सेब उत्पादकों के असंतोष का सीधा असर शिमला, ठियोग, जुब्बल और कोटखाई, किन्नौर, आनी, रामपुर, बंजार और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिल सकता है. ओल्ड हिमाचल में सेब उत्पादक ज्यादा असर डालते हैं.
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