भारत से करीबी रिश्ता ही बनाना विकल्प
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन, जो बाइडेन प्रशासन की शीर्ष आर्थिक राजनयिक हैं, उन्होंने तीव्र वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के माहौल में भारत की यात्रा पर हैं और नई दिल्ली की यात्रा के दौरान शुक्रवार को उन्होंने भारत को व्यक्तिगत तौर पर यह संदेश दिया है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की वजह से उपजे खाद्य और ऊर्जा संकट, तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि और चीनी उत्पादों पर अमेरिका की निर्भरता के बारे में बढ़ती चिंताओं ने अमेरिका को वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को फिर से नया आकार देने की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए बाध्य कर दिया है, ताकि अमेरिका के सहयोगी देश, अपनी अर्थव्यवस्थाओं को शक्ति प्रदान करने वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिए किसी और दूसरे देश पर निर्भर ना रहें।
जियो-पॉलिटिक्स में अहम है भारत
भारत अक्सर संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस के बीच बढ़ते जियो-पॉलिटिकल टकराव के बीच में रहता आया है। और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह भारत का रूस के साथ भी काफी गहरा संबंध होना है। वहीं, बाइडेन प्रशासन ने आखिरकार इस बात को मानते हुए अमेरिका को भारत का करीबी सहयोगी बनाने की बात के लिए हामी भर दी है। अमेरिका ने अब जाकर ये साफ कर दिया है, कि वह चाहता है कि भारत, अमेरिका के आर्थिक सहयोगियों की कक्षा में हो। शुक्रवार को नई दिल्ली के बाहरी इलाके में माइक्रोसॉफ्ट के रिसर्च एंड डेवलपमेंट कैम्पस के दौरे के बाद, येलन ने उन देशों से दूर जाने के मामले को रेखांकित किया, जो अमेरिका की सप्लाई चेन को अस्थिर कर सकते हैं और ऐसे देश जो मानवता का उल्लंघन करते हुए मैन्यूफैक्चरिंक को बढ़ावा देते हैं। येलेन ने कहा कि, “संयुक्त राज्य अमेरिका आपूर्ति श्रृंखला के लिए भू-राजनीतिक और सिक्योरिटी थ्रेट्स पेश करने वाले देशों से दूर, वाणिज्य में विविधता लाने के लिए ‘फ्रेंड-शोरिंग’ नामक दृष्टिकोण अपना रहा है।” उन्होंने कहा कि, “ऐसा करने के लिए, हम भारत जैसे विश्वसनीय व्यापारिक भागीदारों के साथ सक्रिय रूप से आर्थिक एकीकरण को गहरा कर रहे हैं।”
भारत में कंपनियों का हो विकास
भारत में अमेरिकी कंपनी माइक्रसॉफ्ट का बढ़ता ऑपरेशंस भारत में अमेरिकी एकीकरण का बढ़िया उदाहरण है। येलेन ने उल्लेख करते हुए कहा कि, अमेरिका ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी को भारत के दक्षिणी राज्य में अपने कंपनी का विस्तार करने के लिए 500 मिलियन डॉलर का पैकेज दिया है, जो तामिलनाडू में सोलर प्लांट का विकास करेगी। यह कोशिश, दुनिया के सौर उद्योग पर चीन को बढ़त बनाने के रोकने के लिए उठाया गया एक बड़ा कदम है। इसके साथ ही उन्होंने चीन से भारत में iPhone कंपनी के हालिया समय में आने की बात को भी प्रकाश में रखा। अगले हफ्ते इंडोनेशिया में ग्रुप ऑफ 20 लीडर्स समिट यानि जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने से पहले भारत की यात्रा करने वाले येलेन ने कहा कि, “हम उन निर्माताओं पर अपनी निर्भरता को भी संबोधित कर रहे हैं, जिनके दृष्टिकोण हमारे मानवाधिकार मूल्यों से टकराते हैं।”
रूसी तेल का मुद्दा भी पड़ा ठंडा
भारत के साथ अमेरिका के संबंध का महत्व हाल के महीनों में बढ़ा है। खासकर, जब अमेरिका और रूस की भारी दुश्मनी के बीच भारत रूस का एक दुर्लभ सहयोगी है और अमेरिका का सामरिक भागीदार है। वहीं, भारी मात्रा में रूसी तेल आपूर्ति के मुद्दे को भी अब अमेरिका ने ठंढे बस्ते में डाल दिया है। वहीं, भारत की बड़ी अंग्रेजी बोलने वाली आबादी में ये क्षमता है, कि भारत में अमेरिकी कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन केन्द्र बनने में मदद करे। संयुक्त राज्य अमेरिका समग्र रूप से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन चुका है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के साथ अमेरिका के व्यापार संबंध हमेशा आसान नहीं रहे हैं। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि, उनके भारतीय समकक्ष सबसे कठिन वार्ताकारों में से एक हैं। वहीं, अमेरिका के मन में भारत में लाल फीताशाही और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में कमी को देखते हुए शक बना रहता है, कि आखिर कितने निर्माता चीन से छलांग लगाकर भारत आएंगे।
भारत में कारोबारी दिक्कतें?
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ फेलो सदानंद धूमे ने कहा कि, भारत को अंतरराष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें सरकारी सुधार भी शामिल हैं, जिन्होंने अभी तक भारत में कंपनियों की स्थापना के लिए अधिक आकर्षक गंतव्य नहीं बनाया है। वहीं, चीन की तुलना में, भारत का घरेलू उपभोक्ता बाजार छोटा है और इसलिए वहां निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए भारत कम आकर्षक है। इसके साथ ही, भारत एक महत्वपूर्ण बाधा के रूप में उस वक्त उभरा, जब विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच बाइडेन प्रशासन द्वारा प्रस्तावित एशिया-प्रशांत आर्थिक समझौते, इंडो-पैसिफिक इकॉनॉमिक फ्रेमवर्क को लेकर होने वाली बातचीत में शामिल होने से इनकार कर दिया। वहीं, पिछले कुछ महीनों में रूस के साथ भारत के लंबे आर्थिक संबंध संयुक्त राज्य अमेरिका की आँखों में खटक रहे हैं। भारत रूसी गोला-बारूद का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है और ये एक ऐसा रिश्ता बन चुका है, जिसे लाख कोशिशों के बाद भी अमेरिका के लिए तोड़ना मुश्किल है, खासकर भारत का पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव को देखते हुए। लिहाजा, भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने से इनकार कर दिया है।
रूस को नजरअंदाज कर पाएगा अमेरिका?
यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से भारत का आयात 430% बढ़ गया है और अब रूस भारत का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन चुका है। रूसी कच्चे तेल के टैंकर भारतीय बंदरगाहों पर आते हैं। भारत, जो एक महत्वपूर्ण मात्रा में ऊर्जा का आयात करता है और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, उसने साफ कह दिया है, वह सबसे पहले अपने हितों को देखेगा और जहां से उसे कम कीमत पर तेल मिलेगा, वो वहां से तेल खरीदेगा। लिहाजा, अमेरिकी और भारतीय अधिकारियों से बात करने वाले कॉर्नेल विश्वविद्यालय में व्यापार नीति के प्रोफेसर ईश्वर प्रसाद ने कहा कि, हालांकि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक मजबूत आर्थिक संबंध बनाना चाहता था, लेकिन रूस से खुद को दूर करने की संभावना नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक पूर्व अधिकारी प्रसाद ने कहा कि, “रूस से तेल की एक विश्वसनीय और अपेक्षाकृत सस्ती आपूर्ति बनाए रखने में भारत के बहुत गहरे आर्थिक हित हैं।” ऐसे में अब अमेरिका को तय करना है, कि वो भारत के साथ किस तरह के रिश्ते बनाना चाहता है, क्योंकि एशिया में अब अमेरिका के पास भारत के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।
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