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- India Is In Third Place In The Number Of Vegan People, But Before Becoming Vegan, It Is Important To Know Its Pros And Cons.
ज्योत्स्ना पंत श्रीवास्तव25 मिनट पहले
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- इन दिनों हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड सितारों तक, सभी वीगन बन रहे हैं। ज़ाहिर है अपने चहेते सितारों की देखादेखी बहुत से भारतीयों का दिल भी वीगन बनने को करता है। लेकिन कोई निर्णय करने से पहले इसका वास्तविक अर्थ और गुण-दोष समझ लेने चाहिए।
वीगन होना महज़ एक आहारशैली का पालन करना नहीं है, बल्कि पूरी जीवनशैली है। पश्चिमी देशों ख़ासकर अमेरिका, ब्रिटेन में वीगन की संख्या बढ़ रही है। वजह है उनका खानपान, जिसमें ज़्यादातर मांस आधारित खाद्य पदार्थ और हाई प्रोसेस्ड फूड शामिल होते हैं। ये आहार उनके शरीर को नुक़सान पहुंचा रहा है, जिसे देखते हुए लोग वीगन डाइट की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं। दूसरी तरफ़ एशियाई देशों की बात करें तो यहां केवल भारत में वीगन होने का चलन देखने को मिल रहा है।
चीन, जापान जैसे देशों का मुख्य आहार ही मांस आधारित है, जो उनके यहां की जलवायु के हिसाब से भी ठीक है। इसलिए वे वीगन के प्रति उदासीन हैं।
दुनियाभर में वीगन हो रहे देशों में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है। उससे पहले यूके और अमेरिका का नंबर आता है। भारतीयों का वीगन की तरफ़ बढ़ना अपेक्षाकृत सरल माना जा रहा है, क्योंकि सदियों से हमारे यहां पादप-आधारित आहार लिया जा रहा है। लेकिन इसमें आप दुग्ध उत्पाद और शहद का सेवन भी नहीं करते हैं। वीगन बनने पर व्यक्ति के शरीर में विटामिन बी12 की कमी, एनीमिया के साथ उसके अवसादग्रस्त होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है।
वीगनिज़्म और वेजीटेरियनिज़्म (शाकाहार) अलग हैं। वीगन का अर्थ है, पशुओं से प्राप्त होने वाले हर प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे मांस, दूध, उससे बने उत्पाद को छोड़ देना। जब आप वीगन जीवनशैली अपनाते हैं तो पशुओं से प्राप्त ऊन, चमड़े से बने उत्पाद भी छोड़ने होते हैं। पशुओं पर अत्याचार का हवाला देते हुए दुनियाभर में क्रूरता-मुक्त उत्पादों की व्यापक श्रेणियां बाज़ार में उपलब्ध हैं। इनमें कपड़े, जूतों से लेकर मेकअप प्रॉडक्ट्स भी शामिल हैं।
दुग्ध उत्पादों से पूरा शाकाहार
भारतीय भोजन में चावल, दालें, रोटी, सब्जि़यां, अचार आदि शामिल होते हैं। ये सभी व्यंजन वीगन श्रेणी के हैं। सदियों से ये अनाज, फलियां, दालें और अनाज भारतीय पारंपरिक भोजन का हिस्सा हैं जो हर रसोई में आसानी से मिल जाते हैं। 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की 30% आबादी पूरी तरह शाकाहारी है, वहीं 9% आबादी वीगन है। यही नहीं, शाकाहारी खाने की खपत में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। लेकिन इनमें से ज़्यादातर शाकाहारी डेयरी उत्पादों का बहुतायत में उपभोग करते हैं। यही सबसे बड़ा कारण है कि वीगन जीवनशैली अपनाने में हम हिचकते हैं।
कहां से आया वीगन शब्द?
‘वीगन’ शब्द 1944 में डोनाल्ड वाॅटसन ने गढ़ा, जो एक पशु अधिकार कार्यकर्ता और द वीगन सोसाइटी के सह-संस्थापक थे। हालांकि, उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि मांस से परहेज़ की अवधारणा भारतीय और पूर्वी भूमध्यसागरीय समाजों में बहुत प्राचीन है। वीगन के कम प्रतिबंधात्मक रूप यानी शाकाहार का उल्लेख सबसे पहले ग्रीक दार्शनिक और गणितज्ञ पाइथागोरस ने 500 ईसा पूर्व के आसपास किया था। उन्होंने सभी प्रजातियों के प्रति करुणा दिखाए जाने का समर्थन किया।
विश्व स्तर पर, वीगन के सबसे प्रमुख सांस्कृतिक रूप में से एक का पता इज़रायल में लगा, जहां के डिमोना नामक एक छोटे-से गांव के सभी निवासी वीगन हैं। 50 साल पुराना यह वीगन गांव यरूशलम के 3,000 से अधिक अफ्रीकी हिब्रू इज़रायलियों का घर है। इसे शांति गांव के रूप में जाना जाता है। इस धार्मिक समुदाय के सदस्य 1969 में इज़राइल पहुंचे।
मांसाहार को लेकर कशमकश
अमेरिका की एजेंसी बीएमसी मेडिसिन के एक अध्ययन के अनुसार, मांस और पोल्ट्री उत्पादों के सेवन से मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर का ख़तरा अधिक होता है। कई अन्य अध्ययनों ने मांस को उच्च मृत्यु दर से जोड़ा है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मांस को मनुष्यों के लिए कार्सिनोजेनिक (कैंसर पैदा करने वाला) के रूप में वर्गीकृत किया है। वहीं न्यूयॉर्क की सेलेब्रिटी न्यूट्रीशनिस्ट, हेल्दी कुकिंग एक्सपर्ट कैरी ग्लासमैन के अनुसार, कुछ लोग अपने आहार में मांस के बिना बेहतर महसूस करते हैं, जबकि कुछ लोग बदतर महसूस करते हैं। चूंकि मांस से मिलने वाला प्रोटीन और वसा अन्य सभी वीगन डाइट में मौजूद मात्रा से अधिक होता है, इसलिए वीगन बने लोगों को शारीरिक व भावनात्मक रूप से इसकी कमी महसूस होती है।
ज़रूरी हैं दूध और संबंधित उत्पाद
असल में दूध और दूध से बने उत्पाद भारतीय खानपान का अभिन्न अंग हैं। दूध का सेवन छोटे बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी करते हैं। इसे यूं ही संपूर्ण आहार नहीं कहा जाता। डॉक्टर भी बढ़ती उम्र के बच्चों को दिन में दो बार दूध देने की बात कहते हैं ताकि उनका संपूर्ण विकास हो सके।
दूध के अलावा डेयरी उत्पादों में पोषक तत्व और वसा के विभिन्न प्रकार हड्डियों को मज़बूत बनाने से लेकर हृदय रोग और अन्य विकारों से सुरक्षित रखते हैं। हड्डियों के निर्माण के लिए कैल्शियम, विटामिन डी और फॉस्फोरस महत्वपूर्ण हैं और दुग्ध-पदार्थों में ये सभी तत्व पाए जाते हैं। अमेरिका के नेशनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के एक शोध पत्र के अनुसार, दूध और उसके उत्पादों का सेवन बचपन में करने से मोटापा और उससे जुड़े जोखिम कम होते हैं। वयस्कों में दूध का सेवन शरीर को स्वस्थ और ऊर्जा से परिपूर्ण रखता है। यही नहीं, इससे हृदय रोग, मधुमेह टाइप टू, ऑस्टियोपोरोसिस का ख़तरा भी कम होता है। शोध में यह भी सामने आया कि दूध व डेयरी उत्पाद हडि्डयां मज़बूत बनाने में कारगर हैं। डेयरी उत्पाद कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन डी और प्रोटीन से भरपूर होते हैं। यदि आहार से इस खाद्य समूह को ख़त्म करने का निर्णय लेते हैं, तो सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।
शोध के मुताबिक़, एकदम से दूध व डेयरी उत्पाद का सेवन रोक देना सेहत के लिए नुक़सानदेह हो सकता है। नियमित दुग्ध उत्पादों का सेवन करने वालों को इसे छोड़ने की स्थिति में बार-बार भूख का अहसास होता है, क्योंकि शरीर खाने के बाद भी तृप्त नहीं होता। हर व्यक्ति पर इसके प्रभाव अलग होते हैं।
शोधकर्ता बताते हैं कि लोग दुग्ध उत्पाद छोड़ने के बाद ख़ुद को ज़्यादा थका हुआ महसूस करते हैं और उन्हें सोने में भी दिक़्क़्त होती है। दूध व डेयरी उत्पादों में अमीनो एसिड होता है जो सुस्ती नहीं आने देता। उनमें मौजूद विटामिन बी12 शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है।
वीगन बनने से पहले जोखिम जान लें
– आंत में रिसाव यानी लीकी गट
यह ऐसी स्थिति है जिसमें एंटी न्यूट्रिएंट्स के जमा होने से छोटी आंत की परतें क्षतिग्रस्त हो जाती है। इससे भोजन के कण, ज़हरीले अपशिष्ट उत्पाद और बैक्टीरिया आंत से रिसकर रक्तप्रवाह में पहुंच जाते हैं।
वीगन हो जाने पर पशुओं से प्रोटीन आप ले नहीं सकते। फलियों में मौजूद प्रोटीन में कुछ एंटी न्यूट्रिएंट्स भी होते हैं। इन विरोधी पोषक तत्वों में महत्वपूर्ण मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, विटामिन और खनिजों के अवशोषण को बाधित करने का गुण होता है।
– हाॅर्मोन असंतुलन
सोयाबीन को वीगन डाइट में प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत माना जाता है लेकिन यह कई अन्य मैक्रोन्यूट्रिएंट्स भी प्रदान करता है। मांस के विकल्प के रूप में, प्रसंस्कृत सोया का उपयोग ज़्यादातर वीगन लोग करते हैं। सोया का उपयोग टोफू, सोया दूध बनाने में किया जा सकता है। इन कारणों से असंसाधित सोयाबीन उत्पाद स्वास्थ्यवर्धक नहीं हैं। सोयाबीन में फाइटोएस्ट्रोजेन भी होता है जो शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को बढ़ाता है।
महिलाओं को रजोनिवृत्ति के दौरान उनकी सुचारु प्रक्रिया के लिए फाइटोएस्ट्रोजन एक पूरक के रूप में दिया जाता है। एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने से शरीर में असंतुलन पैदा हो सकता है और हाॅर्मोन के उत्पादन में गड़बड़ी हो सकती है।
– हीमोग्लोबिन की कमी
आयरन का एक अहम स्रोत रेड मीट रहा है। वीगन लोगों के लिए इसके बहुत कम ही विकल्प होते हैं, यदि हैं भी तो वे नॉन-हीम आयरन हैं। नॉन हीम आयरन में एक ख़ामी है कि वह शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित नहीं होता। भारत में आहार में आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया और पोषण की कमी वाले लोगों की संख्या अधिक है।
– ओमेगा 3 फैटी एसिड में कमी
यह मछली और मछली के तेल का प्रमुख घटक है। ओमेगा 3 फैटी एसिड की कमी वीगन लोगों में अवसाद का कारण बन सकती है। वीगन भोजन में मछली का तेल भी शामिल नहीं होता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड हृदय रोग के जोखिम को भी घटाता है। यह रक्त में थक्के जमने की प्रक्रिया को कम करता है।
– थायराॅइड का ख़तरा
वीगन डाइट वाले मछली, अंडे और डेयरी उत्पाद नहीं खाते हैं। इन सभी में आयोडीन होता है, जो थायराॅइड से जुड़े हाॅर्मोन के उत्पादन के लिए आवश्यक है। थायराॅइड हाॅर्मोन बेसल मेटाबॉलिक रेट, प्रोटीन बायोसिंथेसिस और हड्डियों के विकास को बढ़ाने का काम करता है। उसकी अनुपस्थिति में ये सब प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं।
कई कट्टर वीगन समर्थक तो बच्चों को मां के दूध की जगह सोयाबीन से बना दूध देते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि छोटे बच्चों के लिए वीगन आहार शैली संपूर्ण स्वास्थ्य और विकास में बाधक हो सकती है।
इन सब कारणों से आवश्यक है कि किसी भी चलन को आंख मूंदकर अपनाने से पहले उसके सभी पहलुओं को जान-समझ लेना चाहिए। तब आप एक संतुलित और हितकर निर्णय ले पाएंगे।
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