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इंद्रभूषण दुबे
प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) धर्म को राजनीतिक ताकत बनाने की फिराक में था। इसके लिए उसने वोटरों को स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी।
इसके तहत कम आबादी वाले इलाके के मुस्लिम वोटर ज्यादा आबादी वाले इलाके की वोटर लिस्ट में जोड़ने का काम शुरू हो गया था। यह नाम संगठन अपने सदस्यों के घरों के पतों पर जुड़वा रहा था।
ताकि मनमानी वोटिंग कराकर चुनाव के परिणाम को प्रभावित किया जा सके। साथ ही कम आबादी वाले इलाके में लोगों के ब्रेनवॉश करने का भी खेल चल रहा था।
पीएफआई का टारगेट था कि इसके जरिये ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर निगम में उनकी हनक बनी रहे। साथ ही हर जिलों में एक से दो विधानसभा क्षेत्र ऐसे हों, जहां वह निर्णायक स्थिति में हों।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, ताबड़तोड़ छापे में पकड़े गए दो सौ से अधिक सक्रिय सदस्यों से पूछताछ में यह चौंकाने वाला सच सामने आया है।
पहली प्राथमिकता कम मुस्लिम आबादी वालों को घनी आबादी में स्थानांतरित करने की थी। इसके लिए भारत-नेपाल के सीमावर्ती जिले व प्रमुख शहरों के ग्रामीण इलाके निशाने पर थे।
सुरक्षा एजेंसियों की माने तो पीएफआई के निशाने पर पंचायत व नगर निगम का चुनाव था। शुरूआती दौर में इनमें पकड़ बनाना चाहते थे। इसके लिए प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, बीडीसी सदस्य, नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के पार्षद के चुनाव लड़ने के लिए सदस्य सक्रिय हो गए थे।
इसके कई प्रमाण पिछले पंचायत चुनाव व विधानसभा चुनाव में भी सामने आए हैं। पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम का करीबी और एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य अहमद बेग नदवी ने बहराइच के कैसरगंज इलाके से विधानसभा का चुनाव लड़ा। बीकेटी के अचरामऊ का प्रधान अरशद खुद पीएफआई का सक्रिय सदस्य है।
दलित आंदोलन को भी बनाते थे हथियार
सुरक्षा एजेंसियों की जांच में सामने आया कि जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी कम है, वहां पीएफआई के सक्रिय सदस्य दलितों व आदिवासियों को निशाना बनाते थे। उनके लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन करते थे। इसके बाद पैसों का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराते थे।
कई नामी कारोबारी करते हैं फंडिंग
सुरक्षा एजेंसियाें के मुताबिक, पीएफआई को देश व विदेश से फंडिंग होती है। इसके लिए सक्रिय सदस्य स्थानीय स्तर से लेकर विदेशों में बैठे मुस्लिम कारोबारियों से संपर्क करते थे। इसमें बिल्डर, व्यापारी व बड़ी कंपनियों के मालिक भी हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, ऐसे कई बिल्डरों के नाम सामने आए हैं। इनकी कुंडली खंगाली जा रही है। लखनऊ में ही 50 से अधिक छोटे-बड़े मुस्लिम बिल्डर हैं। इनके बारे में एटीएस, एसटीएफ व अन्य सुरक्षा एजेंसियां जानकारी जुटा रही हैं।
ट्रेनिंग व मौज-मस्ती देख पीएफआई से जुड़ते थे युवक
पीएफआई से युवकों को जोड़ने के लिए उसके सदस्य कई तरह की आधुनिक सुविधाएं देते थे। प्रशिक्षण के दौरान व बाद में घूमने-फिरने का इंतजाम करते थे। ताकि अन्य युवक भी तेजी से जुड़ें। प्रशिक्षण के लिए दूसरे जिलों के ट्रेनिंग सेंटर पर भेजा जाता था। वहां लग्जरी सुविधाएं दी जाती थीं। प्रशिक्षण ले रहे युवकों से अपने दोस्तों के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सुविधाओं के फोटो भेजने के निर्देश भी रहते थे। यह बात ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष व एसडीपीआई के सक्रिय सदस्य मो. अहमद बेग नदवी ने रिमांड के दूसरे दिन पूछताछ में कुबूलीं। उससे इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों ने चार घंटे तक पूछताछ की। पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम से उसके करीबी रिश्ते हैं। दोनों मिलकर यूपी में बड़ा नेटवर्क तैयार कर रहे थे। इस खुलासे के बाद ही अहमद बेग को मदेयगंज पुलिस ने रिमांड पर लिया था। रविवार को एसीपी, आईबी के अफसरों ने अहमद बेग से उसके नेटवर्क के बारे में कई सवाल किये। अहमद बेग ने कुबूला कि उसके उन्मादी भाषण भी यू-टयूब के जरिये प्रशिक्षण ले रहे युवकों को सुनाए जाते थे। इससे ब्रेनवॉश की कोशिश रहती थी। आईबी अफसरों के अनुसार, अहमद बेग से जब ये पूछा गया कि लखनऊ से अब तक पकड़े गए अन्य आठ लोगों से संपर्क था या नहीं। इस पर वह चुप रहा। बाद में कुबूला कि सिर्फ वसीम से ही मिला है। दो लोगों से व्हाटसएप कॉल के जरिये बात हुई थी। उम्मीद है कि सोमवार को एनआईए की टीम पूछताछ करेगी। इसके बाद उसे बहराइच ले जाएंगे।
सरकार को गलत साबित करने के लिए करा रहे थे जनमत संग्रह
सरकार व उसकी नीतियों को गलत साबित करने के लिए पीएफआई नए तरीके से विरोध कर रहा था। इसके लिए पीएफआई की एक टीम सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी। वह सरकार की नीतियों व योजनाआें के संबंध में जानकारी जुटाती और सक्रिय सदस्यों के बीच में भेजकर जनमत संग्रह कराती थी। पीएफआई इसके जरिये सरकार को गलत साबित करने में जुटा था। इसके कई प्रमाण पकड़े गये सदस्यों के मोबाइल से मिले हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पीएफआई ने सोशल मीडिया पर लोगों से जुड़ने के लिए एक विशेष सेल का गठन किया था। इसे टेक्नोक्रेट सोशल मीडिया का नाम दिया था। इससे जुड़े सदस्य आधा दर्जन से अधिक यू-ट्यूब न्यूज चैनल चला रहे थे। 350 से अधिक सोशल मीडिया ग्रुप संचालित कर रहे थे। इन पर सरकार की योजनाओं की डिटेल डालते थे और मुस्लिम विरोधी करार देते। इसके बाद सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह कराने के लिए कुछ समय तक वोटिंग कराते थे। यू-ट्यूब चैनल पर कुछ मुस्लिम नेताओं को बैठाकर बहस भी कराते थे। इसके प्रसारण के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते थे। सुरक्षा एजेंसियाें के मुताबिक, पीएफआई के सक्रिय सदस्य उलेमा काउंसिल की मदद से धार्मिक उन्माद फैलाने वाले वीडियो तैयार करते थे। लोगों तक संदेश आसानी से पहुंचे, इसके लिए हर गांव व मोहल्लों में कई ग्रुप बना रखे थे। ऐसे ज्यादातर ग्रुप एडमिन ही संचालित करता था। इन ग्रुपों में ज्यादातर अहमद बेग नदवी के भड़काऊ वीडियो ही वायरल किए गए थे।
इंद्रभूषण दुबे
प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) धर्म को राजनीतिक ताकत बनाने की फिराक में था। इसके लिए उसने वोटरों को स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी।
इसके तहत कम आबादी वाले इलाके के मुस्लिम वोटर ज्यादा आबादी वाले इलाके की वोटर लिस्ट में जोड़ने का काम शुरू हो गया था। यह नाम संगठन अपने सदस्यों के घरों के पतों पर जुड़वा रहा था।
ताकि मनमानी वोटिंग कराकर चुनाव के परिणाम को प्रभावित किया जा सके। साथ ही कम आबादी वाले इलाके में लोगों के ब्रेनवॉश करने का भी खेल चल रहा था।
पीएफआई का टारगेट था कि इसके जरिये ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर निगम में उनकी हनक बनी रहे। साथ ही हर जिलों में एक से दो विधानसभा क्षेत्र ऐसे हों, जहां वह निर्णायक स्थिति में हों।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, ताबड़तोड़ छापे में पकड़े गए दो सौ से अधिक सक्रिय सदस्यों से पूछताछ में यह चौंकाने वाला सच सामने आया है।
पहली प्राथमिकता कम मुस्लिम आबादी वालों को घनी आबादी में स्थानांतरित करने की थी। इसके लिए भारत-नेपाल के सीमावर्ती जिले व प्रमुख शहरों के ग्रामीण इलाके निशाने पर थे।
सुरक्षा एजेंसियों की माने तो पीएफआई के निशाने पर पंचायत व नगर निगम का चुनाव था। शुरूआती दौर में इनमें पकड़ बनाना चाहते थे। इसके लिए प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, बीडीसी सदस्य, नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के पार्षद के चुनाव लड़ने के लिए सदस्य सक्रिय हो गए थे।
इसके कई प्रमाण पिछले पंचायत चुनाव व विधानसभा चुनाव में भी सामने आए हैं। पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम का करीबी और एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य अहमद बेग नदवी ने बहराइच के कैसरगंज इलाके से विधानसभा का चुनाव लड़ा। बीकेटी के अचरामऊ का प्रधान अरशद खुद पीएफआई का सक्रिय सदस्य है।
दलित आंदोलन को भी बनाते थे हथियार
सुरक्षा एजेंसियों की जांच में सामने आया कि जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी कम है, वहां पीएफआई के सक्रिय सदस्य दलितों व आदिवासियों को निशाना बनाते थे। उनके लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन करते थे। इसके बाद पैसों का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराते थे।
कई नामी कारोबारी करते हैं फंडिंग
सुरक्षा एजेंसियाें के मुताबिक, पीएफआई को देश व विदेश से फंडिंग होती है। इसके लिए सक्रिय सदस्य स्थानीय स्तर से लेकर विदेशों में बैठे मुस्लिम कारोबारियों से संपर्क करते थे। इसमें बिल्डर, व्यापारी व बड़ी कंपनियों के मालिक भी हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, ऐसे कई बिल्डरों के नाम सामने आए हैं। इनकी कुंडली खंगाली जा रही है। लखनऊ में ही 50 से अधिक छोटे-बड़े मुस्लिम बिल्डर हैं। इनके बारे में एटीएस, एसटीएफ व अन्य सुरक्षा एजेंसियां जानकारी जुटा रही हैं।
ट्रेनिंग व मौज-मस्ती देख पीएफआई से जुड़ते थे युवक
पीएफआई से युवकों को जोड़ने के लिए उसके सदस्य कई तरह की आधुनिक सुविधाएं देते थे। प्रशिक्षण के दौरान व बाद में घूमने-फिरने का इंतजाम करते थे। ताकि अन्य युवक भी तेजी से जुड़ें। प्रशिक्षण के लिए दूसरे जिलों के ट्रेनिंग सेंटर पर भेजा जाता था। वहां लग्जरी सुविधाएं दी जाती थीं। प्रशिक्षण ले रहे युवकों से अपने दोस्तों के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सुविधाओं के फोटो भेजने के निर्देश भी रहते थे। यह बात ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष व एसडीपीआई के सक्रिय सदस्य मो. अहमद बेग नदवी ने रिमांड के दूसरे दिन पूछताछ में कुबूलीं। उससे इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों ने चार घंटे तक पूछताछ की। पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम से उसके करीबी रिश्ते हैं। दोनों मिलकर यूपी में बड़ा नेटवर्क तैयार कर रहे थे। इस खुलासे के बाद ही अहमद बेग को मदेयगंज पुलिस ने रिमांड पर लिया था। रविवार को एसीपी, आईबी के अफसरों ने अहमद बेग से उसके नेटवर्क के बारे में कई सवाल किये। अहमद बेग ने कुबूला कि उसके उन्मादी भाषण भी यू-टयूब के जरिये प्रशिक्षण ले रहे युवकों को सुनाए जाते थे। इससे ब्रेनवॉश की कोशिश रहती थी। आईबी अफसरों के अनुसार, अहमद बेग से जब ये पूछा गया कि लखनऊ से अब तक पकड़े गए अन्य आठ लोगों से संपर्क था या नहीं। इस पर वह चुप रहा। बाद में कुबूला कि सिर्फ वसीम से ही मिला है। दो लोगों से व्हाटसएप कॉल के जरिये बात हुई थी। उम्मीद है कि सोमवार को एनआईए की टीम पूछताछ करेगी। इसके बाद उसे बहराइच ले जाएंगे।
सरकार को गलत साबित करने के लिए करा रहे थे जनमत संग्रह
सरकार व उसकी नीतियों को गलत साबित करने के लिए पीएफआई नए तरीके से विरोध कर रहा था। इसके लिए पीएफआई की एक टीम सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी। वह सरकार की नीतियों व योजनाआें के संबंध में जानकारी जुटाती और सक्रिय सदस्यों के बीच में भेजकर जनमत संग्रह कराती थी। पीएफआई इसके जरिये सरकार को गलत साबित करने में जुटा था। इसके कई प्रमाण पकड़े गये सदस्यों के मोबाइल से मिले हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पीएफआई ने सोशल मीडिया पर लोगों से जुड़ने के लिए एक विशेष सेल का गठन किया था। इसे टेक्नोक्रेट सोशल मीडिया का नाम दिया था। इससे जुड़े सदस्य आधा दर्जन से अधिक यू-ट्यूब न्यूज चैनल चला रहे थे। 350 से अधिक सोशल मीडिया ग्रुप संचालित कर रहे थे। इन पर सरकार की योजनाओं की डिटेल डालते थे और मुस्लिम विरोधी करार देते। इसके बाद सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह कराने के लिए कुछ समय तक वोटिंग कराते थे। यू-ट्यूब चैनल पर कुछ मुस्लिम नेताओं को बैठाकर बहस भी कराते थे। इसके प्रसारण के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते थे। सुरक्षा एजेंसियाें के मुताबिक, पीएफआई के सक्रिय सदस्य उलेमा काउंसिल की मदद से धार्मिक उन्माद फैलाने वाले वीडियो तैयार करते थे। लोगों तक संदेश आसानी से पहुंचे, इसके लिए हर गांव व मोहल्लों में कई ग्रुप बना रखे थे। ऐसे ज्यादातर ग्रुप एडमिन ही संचालित करता था। इन ग्रुपों में ज्यादातर अहमद बेग नदवी के भड़काऊ वीडियो ही वायरल किए गए थे।
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