Diabetes Treatment: डायबिटीज लाइफस्टाइल से जुड़ा रोग है. खराब जीवनशैली है तो यह बीमारी पहले चलकर आती है. इसके साथ ही हार्ट डिजीज और हाइपरटेंशन भी घर करने लग जाता है. डायबिटीज महिला, पुरुष, बच्चे, बुजुर्ग, यूथ किसी को भी हो सकती है. बस इसके लक्षण पहचानने और इसका समय पर इलाज कराने की जरूरत है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिला और पुरुषों में यदि लक्षणों की बात करें तो दोनों में अंतर होता है. महिलाओं में होने वाली डायबिटीज के कई लक्षण पुरुषों की डायबिटीज से बिल्कुल अलग होते हैं. बस इन्हें पहचान कर समय पर इलाज कराने की जरूरत है.
Urinary Tract Infection का रहता है खतरा
महिलाओं में टाइप 2 डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. खराब लाइफस्टाइल के कारण महिलाएं मोटापे का शिकार हो जाती हैं. ऐसे में उन्हें टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा अधिक रहता है. डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को Urinary tract infection होने का अधिक खतरा होता है. यदि उनका ब्लड शुगर लेवल बेहद अधिक है तो स्थिति गंभीर हो सकती है. डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ब्लड शुगर लेवल बढ़ने पर इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. शुगर के चलते कुछ महिलाओं का यूरिन ब्लैडर खाली नहीं होता है. इससे वहां बैक्टीरिया के बढ़ने की अधिक संभावना होती है.
मासिक धर्म भी हो सकता है अनियमित
डायबिटीज मासिक धर्म पर भी नेगेटिव इफेक्ट डालता है. डायबिटीज होने पर मासिक धर्म अनियमित हो सकता है. टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं के लिए पहली बार मासिक धर्म होने पर बीमारी का असर उम्र भी देखने को मिलता है. जरूरी नहीं है कि मधुमेह से पीड़ित सभी महिलाओं का मासिक चक्र अनियमित होगा. कुछ महिलाओं के बीमार होने पर भी मासिक धर्म नियमित होते हैं।
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन का रहता है खतरा
महिलाओं में डायबिटीज के चलते एक और परेशानी देखने में आती है. वो है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम. इसे PCOS भी कहा जाता है. स्टडी के अनुसार, PCOS वाले लोगों में टाइप 2 मधुमेह डेवलप होने का खतरा 4 गुना अधिक होता है. गर्भ से ही डायबिटीज हैं तब भी पीसीओएस का खतरा अधिक होता है.
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बच्चे को भी रहता है खतरा
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, प्रेग्नेंट महिलाओं में से 10 प्रतिशत तक गर्भावधि डायबिटीज होने का खतरा रहता है, यानी की 10 प्रतिशत महिलाओं में डायबिटीज मां से बच्चे में जा सकता है. यह अवेयरनेस की कमी से होता है. इसकी जांच के लिए प्रेग्नेंट महिलाओं को ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट करवाना चाहिए.
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