Lucknow : Attempt To Woo South From North By Kashi Tamil Sangam – Lucknow : विश्वेश्वर से रामेश्वर तक धरती साधने का प्रयास, पीएम को सद्भाव, सहजता और संवाद से समर्थन की आस
विश्वेश्वर (विश्वनाथ) की धरती काशी पर 19 नवंबर से एक माह तक चलने वाला काशी-तमिल संगमम् सिर्फ उत्तर और दक्षिण का सांस्कृतिक समागम नहीं, बल्कि इसके जरिए लोगों के बीच के संदेह व संशय को खत्म करना भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह दक्षिणी राज्यों के लोगों से संवाद व समन्वय बढ़ाने के अभियान पर हैं, उसके मद्देनजर उनके संसदीय क्षेत्र में होने जा रहा यह आयोजन उत्तर से दक्षिण को साधने का प्रयत्न नजर आता है। आयोजन की महत्ता इसी से आंकी जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद इसका उद्घाटन करेंगे।
वैसे तो इस आयोजन को राजनीतिक उलझाव से बचाने का पूरा ध्यान रखा गया है। आयोजन की बागडोर शिक्षा मंत्रालय को सौंपी गई है। वहीं मेजबाजी काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और आईआईटी मद्रास संयुक्त रूप से कर रहा है। पर, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में तमिलनाडु के प्रमुख लोगों की यात्रा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का पिछले दिनों इस आयोजन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भारत-श्रेष्ठ भारत अभियान का महत्वपूर्ण पड़ाव बताना, आयोजन के दूरगामी संकेत दे रहा है। इस आयोजन का पूरा खाका और प्रस्ताव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक व इस समय भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष डॉ. चमू कृष्ण शास्त्री की तरफ से तैयार करना भी संघ परिवार की दक्षिण में भाजपा के राजनीतिक विस्तार की चिंता का संकेत देता है।
प्राचीन संयोगों से सियासत साधने की कोशिश सभी जानते हैं कि एक एक भारत-श्रेष्ठ भारत के संकल्प को लेकर काम कर रहे प्रधानमंत्री मोदी और संघ व भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्यों में अभी तक अपेक्षा के अनुरूप राजनीतिक पकड़ व पहुंच न बन पाना है। प्राचीन भारत की ज्ञान परंपरा उत्तर से दक्षिण को गहराई से जोड़ती थी। सेतुबंध रामेश्वरम अगर वैष्णव जनों की आस्था के केंद्र अयोध्या और तमिलनाडु के संबंध जोड़ता है तो दर्शन के पुनर्जागरण और हिंदू तीर्थों के पुनरुद्धार का कार्य करने वाले आदि शंकराचार्य की दक्षिण से उत्तर की यात्रा शैव-वैष्णव दर्शन के बीच समन्वय एवं इनकी महत्ता दक्षिण और उत्तर के रिश्तों की गहराई बताती है।
काशी से सधती भविष्य की आस आयोजन के लिए काशी के चयन की एक वजह काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक समानता है। साथ ही सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए कार्य कर रहे प्रधानमंत्री मोदी का काशी से सांसद होना भी है। मोदी के कारण काशी विकास का मॉडल बन चुकी है। इसमें अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों का मॉडल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मोदी और योगी के हिंदुत्व के विकास व विरासत के मॉडल से दक्षिण में भाजपा की संभावनाएं तलाशना स्वाभाविक ही है।
भाषाई टकराव खत्म करने का भी प्रयास प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के रणनीतिकारों की दक्षिण में विस्तार की चिंता का संकेत पिछले दिनों तमिलनाडु में एक कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह की तमिल सरकार से मेडिकल व अन्य तकनीकी विषयों की पढ़ाई तमिल में कराने का आग्रह भी है। इसे भाजपा के उत्तर व दक्षिण के बीच भावुकता के आधार पर भाषाई अस्मिता के टकराव को खत्म करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। इससे पहले शाह ने अक्तूबर में मध्य प्रदेश में मेडिकल शिक्षा की एमबीबीएस की तीन किताबों का विमोचन करते हुए मेडिकल व तकनीकी विषयों की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने की सराहना की थी। कुछ दलों ने इसे दक्षिण के राज्यों पर हिंदी थोपना बताया था। शाह का आग्रह भाषाई टकराव रोकने की ही कोशिश है।
भविष्य की तैयारी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं पर छाए ग्रहण को देखते हुए पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत दक्षिण से की है। वह लगभग ढाई महीने से दक्षिणी राज्यों में ही हैं। ऐसे में भाजपा के लिए दक्षिण में संभावनाएं जुटाना अनिवार्य हो जाता है। भाजपा को लगता है कि दक्षिण में न सिर्फ संभावनाओं को साकार रूप मिल सकता है बल्कि कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी की जा सकती है।
काशी से तमिलनाडु के रिश्तों को और प्रगाढ़ करने के लिए शिक्षा मंत्रालय के काशी तमिल संगमम का शुभारंभ 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। पीएम मोदी 19 नवंबर को दोपहर में वाराणसी पहुंचेंगे और यहां करीब साढ़े तीन घंटे बिताएंगे। इस दौरान वे जनसभा को भी संबोधित कर सकते हैं। मंगलवार को प्रधानमंत्री कार्यालय से पीएम आगमन की सूचना के बाद प्रशासन तैयारियों में जुट गया है। बुधवार को एसपीजी भी वाराणसी पहुंच जाएगी।
बीएचयू के एंफीथियेटर मैदान में एक महीने तक चलने वाले काशी तमिल संगमम के भव्य समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को करेंगे। पीएम मोदी शनिवार को विमान से बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचेंगे और यहां से हेलीकॉप्टर से बीएचयू हेलीपैड जाएंगे। यहां से वे बीएचयू एंफीथियेटर मैदान में आयोजित समारोह में पहुंचेंगे। पीएम मोदी काशी से तमिलनाडु के अटूट रिश्तों पर आयोजित प्रदर्शनी और मेले का भी शुभारंभ करेंगे।
तमिलनाडु के 12 प्रमुख मठ मंदिर के आदिनम का काशी में सम्मान करेंगे पीएम वाराणसी (शशांक मिश्र)। भारतीय सनातन संस्कृति के दो अहम प्राचीन पौराणिक केंद्रों के मिलन के दौरान 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में अनूठा आयोजन किया जाएगा। काशी तमिल संगमम के उद्घाटन समारोह में तमिलनाडु के 12 प्रमुख मठ मंदिर के आदिनम (महंत) को काशी की धरा पर पहली बार सम्मानित किया जाएगा। महामना की बगिया में आयोजित भव्य समारोह में सम्मान समारोह के बाद पीएम मोदी भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग काशी विश्वनाथ और रामेश्वरम के एकाकार पर आधीनम से संवाद भी करेंगे। तमिलनाडु के 12 प्रमुख आदिनाम इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए 18 नवंबर को काशी पहुंचेंगे। काशी तमिल समागमम में आने वाले आदिनाम को काशी में बसे लघु तमिलनाडु का भ्रमण भी कराया जाएगा।
विस्तार
विश्वेश्वर (विश्वनाथ) की धरती काशी पर 19 नवंबर से एक माह तक चलने वाला काशी-तमिल संगमम् सिर्फ उत्तर और दक्षिण का सांस्कृतिक समागम नहीं, बल्कि इसके जरिए लोगों के बीच के संदेह व संशय को खत्म करना भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह दक्षिणी राज्यों के लोगों से संवाद व समन्वय बढ़ाने के अभियान पर हैं, उसके मद्देनजर उनके संसदीय क्षेत्र में होने जा रहा यह आयोजन उत्तर से दक्षिण को साधने का प्रयत्न नजर आता है। आयोजन की महत्ता इसी से आंकी जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद इसका उद्घाटन करेंगे।
वैसे तो इस आयोजन को राजनीतिक उलझाव से बचाने का पूरा ध्यान रखा गया है। आयोजन की बागडोर शिक्षा मंत्रालय को सौंपी गई है। वहीं मेजबाजी काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और आईआईटी मद्रास संयुक्त रूप से कर रहा है। पर, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में तमिलनाडु के प्रमुख लोगों की यात्रा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का पिछले दिनों इस आयोजन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भारत-श्रेष्ठ भारत अभियान का महत्वपूर्ण पड़ाव बताना, आयोजन के दूरगामी संकेत दे रहा है। इस आयोजन का पूरा खाका और प्रस्ताव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक व इस समय भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष डॉ. चमू कृष्ण शास्त्री की तरफ से तैयार करना भी संघ परिवार की दक्षिण में भाजपा के राजनीतिक विस्तार की चिंता का संकेत देता है।
प्राचीन संयोगों से सियासत साधने की कोशिश
सभी जानते हैं कि एक एक भारत-श्रेष्ठ भारत के संकल्प को लेकर काम कर रहे प्रधानमंत्री मोदी और संघ व भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्यों में अभी तक अपेक्षा के अनुरूप राजनीतिक पकड़ व पहुंच न बन पाना है। प्राचीन भारत की ज्ञान परंपरा उत्तर से दक्षिण को गहराई से जोड़ती थी। सेतुबंध रामेश्वरम अगर वैष्णव जनों की आस्था के केंद्र अयोध्या और तमिलनाडु के संबंध जोड़ता है तो दर्शन के पुनर्जागरण और हिंदू तीर्थों के पुनरुद्धार का कार्य करने वाले आदि शंकराचार्य की दक्षिण से उत्तर की यात्रा शैव-वैष्णव दर्शन के बीच समन्वय एवं इनकी महत्ता दक्षिण और उत्तर के रिश्तों की गहराई बताती है।
काशी से सधती भविष्य की आस
आयोजन के लिए काशी के चयन की एक वजह काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक समानता है। साथ ही सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए कार्य कर रहे प्रधानमंत्री मोदी का काशी से सांसद होना भी है। मोदी के कारण काशी विकास का मॉडल बन चुकी है। इसमें अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों का मॉडल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मोदी और योगी के हिंदुत्व के विकास व विरासत के मॉडल से दक्षिण में भाजपा की संभावनाएं तलाशना स्वाभाविक ही है।
भाषाई टकराव खत्म करने का भी प्रयास
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के रणनीतिकारों की दक्षिण में विस्तार की चिंता का संकेत पिछले दिनों तमिलनाडु में एक कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह की तमिल सरकार से मेडिकल व अन्य तकनीकी विषयों की पढ़ाई तमिल में कराने का आग्रह भी है। इसे भाजपा के उत्तर व दक्षिण के बीच भावुकता के आधार पर भाषाई अस्मिता के टकराव को खत्म करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। इससे पहले शाह ने अक्तूबर में मध्य प्रदेश में मेडिकल शिक्षा की एमबीबीएस की तीन किताबों का विमोचन करते हुए मेडिकल व तकनीकी विषयों की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने की सराहना की थी। कुछ दलों ने इसे दक्षिण के राज्यों पर हिंदी थोपना बताया था। शाह का आग्रह भाषाई टकराव रोकने की ही कोशिश है।
भविष्य की तैयारी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की संभावनाओं पर छाए ग्रहण को देखते हुए पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत दक्षिण से की है। वह लगभग ढाई महीने से दक्षिणी राज्यों में ही हैं। ऐसे में भाजपा के लिए दक्षिण में संभावनाएं जुटाना अनिवार्य हो जाता है। भाजपा को लगता है कि दक्षिण में न सिर्फ संभावनाओं को साकार रूप मिल सकता है बल्कि कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी की जा सकती है।
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