- दुनिया मंदी की चपेट में : फेसबुक-ट्विटर और अमेजॉन जैसी कंपनियों में छंटनी से मिल रहे संकेत
अमेरिका समेत दुनिया भर में मंदी को लेकर बहस छिड़ी हुई है। मंदी पर बहस से इतर ऐसे अर्थशास्त्रियों की सूची लंबी है, जो मान रहे हैं कि दुनिया मंदी की चपेट में आ चुकी है। कुछ लोग मानते हैं कि दुनिया बड़ी तेजी से भयानक मंदी की ओर बढ़ रही है। बीते कुछ समय भारत समेत वैश्विक स्तर पर टेक कंपनियों में छंटनी और नयी नियुक्तियों पर रोक की वजह से यह डर गहरा होता जा रहा है। मंदी की वजह से स्टार्टअप के सामने भी कई तरह की चुनौतियां आयी हैं। वैश्विक स्तर पर अमेजॉन, गूगल, फेसबुक, ट्विटर और एप्पल जैसी कंपनियों ने या तो छंटनी का एलान किया है या फिर नयी भर्तियों पर रोक लगा दी है। वहीं भारत में भी आइटी कंपनियां ना सिर्फ छंटनी पर जोर दे रही हैं, बल्कि नयी भर्तियों पर भी रोक लगा रखी है। इसके अलावा अनएकेडमी, बायजू जैसे स्टार्टअप भी कर्मचारियों की संख्या कम करने में जुटे हैं। मंदी के इस आसन्न माहौल में सबसे ज्यादा आइटी सेक्टर में छंटनी या नयी भर्तियों पर रोक देखी जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह टेक कंपनियों के निराशाजनक नतीजे हैं। इसके अलावा टेक कंपनियों की स्टॉक की गिरती कीमतों और विज्ञापन से होनेवाली आय ने संकट को और बढ़ा दिया है। वहीं अमेरिका और यूरोप में आइटी बजट गिरने की चिंता में कंपनियों के कर्मचारियों के बोनस को रोकने या काटने की भी खबरें आयी हैं। पिछले हफ्ते की ही बात है, जब बैंक आॅफ इंग्लैंड ने ब्रिटेन में सबसे खराब आर्थिक मंदी की आशंका जाहिर की है। अगर आशंका सच हो जाती है, तो यह भारतीय फर्मों और कर्मचारियों के लिए दोहरी परेशानी का कारण बनेगा, क्योंकि ब्रिटेन में भारतीय आइटी कंपनियों के कई बड़े ग्राहक हैं। दुनिया के सामने आसन्न इस भयानक संकट के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता और मंदी की आशंका के बीच दुनिया की दिग्गज टेक कंपनियों ने एक तरफ जहां नयी नियुक्तियों पर रोक लगा दी है, तो वहीं दूसरी तरफ वे बड़े पैमाने पर छंटनी भी कर रही हैं। जानकारों के अनुसार, अकेले अक्टूबर के अंत तक 2022 में अब तक अमेरिकी टेक सेक्टर में 45 हजार से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की गयी है। इसके अलावा भी नवंबर में माइक्रोब्लॉगिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ?ट्विटर ने अपने कर्मचारियों की संख्या आधी कर दी है, तो फेसबुक-इंस्टाग्राम की संचालक कंपनी मेटा? ने 13 फीसदी यानी 11 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इन नामों में बड़ी और छोटी दोनों तरह की टेक कंपनियां शामिल हैं। सूची में कई ऐसे हैं, जिन्होंने आॅनलाइन खर्च में उछाल के कारण महामारी के दौरान अभूतपूर्व वृद्धि देखी। इन कंपनियों के सीइओ ने अगले कुछ महीनों में मंदी की आशंका जतायी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि उन्होंने आवश्यकता से अधिक नियुक्तियां कर ली थीं। मेटा के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने कर्मचारियों को लिखे पत्र में कहा कि कमाई में गिरावट और प्रौद्योगिकी उद्योग में जारी संकट के चलते छंटनी का फैसला करना पड़ा। उन्होंने कहा, आॅनलाइन कॉमर्स के पिछले रुझान वापस आ गये हैं, लेकिन इसके साथ ही व्यापक आर्थिक मंदी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और विज्ञापन घटने के संकेत के चलते हमारी आय अपेक्षा से बहुत घट गयी है। छंटनी की घोषणा से पहले मेटा के कुल कर्मचारियों की संख्या 87 हजार थी। इसी तरह ट्विटर, सीगेट, माइक्रोसॉफ्ट, कॉइनबेस, नेटफ्लिक्स, स्ट्राइप, शॉपीफाइ, स्नैप इंक, टेस्ला, लिफ्ट, ओपेनडोर, इंटेल, चाइम और रॉबिनहुड जैसी दिग्गज बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंटनी का अभियान चला रखा है। इन कंपनियों के बाद दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी अमेजॉन भी लगभग 10 हजार लोगों को नौकरी से निकालने जा रही है।
इस तरह देखा जा सकता है कि दुनिया भर में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की नौकरियों पर लगातार संकट मंडरा रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि इस हफ्ते अमेजॉन में कॉरपोरेट और टेक्नोलॉजी से जुड़ी करीब 10 हजार नौकरियां खत्म होनेवाली हैं। अ?गर यह संख्या 10 हजार तक रहती है, तो उनमें अमेजॉन के तीन फीसदी कॉरपोरेट कर्मचारी और एक फीसदी टेक कर्मचारी शामिल होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक अमेजॉन में होनेवाली इस छंटनी का सबसे ज्यादा असर एलेक्सा के साथ ही खुदरा प्रक्षेत्र और मानव संसाधन टीम पर भी होगा।
नौकरियां जाने की वजह क्या है
अमेजॉन में नौकरियां जाने की रिपोर्ट कंपनी के संस्थापक जेफ बेजोस के उस इंटरव्यू के बाद आयी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अपनी 124 अरब डॉलर की संपत्ति को जीते जी धीरे-धीरे दान करेंगे। अमेजॉन में नौकरियों पर संकट के बादल कई महीने पहले से मंडरा रहे हैं। अप्रैल से सितंबर के बीच इस दिग्गज टेक कंपनी में करीब 80 हजार लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं और कंपनी लगातार अपने यहां प्रति घंटा काम करनेवाले कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर रही है। अमेजॉन ने सितंबर महीने में कई छोटी टीमों में लोगों को नौकरी देना बंद कर दिया था। अक्टूबर महीने में अमेजॉन ने अपने मुख्य रीटेल बिजनेस में करीब 10 हजार खाली पदों को भरने पर रोक लगा दी थी। दो हफ्ते पहले कंपनी ने अगले कुछ महीनों के लिए अपने क्लाउड कंप्यूटिंग डिवीजन में कॉरपोरेट भर्तियों पर रोक लगा दी। त्योहारों के मौसम में अमेजॉन की जॉब सिक्योरिटी को लेकर तारीफ होती रही है, लेकिन नौकरियों में कटौती के इस एलान ने कहीं न कहीं यह दर्शाया है कि मंद होती वैश्विक अर्थव्यवस्था ने कंपनी पर कारोबार छोटा करने का दबाव बनाया है।
कोरोना महामारी का असर
कोरोना महामारी के दौरान अमेजॉन के मुनाफे के साथ-साथ आॅनलाइन ग्राहकों की संख्या में भी जबरदस्त उछाल देखा गया था, लेकिन कोरोना का असर कम होते ही कंपनी की वृद्धि दो दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी। कोरोना महामारी के दौरान काम अचानक बढ़ गया था, क्योंकि ग्राहक तेजी से आॅनलाइन शॉपिंग की ओर बढ़े और कंपनियों ने अमेजॉन की क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस को चुना। ऐसे में इस दिग्गज टेक कंपनी ने दो सालों में अपने यहां काम करनेवालों की संख्या लगभग दोगुनी कर ली और साथ ही इस कामयाबी को विस्तार देने और नये प्रयोग करने की दिशा में आगे बढ़ने लगी। हालांकि कोरोना का असर कम होने की वजह से लोगों ने बाजारों में जाकर शॉपिंग शुरू की। इससे अमेजॉन को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि कंपनी ने काफी ज्यादा निवेश करने के साथ ही अपना आकार भी बड़ा कर लिया था। लोगों की खरीदारी की आदत बदली और साथ में बढ़ती हुई महंगाई से कंपनी को काफी नुकसान हुआ। अमेजॉन का कहना है कि उसने अपनी विस्तार योजनाओं को कुछ समय के लिए विराम दे दिया है और अपने निवेशकों को बताया है कि फिलहाल ग्राहकों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी के फाइनेंस चीफ ब्रायन ओल्सावस्की ने बीते महीने निवेशकों से कहा कि हम असलियत जानते हैं कि ग्राहकों की जेब पर कई तरह से असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कंपनी इस बात को लेकर अनिश्चित थी कि खर्च कहां जा रहा है, लेकिन हम इससे होनेवाले कई तरह के परिणामों के लिए तैयार हैं।
भारतीयों पर कितना असर
जानकारों के अनुसार सिंगापुर और दुनिया के अलग-अलग कोनों पर स्थित टेक्नोलॉजी कंपनियों ने या तो अपने यहां खाली पदों को भरना बंद कर दिया है या फिर टीमों को छोटा कर रही हैं। सिंगापुर के मानव संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां 1.77 लाख रोजगार कार्ड धारकों में से 45 हजार भारतीय हैं। इनमें से अधिकतर की नौकरी पर न सिर्फ मेटा के फैसले का असर पड़ा है, बल्कि दूसरी कंपनियां भी नौकरियों में कटौती कर रही हैं। वाल्ट डिज्नी ने भी नयी नौकरियों पर रोक लगाने के साथ कुछ नौकरियों में कटौती की घोषणा कर दी है। इसके पीछे भी आर्थिक अनिश्चितता की संभावनाओं को वजह बताया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कॉग्निजेंट इंडिया में जुलाई से सितंबर के बीच करीब छह फीसदी लोगों ने खुद ही नौकरी छोड़ दी। कंपनी के प्रमुख राजेश नांबियार के एक बयान के मुताबिक अधिकतर कर्मचारियों ने खुद ही नौकरी छोड़ दी, क्योंकि बहुत से लोगों ने फर्जी दस्तावेज लगा कर नौकरी ली थी। बीते कुछ महीनों में मूनलाइटिंग के मामले भी खूब सामने आये हैं। दूसरी ओर वर्क फ्रॉम होम मोड के बाद आॅफिस खुले और कंपनियों ने कर्मचारियों के बैकग्राउंड चेक शुरू किये, जिसमें बहुत से लोगों के दस्तावेज फर्जी पाये जा रहे हैं। एसेंचर इंडिया ने भी बड़े स्तर पर लोगों को नौकरी से निकाला है। कंपनी ने अपने एक बयान में कहा, हमने यह सुनिश्चित करते हुए एक्शन लिया है कि हमारे क्लाइंट को मिलनेवाली सेवाओं की हमारी क्षमता पर असर न पड़े। ग्लोबल मार्केट के हालात को देखते हुए कई महीने पहले ही भारतीय कंपनियों ने नयी नौकरियां देने पर रोक लगा दी थी। विशेषज्ञ मानते हैं कि आनेवाले समय में भारतीय टेक्नोलॉजी कंपनियों पर भी नौकरियां जाने का खतरा है।
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