Edited By ,Updated: 18 Nov, 2022 05:24 AM
पिछले 2 दशकों में चीन ने पूरी दुनिया पर अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश की है लेकिन उसे हर जगह वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी। लेकिन चीन ने अपनी असफलता के
पिछले 2 दशकों में चीन ने पूरी दुनिया पर अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश की है लेकिन उसे हर जगह वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी। लेकिन चीन ने अपनी असफलता के बावजूद उन क्षेत्रों में अपनी बढ़त बनाना शुरू किया जिन देशों पर किसी बड़ी ताकत का ध्यान नहीं जाता था, उदाहरण के लिए चीन ने पिछड़े और गरीब अफ्रीकी महाद्वीप को पैसों के बल पर अपने पक्ष में करने में बड़ी सफलता हासिल की, इसी तर्ज पर चीन ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों पर भी अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की, इसके अलावा पूर्वी यूरोप, बाल्कन क्षेत्र और लैटिन अमरीका में भी अपने पैसों के जोर पर अपना प्रभाव जमाने की भरपूर कोशिश की।
वहीं चीन की तथाकथित निजी कंपनियों ने लैटिन अमरीका में निवेश करना शुरू कर दिया था हालांकि चीन में जितनी भी निजी कंपनियां हैं उनके मालिक सी.पी.सी. के सदस्य और बड़े रसूखदार लोग होते हैं जिनकी बात पार्टी आला कमान स्तर पर सुनी जाती है। लैटिन अमरीका में चीन ने ऊर्जा, आधारभूत संरचना, अंतरिक्ष के साथ दूसरे कई क्षेत्रों में निवेश किया है। चीन लैटिन अमरीका में संयुक्त राज्य अमरीका से भी अधिक निवेश कर सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार बन बैठा।
चीन ने लैटिन अमरीका में सिर्फ व्यापारिक पहुंच ही नहीं बनाई बल्कि राजनयिक, सांस्कृतिक और सैन्य पहुंच भी बनाने लगा, दरअसल चीन यह सारा काम एक रणनीति के तहत कर रहा था और वह अमरीका के पड़ोसियों को घेरकर अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा था जिससे भविष्य में अमरीका से किसी भी तनाव की स्थिति में अमरीका के पड़ोस में बैठकर अमरीका के विरुद्ध अभियान चलाया जा सके।
चीन ने अपने पड़ोसी देश ताईवान को पूरी दुनिया से अलग-थलग करने के लिए भी अपने पांव पसारना शुरू किया जिससे अगर आने वाले दिनों में चीन ताईवान पर हमला कर उसे अपने देश में मिलाना चाहे तो ताईवान का कोई राजनयिक साथी न हो जो उसकी आवाज संयुक्त राष्ट्र संघ में पहुंचाए। चीन के इस फैलाव से अमरीका खासा चिंतित है। चीन के सांस्कृतिक रिश्ते बढ़ाने के कारण पेरू में सबसे अधिक प्रवासी चीनी नागरिक रहते हैं इसके साथ ही ब्राजील, क्यूबा, पराग्वे और वेनेजुएला में भी चीनियों की अच्छी खासी संख्या रहती है।
इसका फायदा चीन को इन देशों से व्यापारिक रिश्ते बनाने और इस क्षेत्र में अपनी घुसपैठ बढ़ाने में मिला। वर्ष 2000 में लैटिन अमरीकी देशों में चीन के उत्पादों की संख्या मात्र 2 फीसदी थी वहीं यह वर्ष 2020 तक बढ़कर 31 फीसदी हो गई। वर्ष 2035 तक इसके 700 अरब डॉलर तक बढऩे की उम्मीद है। लैटिन अमरीका से चीन में सोयाबीन, तांबा, पैट्रोलियम, खाद्य तेल और दूसरे उत्पाद निर्यात किए जाते हैं जिनका चीन के उद्योगों में इस्तेमाल होता है। चीन ने चिली, कोस्टारिका, पेरू के साथ बी.आर.आई. परियोजना के तहत मुक्त व्यापार समझौता किया है जिससे चीन को सबसे अधिक फायदा मिलता है।
दक्षिण-एशिया सहयोग के तहत चीन ने लैटिन अमरीका से अपने रिश्ते और मजबूत किए हैं लेकिन इसी बहाने चीन इस पूरे क्षेत्र में चीनी साम्यवादी विचारधारा को प्रचारित कर रहा है। इसकी शुरूआत आज से 21 वर्ष पहले 2001 में तब हुई थी जब चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन थे, उन्होंने 13 दिनों की लैटिन अमरीका की लंबी यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने एक दर्जन से अधिक राजनीतिक बैठकें भी की थीं। वहीं चीन इस क्षेत्र में अपनी घुसपैठ को और मजबूत करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है, वर्ष 2013 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र की 11 यात्राएं की हैं।
इस दौरान चीन ने कई राजनयिक और रणनीतिक समझौते किए जिसमें अर्जेंटीना, ब्राजील, चिली, इक्वाडोर, मैक्सिको, पेरू और वेनेजुएला सबसे करीबी राजनयिक संबंधों वाले देश हैं। वहीं चीन का एक और उद्देश्य ताईवान को दुनिया से अलग-थलग करना भी है, पैसों के जोर पर डोमीनिकन रिपब्लिक और निकारागुआ ने हाल में ही ताईवान से संबंध खत्म कर चीन से जोड़े हैं। लैटिन अमरीका में चीन साम्यवादी तानाशाही सरकारें बनवा कर उनके साथ सहयोग और उन्हें आर्थिक मदद देकर अपना बाजार और बाद में उपनिवेश बनाना चाहता है।
चीन अमरीका की नाक के नीचे से उसके पड़ोसियों को छीन लेना चाहता है। चीन एक सोची समझी रणनीति के तहत अमरीका को पछाड़कर दुनिया का बॉस बनना चाहता है, चीन को इस रणनीति में बढ़त भी हासिल है क्योंकि चीन में एक ही पार्टी है जो अपना नेता चुनती है। अमरीका लोकतांत्रिक देश होने के कारण बदलती सरकारों के चलते उसकी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं।
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