लोगों का फिल्मों से प्रभावित होकर अपराध करना और बचने की कोशिश करना नयी बात नहीं है और हाल में सामने आईं जुर्म की दो दास्तान फिल्म ‘डेक्स्टर’ और ‘दृश्यम’ से प्रभावित नजर आती हैं।
श्रद्धा वालकर (27) हत्याकांड में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपने बयान में कबूल किया कि उसने अमेरिकी टेलीविजन श्रृंखला ‘डेक्स्टर’ देखकर श्रद्धा को जान से मारने और उसके शरीर के टुकड़े करने के बारे में सोचा था।
इसी तरह गाजियाबाद में पुलिस ने चार साल पुराने अपराध के एक मामले का खुलासा किया है जिसमें एक युवती ने बताया कि किस तरह उसकी मां ने उसके पिता की जान ले ली। इस घटना में शव को एक घर के नीचे गड्ढे में दफन कर दिया गया था। कुछ इसी तरह की कहानी अजय देवगन अभिनीत फिल्म ‘दृश्यम’ की भी है।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपराधशास्त्र एवं विधि विज्ञान संस्थान में अपराध विज्ञान के प्रोफेसर डॉ बेउला शेखर के अनुसार, शोध बताते हैं कि हिंसा करने की प्रवृत्ति रखने वाले ज्यादातर लोग फिल्मों से प्रभावित होते हैं।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह भाव-विरेचन मजबूत भावनाओं की खुली अभिव्यक्ति के माध्यम से लोगों को मनोवैज्ञानिक राहत प्रदान करता है।’’
दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने श्रद्धा हत्याकांड में आरोपी पूनावाला के हवाले से कहा कि उसने शादी के मुद्दे पर विवाद के बाद लड़की की हत्या कर दी और ‘डेक्स्टर’ फिल्म की तरह उसके शरीर के टुकड़े कर दिये। यह बयान देते हुए बिल्कुल पछतावा नहीं दिखाने वाला पूनावाला एक ‘सीरियल किलर’ आधारित शृंखला से प्रभावित होकर अपराध करने के बाद छह महीने तक बचता रहा और अंतत: उसे गत शनिवार को गिरफ्तार किया गया।
श्रद्धा वालकर की हत्या का वाकया सबसे नया है लेकिन फिल्मों से प्रभावित होकर इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने के पहले भी कई मामले आये हैं।
फिल्मकार एस एम एम औसाजा ने बताया कि किस तरह 1971 में अमिताभ बच्चन अभिनीत मनोवैज्ञानिक थ्रिलर फिल्म ‘परवाना’ देखकर उस समय एक आदमी ने चलती ट्रेन में हत्या की घटना को अंजाम दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘उस समय इस पर विवाद उठा था और लोगों ने फिल्म पर प्रतिबंध की मांग उठाई।’’
दिसंबर 2010 में देहरादून में एक आदमी ने अपनी पत्नी की हत्या कर उसके शरीर के 70 से ज्यादा टुकड़े किये थे। पुलिस ने बताया कि हत्यारा ऑस्कर पुरस्कार विजेता फिल्म ‘द साइलेंस ऑफ द लैंब्स’ से प्रभावित था जिसमें एंथनी हॉपकिन्स को सीरियल किलर के रूप में दिखाया गया था।
लूटपाट से जुड़े कई मामले भी इसी तरह फिल्मों से प्रभावित दिखाई देते हैं। पिछले महीने आईसीआईसीआई बैंक के एक अधिकारी ने पुणे में एक बैंक से 34 करोड़ रुपये लूट लिये थे। उस पर कथित रूप से, अंतरराष्ट्रीय रूप से हिट हुई स्पेनिश शृंखला ‘मनी हीस्ट’ का असर था।
औसाजा के अनुसार, समाज में होने वाले जघन्य अपराधों के लिए सिनेमा को जिम्मेदार ठहराया सही नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘सिनेमा, साहित्य और कला से अच्छी चीजें ग्रहण करनी चाहिए। केवल बीमार और असामान्य दिमाग वाला व्यक्ति ही फिल्मों से देखकर वास्तविक जीवन में ऐसे नकारात्मक काम करेगा।’’
सबसे पहले 2013 में मलयालम भाषा में और फिर हिंदी में आई ‘दृश्यम 2’ का असर एक से अधिक अपराध की घटनाओं में होने की बात सामने आई है।
केरल में 2013 में एक व्यक्ति ने अपने भाई से विवाद के बाद उसकी हत्या कर दी और बाद में शव को अपनी मां तथा पत्नी की मदद से घर के पीछे एक हिस्से में दफना दिया।
‘दृश्यम 2’ के निर्देशक अभिषेक पाठक ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग अपराध आधारित फिल्मों से नकारात्मक काम करने के लिए प्रभावित होते हैं।
फिल्म निर्देशक नीरज पांडेय का मानना है कि वास्तविक जीवन की अपराध घटनाओं से फिल्मों या शो की समानता करने के लिए मीडिया जिम्मेदार है।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post