ग्रामीणों को अपने-अपने मोबाइल से पता चल जाता है कि पानी की मोटर को कितनी देर चलाना है
संसाधन की कमी बनाम संसाधन संरक्षण। किसी भी जगह में संसाधनों की कमी होना आम बात है। खास तब होता है, जब तकनीक और जिम्मेदारी के अहसास से कम संसाधन को बर्बाद होने से बचाया जाए। भरपूर बिजली-पानी होने के बाद भी उसकी बर्बादी हमारे देश में आम चलन है। लेकिन, जिन जगहों पर बिजली-पानी की कमी हो, वहां कमतर में भी बेहतर किया जा सकता है। ग्राम पंचायत लोकतंत्र की सबसे छोटी ही नहीं, लोकतंत्र की अगुआ इकाई भी होती है। अगर यह इकाई जिम्मेदारी और आत्मविश्वास से अपनी जिम्मेदारी पूरी करे तो आगे भी विकास की गाड़ी के बेपटरी होने का खतरा नहीं रहता है। तमिलनाडु में मुकुलम ग्राम पंचायत की अध्यक्ष कंचना के. ने अपने कार्यक्षेत्र में इसी तरह की जिम्मेदारी दिखाई है। तीन साल पहले ग्राम पंचायत की अध्यक्ष का पद संभालते ही उन्होंने संकेत दे दिए थे कि वे सरकारी मशीनरी का वह हिस्सा बनेंगी जो आगे के कल-पुर्जों को जाम होने से बचाएगा। कंचना ने ग्रामीणों की मदद से ग्रांच पंचायत की खत्म हो चुकी पांच झीलों को पुनर्जीवित किया जिससे किसानों की उत्पादन क्षमता और ग्रामीणों की आय बढ़ी। उनका अगला अहम कदम था पानी-बिजली की किल्लत वाले गांव में इन दो संसाधनों की बर्बादी रोकना। मोबाइल ऐप और जागरूकता के जरिए मुकुलम ग्राम पंचायत के लोगों ने बिजली-पानी के बर्बादी पर रोक लगाई। उनकी सफलता का ही नतीजा है कि अब ने यह तकनीक धर्मपुरी जिले (तमिलनाडु) के 251 ग्राम पंचायत में भी क्रियान्वित होगी। अनिल अश्विनी शर्मा की कंचना के. से बातचीत के प्रमुख अंश
एक गांव से एक कहानी सामने आती है कि संसाधनों का सदुपयोग, जनजागरूकता या तकनीक की मदद से तस्वीर बदल दी गई। आपकी कहानी भी ऐसी है तो अाप अपने किरदार को कैसे देखती हैं?
यह तो सही है कि ग्राम पंचायत हमारे प्रजातंत्र की सबसे छोटी और सबसे अधिक महत्वपूर्ण इकाई है। बचपन से लेकर अब तक मैंने जो भी पढ़ा-लिखा और अपने बड़ों से सीखा तो यही जाना कि हमारा गांव आत्मनिर्भर होगा तो हमारा देश भी आत्मनिर्भर होगा।
हमारी बुनियादी शिक्षा की किताबों में यही बात पढ़ाई गई थी और मैंने अपने आस-पास हमेशा यही महसूस किया कि गांवों की मजबूती से ही देश की मजबूती है।
क्या आपको लगता है कि हमारे प्रजातंत्र में ग्राम पंचायत की इकाई अब भी अपनी प्रासंगिकता रखती है?
जी बिलकुल। यह प्रासंगिकता बरकरार है तभी तो मैं यहां काम कर पा रही हूं। नहीं तो फिर सब अपने सीमित दायरे तक ही रह जाते हैं। हमने अपनी सोच का दायरा बढ़ाया है तभी हमारे ग्रामीणों की सोच का दायरा बढ़ा है।
गांव में जल संरक्षण के लिए तकनीक की मदद लेने का ख्याल कैसे आया?
यह क्षेत्र लंबे समय से पानी की कमी और बार-बार बिजली कटौती से त्रस्त रहा है। ऐसे में हमने महसूस किया है कि इस पर नियंत्रण के लिए तकनीकी मदद अधिक कारगर साबित हो सकती है। तभी हमने तीन साल पहले सीगलहल्ली और 13 अन्य गांवों को नियंत्रित करने वाली मुकुलम ग्राम पंचायत के निवासियों को इस तकनीक को लेकर दोस्ताना माहौल बनाया। यह तकनीक पानी का विवेकपूर्ण उपयोग करने को प्रेरित करती है। उन्हें मोटर या टैंक को किसी भी तरह के नुकसान से अवगत कराती है। हालांकि, यहां जल आपूर्ति केंद्र सरकार के जल-जीवन मिशन के तहत लगातार होती थी, लेकिन कुछ ही घंटों में घरों में पानी खत्म हो जाता था क्योंकि अधिक उपयोग होने के साथ लगातार रिसाव के कारण टैंक खाली हो जाते थे। अब इस पर पूरी तरह नियंत्रण है। संसाधन को बचाना भी संसाधन जुटाना ही होता है।
इस तरह की तकनीक से ग्रामीणों को किस प्रकार से प्रशिक्षित किया गया?
2019 में ग्राम पंचायत का कार्यभार संभालने के बाद मैंने इस दिशा में फैसला किया। कोयंबटूर स्थित सिंचाई उपकरण निर्माता एक कंपनी “नियाग्रा सॉल्यूशंस” के साथ घरों से जुड़े सभी इलेक्ट्रिक वाटर मोटर्स में एक सेंसर स्थापित करने और निवासियों को इसका उपयोग करने का तरीका सिखाने के लिए करार किया। मूल रूप से सेंसर में एक सिम कार्ड होता है, जो एक मोबाइल ऐप्लीकेशन से जुड़ा होता है। निवासियों को अपने फोन पर ऐप्लीकेशन डाउनलोड करना होता है। जब भी जलस्तर में कोई बदलाव होता है तो उन्हें अपनी भाषा तमिल में एक आवाज के रूप में संदेश मिलता है। यह ऐप्लीकेशन मोटरों से टैंक तक पानी छोड़ने में लगने वाले समय को छह घंटे से घटाकर तीन घंटे करने में भी मदद करता है, जो यह तय करने के लिए आवश्यक है कि बिजली कटौती के दौरान आपूर्ति प्रभावित न हो।
ग्राम पंचायत में पानी-बिजली के उपभोग को नियंत्रित करने के लिए आपने किस प्रकार से ग्रामीणों को प्रेरित किया?
मैंने देखा कि ग्रामीण क्षेत्रों में दिन में भी स्ट्रीटलाइट जलती थी। मैंने ग्रामीणों के साथ कई सभाएं की और उन्हें दिन में जलती हुई स्ट्रीटलाइट दिखाई और पूछा, क्या यह अच्छा है कि लाइट बिना किसी कारण जलती रहे? ऐसे कई सवालों को मैंने ग्रामीणों के समक्ष रखे तब जाकर उनकी समझ में आया कि उनकी लापरवाही से बहुमूल्य संसाधनों का कितना नुकसान हो रहा है। चूंकी, उन्हें इस बात का अहसास था कि बिजली कटौती से वे कितने परेशान हो जाते हैं। ऐसे में यह तय करने के लिए कि रात में ही स्ट्रीट लाइट जले हमने ग्रामीणों की मदद से ऐप के जरिए आॅटोमैटिक टाइमर की मदद ली। मैं यह कह सकती हूं कि जब आप किसी को उसकी समस्या से जोड़कर समझाते हैं तो वह उस बात को आसानी से बिना किसी हिचक के आत्मसात कर लेता है।
ग्राम पंचायत की पांच झीलों का पुनरुद्धार कैसे किया?
मुकुलम ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आने वाली पांच झीलों की सफाई के लिए कई अभियान चलाए हैं। झील के आसपास का इलाका आक्रामक खरपतवारों (प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा) से भरे हुए थे, जो जल संसाधनों को समाप्त कर देते हैं और अन्य पौधों के विकास में बाधक बनते हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम के माध्यम से ग्रामीणों ने झीलों को साफ करने में बड़ी भूमिका निभाई। अब इस पानी का उपयोग हमारी पूरी पंचायत के ग्रामीण सिंचाई के लिए किया जाता है। यही नहीं, सिंचाई के साधन होने से ग्रामीणों ने अपने खेतों में अधिक फसल बोना शुरू कर दिया है। इसका सुखद परिणाम है कि आज की तारीख में प्रति 0.4 हेक्टेयर उपज में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई है। झीलों में गाद नहीं जाए इसके लिए हमने पंचायत निधि का उपयोग करके झील के किनारे-किनाने कटहल, अनार, नीम और आंवले के लगभग 2,100 से अधिक पौधे रोपे। ग्रामीणों की देखभाल और बारिश ने इसे तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।
यह मोबाइल ऐप बिजली-पानी बचाने में कितना कारगर रहा?
निजी ऐप ने सच में पंचायत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है। इस ऐप के जरिए पूरे ग्राम पंचायत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से निगरानी हो रही है। डाउनलोड किए गए ऐप से ग्रामीणों को अपने-अपने मोबाइल से पता चल जाता है कि पानी की मोटर को कितनी देर चलाना है और पानी के टैंक की भंडारण क्षमता कितनी है। इसी तरह से बिजली के वोल्टेज के उतार-चढ़ाव की जानकारी भी ऐप के जरिए हो जाती है। इससे पानी व बिजली की पचास फीसदी तक बचत हुई है। यह कोई मामूली बचत नहीं है। इससे बचत किए गए पानी की आपूर्ति उन ग्रामीण क्षेत्रों को मुहैया कराया जाती है जहां पानी की कमी है और जहां तक बिजली की बचत की बात है तो इससे कुल मिलाकर ग्रामीणों को अधिक समय तक बिजली मिल पाती है।
क्या पानी-बिजली की बचत संबंधी तकनीक असर आपके ग्राम पंचायत के आसपास के क्षेत्र में हुआ?
बिल्कुल हुआ। जिला प्रशासन ने हमारे काम को देखते हुए इस तकनीक को अब धर्मपुरी जिले की 251 ग्राम पंचायतों में भी लगाएगा।
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