सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। जेनेटिक टेक्नोलाजी (जीएम) से देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। घरेलू खाद्य तेलों की जरूरतों को पूरा करने में जीएम टेक्नोलाजी से अहम साबित होने वाली है। पर्यावरण सुरक्षा संबंधी तकनीकी समिति की हरी झंडी के बाद देश के आधा दर्जन शोध संस्थानें पर जीएम सरसों की खेती की जा चुकी है। इन सभी जगहों से बीजों से तैयार फसल ट्रायल फार्म में लहलहा रही है। उसकी कड़ी सुरक्षा के साथ निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिए गए हैं ताकि उसकी वास्तविक उत्पादकता का पता चल सके।
वन व पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी के बाद जीएम सरसों की फार्म ट्रायल का रास्ता साफ हुआ था। इसी के मद्देनजर आनन-फानन में कृषि मंत्रालय के अधीन इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) ने देश के आठ प्रमुख शोध संस्थानों को संरक्षित जीएम सरसों का बीज भेजकर तुरंत बोआई करने का निर्देश दिया था।
इसकी खेती को सफलतापूर्क कराने और इसका गहन परीक्षण कराने संबंधी सभी कार्यों के लिए राजस्थान के भरतपुर स्थित केंद्रीय सरसों अनुसंधान संस्थान को नोडल एजेंसी नियुक्त किया है। लेकिन छह जगहों पर ही बोआई हो सकी है। जीएम सरसों की खेती की सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं, जिस पर कृषि वैज्ञानिक लगातार नजर रख रहे हैं। इससे जुड़े एक वैज्ञानिक ने बताया कि बोआई हुए कोई 25 से 18 दिन हो चुके हैं। इन बीजों की बोआई भरतपुर, बनारस, लुधियाना, झांसी, कानपुर और दिल्ली के कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) के रिसर्स फार्मों पर इसकी खेती हो रही है। जबकि दो ऐसे संस्थानों ने खेती करने में असमर्थता जता दी है। इनमें हरियाणा और मध्य प्रदेश (मुरैना) का एक-एक रिसर्च सेंटर है जहां ब्रीडर ही नियुक्त नहीं हैं।
जीएम टेक्नोलाजी विरोधी लाबी इसे लेकर खासा नाराज है। लोगों के बीच विरोध करने के साथ सुप्रीम कोर्ट के भी दरवाज खटका रही है। उसी के मद्देनजर सुरक्षा की सारी तैयारियां की गई है। भारतीय वैज्ञानिकों के तैयार जीएम सरसों खेतों तक पहुंच गई है, जहां इसकी उत्पादकता के परीक्षण के साथ बीज तैयार किए जाएंगे। किसानों के खेतों तक पहुंचने में इसे दो तीन साल का समय लग सकता है। खाद्य तेलों की घरेलू मांग का दो तिहाई हिस्सा आयात से पूरा होता है, जिसे जीएम जैसी टेक्नोलाजी से प्रमुख कृषि वैज्ञानिक केसी बंसल का कहना है कि सीमित संसाधनों में बढ़ती आबादी का पेट भरन के लिए उत्पादकता ही एकमात्र साधन है।
इसके लिए टेक्नोलाजी ही प्रमुख सहारा बन सकती है, जिस दिशा में कृषि वैज्ञानिक आगे बढ़ रहे हैं। इसमें रोड़ा अटकाने से खेती की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उन्होंने बीटी काटन का उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 2002 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास आयातक देश था, जो लेकिन बीटी काटन के आने से दो दशक में सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है। इस वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण समेत जितनी संभव हो जांच और परीक्षण होना चाहिए। लेकिन केवल अन्य फसलों का रास्ता रोकना ठीक नहीं होगा।
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Edited By: Devshanker Chovdhary
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