राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ० केशवराव बलिराम हेडगेवार की जन्मभूमि महाराष्ट्र थी जहाँ छत्रपति शिवाजी को भगवान की तरह पूजा जाता है। छत्रपति शिवाजी ने ही सर्वप्रथम हिंदवी स्वराज का नारा दिया था।
डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म नागपुर में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 1 अप्रैल 1889 को ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से कुशाग्र बुद्धि के बहादुर एवं क्रांतिकारी बालक थे। उन्होंने अपने विद्यालय में बाल्यावस्था में एक अंग्रेज अफसर के समक्ष वन्देमातरम का नारा लगा दिया जिसका परिणाम था कि उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। इतना ही नहीं, 8 वर्ष की अवस्था में सन् 1897 में इंग्लैण्ड की महारानी के 60 वर्ष पूरे होने पर खुशी में मिठाई बांटी गयी, तब बालक केशव ने मिठाई का दोना एक कोने में फेंक दिया और कहा कि यह मिठाई खाना मेरे लिए लज्जा की बात है।
कालान्तर में कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने आपको समर्पित कर दिया लेकिन वे लम्बे समय तक कांग्रेस के साथ नहीं रह पाये क्योंकि महात्मा गांधी के खिलाफत आन्दोलन से डॉ० हेडगेवार सहमत नहीं थे। इतना ही नहीं, कांग्रेस में पनप रहे मुस्लिम कंट्टरपंथियों एवं वामपंथियों के प्रभाव से आहत होकर उन्होंने सदा के लिए कांग्रेस से अपने आपको अलग कर लिया।
कांग्रेस से अलग होने के बाद डॉ० हेडगेवार जी ने देश में ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस की जो राष्ट्रीय विचारधारा की अवधारणा रखता हो, सनातन संस्कृति के अनुयायिओं हिन्दुओं का संरक्षण कर सके, साथ ही वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से प्रभावित हो। डॉ० हेडगेवार ने प्रारम्भ में स्कूली बच्चों को इक_ा कर शाखा चलाना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे पूरे महाराष्ट्र में शाखा चलने लगी। शाखाओं की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने देश के हिन्दुओं को संगठित करने का संकल्प लेते हुए वर्ष 1925 की विजयदशमी के पावन मुहूर्त पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रादुर्भाव गुलाम भारत के समय हुआ लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी संघ की शाखाएं पूरे देश में फैल गई जिससे ब्रिटिश सरकार के कान खड़े हो गए। इतना ही नहीं, संघ के बढ़ते प्रभाव से भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया। प्रतिबन्ध के बाद भी देश में संघ का विस्तार बढ़ता ही गया। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। देश में खुशी का माहौल था लेकिन 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी।
यह घटना समस्त देशवासियों के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी। सरकार ने मुस्लिम कट्टरपंथियों एवं वामपंथियों के दबाव में गांधी जी की हत्या के लिए संघ की भागीदारी प्रदर्शित करते हुए 4 फरवरी 1948 को संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया। कालान्तर में आरोप निराधार साबित होने पर 12 जुलाई 1949 को संघ से प्रतिबन्ध हटाना पड़ा। संघ से प्रतिबन्ध हटाने पर सरदार बल्लभ भाई पटेल जी ने तत्कालीन सर संघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर गुरूजी को लिखे पत्र में लिखा कि केवल मेरे नजदीकी लोग ही जानते हैं कि जब संघ पर से प्रतिबन्ध हटाया गया तो मैं कितना प्रसन्न था। मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
संघ पर प्रतिबन्ध लगाने का क्रम चलता ही रहा। 25 जून 1975 को जब इंदिरा गांधी ने देश में आपात्काल की घोषणा की, उस समय संघ पर प्रतिबंध लगाकर सभी स्वयंसेवकों को जेल में बन्द कर दिया। इतना ही नहीं, 6 दिसम्बर 1992 को जब अयोध्या की बाबरी मस्जिद को कार सेवकों ने ध्वस्त कर दिया, तब सरकार ने 10 दिसम्बर 1992 को मुस्लिम कट्टरपंथियों एवं वामपंथियों को खुश करने के लिए फिर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया लेकिन प्रतिबन्ध के बाद भी संघ के विस्तार में कोई रूकावट नहीं आई और संघ का कारवां बढ़ता गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनियां का सबसे बड़ा सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रवादी एवं गैर राजनैतिक संगठन है जिनकी 50 हजार शाखाओं में 50 लाख से अधिक स्वयंसेवक अपना सम्पूर्ण जीवन भारत माता के चरणों में समर्पित किए हुए हैं। तभी तो 1962 के भारत, चीन युद्ध में संघ कार्यकर्ता देश भर में रक्तदान एवं चन्दा एकत्र करने का अभियान चलाया। संघ ने जनता में देशभक्ति की भावना पैदा की, तब पं. नेहरू ने संघ के स्वयंसेवकों के एक दस्ते को 26 जनवरी 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर संघ के कार्यो की प्रशंसा की। इतना ही नहीं, जब-जब देश के ऊपर युद्ध थोपा गया या देश में प्राकृतिक आपदायें आई, संघ के स्वयंसेवकों ने बिना भेदभाव के अपनी सेवाएं दी।
अभी हाल में घटित उत्तराखण्ड एवं काश्मीर की त्रासदी में संघ के स्वयं सेवकों का योगदान एक उदाहरण है। संघ देश के काम आने वाला, देश के लिए समर्पित संगठन है। उसकी अच्छाइयों की पूजा करनी चाहिए। संघ की मान्यता है कि हिन्दुत्व हमारे राष्ट्र की पहचान है। उसमें अन्य धर्मावलम्बियों को अपने में मिला लेने की क्षमता है। संघ ने देश में विस्तारवादी धारणा के तहत करोड़ों साधू संतों एवं नागरिकों को जोड़ा। इतना ही नहीं, देश में संस्कारवान शिक्षा के लिए सरस्वती विद्यालयों, वनवासी कल्याण परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद, बजरंग दल जैसे कई दर्जन अपने आनुषंगिक संगठन खड़े कर सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में जोडऩे की महती भूमिका निभाई।
एक समय देश में ऐसा वातावरण था जब बहुसंख्यक सनातन संस्कृति का अनुयायी उपेक्षित हो रहा था। तब संघ ने उन्हें राष्ट्रीयता की भावना का पाठ पढ़ाकर सनातन संस्कृति के अनुयायी हिन्दू धर्मावलम्बियों के आन बान एवं शान की रक्षा की। संघ का तो यहां तक मानना है कि हिन्दुस्तान की धरती पर रहने वाला हर नागरिक हिन्दू है चाहे वह जिस धर्म या मजहब का अनुयायी हो।
देश के करोड़ों राष्ट्रभक्त नागरिकों को संघ के प्रति अपार श्रद्धा है, तभी तो उन्हें संघ के गीतों से शक्ति की प्रेरणा मिलती है। संघ की कार्य पद्धति में देश सेवा के साथ समर्पण एवं सम्पूर्ण सृष्टि के संरक्षण की धारणा भरी है। संघ के कार्यो को दृष्टिगत रखते हुए देश के सब नागरिकों के मन में संघम शरणम गच्छामि की धारणा होनी चाहिए, चाहे वह जिस धर्म का हो। संघ मानवीय संवेदनाओं से युक्त देश का ऐसा संगठन है जिससे जुड़कर राष्ट्रवादी व्यक्ति अपने आपको कृतज्ञ महसूस करता है। संघ कार्य भगवान परशुराम एवं हनुमान जी महाराज की तरह चिरंजीवी है और डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार संघ के आदर्श क्रि याशील स्वयंसेवकों के लिए ही नहीं अपितु समस्त हिन्दू हृदयों के प्राण प्रिय हैं और इस धरा पर जब तक हिन्दू जीवित रहेगा, तब तक वे अमर रहेगें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिस मुकाम पर खड़ा है उसके पीछे लम्बा संघर्ष एवं उसके लाखों स्वयंसेवक हैं जो अंगद की पैर की तरह अडिग हैं। डॉ० हेडगेवार जी ने संघ के निर्माण के समय जो कल्पना की थी, उस कल्पना को साकार करने में उनके उत्तराधिकारी श्री माधव सदाशिव गोलवलकर गुरूजी, श्री बाला साहब देवरस, श्री राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया, श्री कुप.सी. सुदर्शन, वर्तमान सर संघचालक श्री मोहन राव भागवत का कुशल नेतृत्व एवं लाखों स्वयंसेवकों का संघ के प्रति समर्पण का प्रयास ही रहा कि आज हम गर्व एवं सम्मान से ऐसे राष्ट्र के नागरिक है जिसकी सनातन संस्कृति एवं हिन्दुत्व जीवन शैली की मिसाल पूरे विश्व में अलग है और यही हमारे राष्ट्र की पहचान है जो राष्ट्र को शिखर पर ले जाने में सहायक होगी।
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