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- To Adopt EV, India Will Have To Build Charging Infrastructure First, Focus On Battery Manufacturing Is Also Necessary
नई दिल्ली31 मिनट पहले
दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक कार मार्केट कौन सा है? जवाब है चीन। सबसे बड़ा EV मैन्युफैक्चरर कौन है? चीन। अब कुछ आंकड़ों को देखते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जितनी भी EV इस साल बिकेगी उनसे ज्यादा अकले चीन में बिकने की उम्मीद है। दुनिया के टॉप EV ब्रांड में से करीब आधे चीन के हैं। अमेरिका में नई कारों की कुल बिक्री में EV की हिस्सेदारी अब जाकर 5% हो पाई है। इसे चीन ने 2018 में ही हासिल कर लिया था।
यानी जो इलेक्ट्रिक, दुनिया के ज्यादातर देशों के लिए भविष्य है वो चीन के ऑटो मार्केट के लिए वर्तमान है। ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल होगा कि चीन ने इतना कुछ इतनी तेजी से कैसे हासिल किया? चीन का EV मार्केट में दबदबे का क्या कारण है? भारत को अगर अपने EV अडॉप्शन को बढ़ाना है तो वो चीन से क्या सीख सकता है? तो चलिए इन सवालों के जवाब जानते हैं। लेकिन उससे पहले चीन के EV मार्केट को देख लेते हैं।
EV में सबसे तेजी से बढ़ता मार्केट चीन
चीन दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता EV मार्केट है। इस साल यानी 2022 में उसकी EV बिक्री दोगुनी होकर लगभग 60 लाख व्हीकल तक पहुंचने की उम्मीद है। ये पूरी दुनिया में बिकने वाली EV की संख्या से भी ज्यादा है। इतना ही नहीं दुनिया के टॉप-10 सबसे ज्यादा बिकने वाले EV ब्रांड में से आधे चीनी हैं। इस साल, चीन में खरीदी गई सभी नई कारों में से एक चौथाई यानी 25% पूरी तरह से इलेक्ट्रिक या प्लग-इन हाइब्रिड होगी।
चीनी कंपनी BYD और SAIC केवल टेस्ला से पीछे
कुछ अनुमानों के अनुसार, 300 से ज्यादा चीनी कंपनियां EV बना रही हैं, जिसमें सस्ती गाड़ियों से लेकर टेस्ला और जर्मन व्हीकल मैन्युफैक्चरर्स को टक्कर देने वाले हाई-एंड मॉडल शामिल हैं। चीन की इलेक्ट्रिल व्हीकल कंपनी SIAC और बिल्ड योज ड्रीम्स (BYD) ग्लोबल मार्केट शेयर में केवल टेस्ला से पीछे है। ज्यादा EV सेल्स के लिए चीनी सरकार सब्सिडी पर भी अच्छी खासी रकम खर्च करती है।
चीन की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफैक्चरर कंपनी BYD ने जुलाई में चीन के वुहान में एक ऑटो शो में कारों को डिस्प्ले किया था।
EV बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में भी बड़ा प्लेयर चीन
कार की बिक्री के अलावा चीनी बैटरी मैन्युफैक्चरर CATL और BYD इंडस्ट्री में सबसे बड़े प्लेयर्स हैं। वहीं देश में लगभग 50 लाख चार्जिंग यूनिट हैं, जो एक साल पहले की संख्या से दोगुनी है। आने वाले दिनों में ये और भी बढ़ने वाली है। चीन एक दशक से अधिक की सब्सिडी, लंबी अवधि के निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के बाद इस मार्केट में अपने दम पर खड़ा हो पाया है। अब उन सवालों के जवाब जान लेते हैं जिनका हमनें ऊपर जिक्र किया था।
EV मार्केट में चीन के दबदबे का कारण?
1. सब्सिडी पर फोकस किया
चीन ने करीब एक दशक पहले तय किया था कि वो इलेक्ट्रिक मार्केट में वर्ल्ड लीडर बनेगा। इसे हासिल करने के लिए उसके सामने दो बड़ी चुनौतियां थी। इलेक्ट्रिक व्हीकल की कॉस्ट को कम करना और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना। पहली चुनौती का सामना करने के लिए चीनी सरकार ने एंडवांस्ड टेक्नोलॉजी डेवलप करने के साथ सब्सिडी पर फोकस किया। सेल्स की करीब 33% सब्सिडी ऑटोमेकर, सप्लायर और कंज्यूमर तीनों को दी गई।
2. टेस्ला के लिए नियम बदले
सब्सिडी के अलावा बैटरी मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन में भी चीनी सरकार कंपनीज को काफी ज्यादा सपोर्ट करती है। चीन में बाहर की कंपनी को फैक्ट्री लगाने के लिए चाइनीज ऑटोमेकर के साथ जॉइंट वेंचर में आना पड़ता है। फोर्ड और जीएम जॉइंट वेंचर में चीन में काम कर रहे हैं। लेकिन टेस्ला को यूनीक डील मिली है। वो बिना जॉइंट वेंचर के फैक्ट्री ऑपरेट करता है। टेस्ला के आने का फायदा चीन को भी मिला।
शंघाई में टेस्ला कारें। टेस्ला फैक्ट्री को अनुमति देने के चीन के फैसले को चीनी मैन्युफैक्चर्स को सीधे इंडस्ट्री लीडर के साथ कॉम्पिटिशन करने के लिए फोर्स करने के तरीके के रूप में देखा गया था।
3. बैटरी मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस
इलेक्ट्रिक व्हीकल में सबसे ज्यादा खर्च बैटरी पर होता है। इस कारण चीन सरकार ने बैटरी मैन्युफैक्चरिंग पर भी काफी ज्यादा फोकस किया है। zozo go के CEO माइकल ड्यून के अनुसार साउथ-ईस्ट एशिया के टॉप बैटरी मैन्युफैक्चरिंग कंट्रीज में जापान, कोरिया और चाइना है। ग्लोबल व्हीकल बैटरी प्रोडक्शन में इनकी हिस्सेदारी 95% से ज्यादा है। इसमें से भी 60% हिस्सेदारी अकेली चीन की है। चीनी बैटरी मैन्युफैक्चरर CATL और BYD इंडस्ट्री में सबसे बड़े प्लेयर्स हैं।
zozo go के CEO माइकल ड्यून के अनुसार साउथ-ईस्ट एशिया के टॉप बैटरी मैन्युफैक्चरिंग कंट्रीज में जापान, कोरिया और चाइना है
4. इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने को नेशनल प्रायोरिटी माना
अब दूसरी चुनौती चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं। चीन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी काफी खर्च कर रहा है। इसे उसने नेशनल प्रायोरिटी बनाया है। देशभर में वो चार्जिंग नेटवर्क को फैला रहा है। अभी उसके पास 5 लाख से ज्यादा चार्जिंग पॉइंट है। चीन बैटरी स्वैपिंग स्टेशन पर भी फोकस कर रहा है। चीनी ऑटोमेकर नियो का इस साल बैटरी स्वैपिंग स्टेशन को दोगुना करने का प्लान है। गिली का प्लान 2023 तक 200 बैटरी स्वैपिंग स्टेशन बनाने का है।
जिनझोंग में फोटोवोल्टिक सिस्टम के अंडर नई इलेक्ट्रिक कारें पार्क की गईं। चीन में इस साल बिक्री दोगुनी होकर लगभग 60 लाख पहुंचने की उम्मीद
5. इलेक्ट्रिक व्हीकल डेवलपमेंट
चीन के राष्ट्रपति, शी जिनपिंग ने 2014 में कहा था, ‘इलेक्ट्रिक व्हीकल का डेवलपमेंट ही एकमात्र तरीका है जिससे उनका देश एक बड़ी ऑटोमोबाइल कंट्री से एक ऑटोमोबाइल पावर में बदल सकता है।’ इसके साथ ही उन्होंने 2025 तक नई कारों की बिक्री में 20% इलेक्ट्रिक व्हीकल का गोल रखा था। पूरी उम्मीद है कि चीन इस गोल को 3 साल पहले यानी 2022 में ही हासिल कर लेगा। इस साल चीन में बिकने वाली सभी EV की लगभग 80% डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरर्स ने बनाई है।
चीन से क्या सीख सकते हैं?
किसी भी देश को अगर अपना EV एडॉप्शन बढ़ाना है तो चीन की ही तरह ईवी की कॉस्ट को करने के साथ, बैटरी मैन्युफैक्चरिंग और चार्जिंग नेटवर्क पर फोकस करना होगा। इसके अलावा और भी कई तरीके है जो EV अडॉप्शन बढ़ाने के लिए चीन अपनाता है। जैसे वो पेट्रोल-डीजल कार के लिए शंघाई में लाइसेंस प्लेट के तौर पर 12,000 डॉलर वसूलता हैं। EV में ये फीस नहीं लगती। बीजिंग में सिटी सेंटर में इलेक्ट्रिक कार से ही एंट्री मिलती है।
फीचर्स पर फोकस करना होगा
दुनिया के ज्यादातर EV मार्केट जहां अभी भी सब्सिडी और फाइनेंशियल इन्सेंटिव्स पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं, वहीं चीन ने एक नए फेज में एंट्री ले ली है। यहां कंज्यूमर्स अब सरकारी सब्सिडी पर निर्भर नहीं है। वो अब पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कार्स के फीचर्स और प्राइस का इलेक्ट्रिक कार्स के फीचर्स और प्राइस से कंपेरिजन कर नई कार खरीद रहे हैं। यानी दुनियाभर को कार मेकर्स को ज्यादा से ज्यादा फीचर्स देने होंगे।
लिउझोउ में एक फैक्ट्री में वूलिंग होंगगुआंग मिनी इलेक्ट्रिक व्हीकल। $4,500 की चार सीटों वाली हैचबैक 2021 में चीन की सबसे अधिक बिकने वाली EV रही।
भारत EV एडॉप्शन में पीछे क्यों?
इंडियन कंज्यूमर्स में इलेक्ट्रिक कारों से जुड़ी तीन बड़ी आशंकाएं हैं। पहला तो ये है कि इलेक्ट्रिक कारों की कीमत काफी ज्यादा है। दूसरी बात ये है कि इनके विकल्प बड़े सीमित हैं। हालांकि, अब इलेक्ट्रिक कारें बड़ी संख्या में मार्केट में उतारी जा रही हैं। ग्राहकों की तीसरी चिंता इससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी का होना है। मतलब ये कि भारत में अभी भी इलेक्ट्रिक कारों को चार्ज करने की फैसिलिटी बहुत कम हैं। अभी ज्यादातर लोग घर में ही अपनी कार को चार्ज करते हैं।
भारत के पीछे रहने का एक और कारण दूसरे देशों पर निर्भरता है। इलेक्ट्रिक कारों की बैटरियों के लिए भारत को चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। लिथियम-आयन बैटरी के कारोबार के मामले में भी चीन अव्वल है। हालांकि सरकार चाहती है कि भारत दुनिया भर में इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र बन जाए। साथ ही सुजुकी और टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कंपनियों ने लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण में भारी निवेश का एलान किया है।
भारत का प्लान
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान के तहत सरकार ने 2025 तक देश में 60-70 लाख इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड व्हीकल्स उत्पादन का लक्ष्य रखा है। सरकार को उम्मीद है कि 2030 तक इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की सेल्स 30% प्राइवेट कारों, 70% कॉमर्शियल व्हीकल्स और 80% दो और तीन पहिया वाहनों की होगी। इलेक्ट्रिक व्हीकल मार्केट 2025 तक लगभग 475 बिलियन रुपए का होने की उम्मीद है।
भारत, चीन से पीछे और जापान से आगे एशिया में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए सबसे बड़े बाजारों में से एक है। यदि भारत अपने 50% इलेक्ट्रिफिकेशन के ट्रू पोटेशियल को हासिल कर लेता है, तो विश्व स्तर पर बेचे जाने वाले प्रत्येक 10वें EV का निर्माण भारत में किया जा सकता है। इससे भारत वैश्विक ईवी पावर हाउस बन जाएगा। कंज्यूमर भी धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वेरिएंट को अपना रहे हैं और पसंद कर रहे हैं, जिसका सबूत मांग में इजाफा है।
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