डूंंगरपुर3 घंटे पहले
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आचार्यश्री प्रद्युम्मन विमल सुरीश्वर ने कहा कि जन्म के पश्चात दीक्षा के माध्यम से संयम का अवतरण होता है, लेकिन मनुष्य जीवन में रहकर यदि हम परोपकार के भाव को विकसित करें तो यहीं जन्म की सार्थकता है। आचार्यश्री ने यह बात मंगलवार को ओटा स्थित नेमिनाथ मंदिर के पुण्य प्रवचन हॉल में आचार्यश्री के 59 वें जन्म दिवस तथा 49 वीं दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य में श्री जैन श्वेताम्बर वीशा पोरवाड़ संघ द्वारा आयोजित समारोह में धर्म प्रेमियों से कहे।
उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों में मनुष्य भव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है और उसमे जन्म लेने के पश्चात यदि हम परोपकार की भावना से मानव मात्र के कल्याण के लिए कार्य नहीं करेें तो उस जीवन की सार्थकता पशु समान हो जाती है। साधुत्व अपनाने के पश्चात संयम, प्रमुख अस्त्र होता है जिसके माध्यम से धर्म प्रेमियों को धर्म के मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं।
ताकि वह जीवन में आने वाली हर कठिनाई का सहजता से मुकाबला कर सकें। आज जीवन के यर्थाथ को भुला दिया गया है और केवल धन अर्जन का माध्यम बना दिया गया है और यही मनुष्य के मन में विकारों को पैदा करता है। श्री गंभीरा पार्श्वनाथ महिला मण्डल द्वारा संयम पथ पर चालों नाटिका का मंचन कर धर्म प्रेमियों को जीवन की यर्थातता से रूबरू कराया।
साथ ही डूंगरपुर संघ द्वारा निकाले जाने वाले छरिपालित संघ के पोस्टर का विमोचन किया। इस दौरान मगरवाडा के गादिपति सहित वीशा पोरवाड महासंघ के अध्यक्ष रोशन दोशी, डूंगरपुर संघ के अध्यक्ष हेमेन्द्र मेहता, सचिव संजय मेहता, हर्ष मेहता, सिद्धार्थ मेहता, चातुर्मास के लाभार्थी महावीर जैन विरेन्द्र मेहता सहित वागड़ संघ के बड़ी संख्या में धर्म प्रेमी उपस्थित थे।
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