दलित जगरूप की मौत के बाद उनके घर पर शोकाकुल महिलाएं
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले की पट्टी थाना क्षेत्र के उड़ैयाडीह गांव के दलित ख़ौफ़ज़दा हैं। कुछ रोज़ पहले 50 वर्षीय जगरूप गौतम नामक दलित को समीप के गांव पूरे गुलाब स्थित दुर्गा पंडाल में बुरी तरह पीटा गया। गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन दो दिन बाद उनकी मौत हो गई। इस मामले में पुलिस ने तीन लोगों के ख़िलाफ़ ग़ैर–इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। तीन में से दो मुख्य हत्या के अभियुक्त सगे भाई हैं। इस मामले में पुलिस ने एक अभियुक्त को गिरफ़्तार किया है और दो अन्य फ़रार हैं। मृतक की बेटी गीता देवी कहती हैं, “साहब हम बहुत ख़ौफ़ में हैं। हमें धमकियां मिल रही हैं कि अभी बाप को मारा है, अगला नंबर तुम्हारा है। हम बहुत डरे हुए हैं।“
जगरूप गौतम के दामाद शिवप्रसाद का कहते हैं कि मेरे ससुर का गुनाह सिर्फ़ इतना था कि पूजा पंडाल में उन्होंने दुर्गा मूर्ति के पैर छू लिए थे। वह कहते हैं “वह माताजी के दरबार में दर्शन करने गए थे। मूर्ति को छूने पर दबंगों ने “चमार” बोलकर उनपर हमला बोल दिया और उन्हें मारने–पीटने लगे। जातिसूचक गालियां देते हुए उनकी पिटाई की गई। मेरे ससुर को तब तक पीटा गया, जब तक वो अधमरा नहीं हो गए। हालत गंभीर होने पर अभियुक्त ही उन्हें उनके घर लाए और छोड़कर फ़रार हो गए। मेरे ससुर बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थे। ख़बर मिलने पर मैं एक अक्टूबर को उड़ैयाडीह आया। उस समय ससुर की हालत काफ़ी ख़राब थी। सिर में गंभीर चोट आई थी।“
“हमें कुछ नहीं सूझा तो मैं गांव के बंगाली डॉक्टर को बुलाकर ले आया। डॉक्टर ने उन्हें देखकर दवा दी और इंजेक्शन लगाया। मगर उनकी तबियत लगातार बिगड़ती चली गई। बाद में एक अक्टूबर 2022 को सुल्तानपुर के रामनगर में उनका इलाज कराने ले गया। उपचार के दौरान 2 अक्टूबर की सुबह 9 बजे उनकी मौत हो गई। ससुर की मौत के बाद हमने थाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने जैसा बोला, वैसा हमने लिख दिया। हम बार–बार कहते रहे कि मेरे ससुर को सिर्फ़ दलित होने की वजह से मार डाला गया, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं सुनी। हम न्याय चाहते हैं।” हालांकि अभियुक्त पक्ष के लोग इस बात से साफ़ इनकार कर रहे हैं और पुलिस–प्रशासन भी दलित होने की वजह से हत्या की बात मानने को तैयार नहीं है।
ख़ौफ़ज़दा दलित परिवार
जगरूप का घर उड़ैयाडीह में है और वारदात समीप के गांव पूरे गुलाल हुई, जो बेदुआ ग्राम पंचायत का हिस्सा है। जगरूप अपनी बेटी गीता की शादी सुल्तानपुर में शिवप्रसाद से कर रखी है। जगरूप गौतम की मौत के क़रीब चार दिन बाद भी पीड़ित परिवार ख़ौफ़ज़दा है। प्रशासन की ओर से उन्हें पूरी सुरक्षा मुहैया कराई गई है। दलित बस्ती में सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। घर में रिश्तेदारों से ज़्यादा पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अफ़सरों की आवाजाही लगी रहती है। जगरूप की मौत के बाद से गांव में ज़बर्दस्त तनाव है। उड़ैयाडीह में पुलिस और दलितों की गाड़ियों की आवाजाही बढ़ गई है।
इस बीच, जगरूप गौतम की पत्नी राधा देवी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह कह रही हैं कि हत्या के मामले में अब तक कोई पुख़्ता कार्रवाई नहीं हुई है। हम दलित हैं, इसलिए हमारी सुनवाई नहीं हो रही है। किसी ऊंची जाति के आदमी का कत्ल हुआ होता तो पुलिस बुल्डोज़र लगाकर दबंगों का घर ढहा दी होती। मेरी शिकायत पर पुलिस ने दो अक्टूबर को रपट दर्ज की थी। घटना का ज़िक्र करते हुए वह सुबकने लगती हैं। कहती हैं, “30 सितंबर 2022 को मेरे पति जगरूप शाम लगभग छह बजे मेरी ननद सरस्वती को विदा करने गए थे। गांव में ही शिरोमणि मिश्रा के घर के समीप दुर्गा पंडाल लगा था। जगरूप दर्शन करने दुर्गा पंडाल में चले गए। शिरोमणि के पुत्र कुलदीप मिश्र और संदीप मिश्र भी पंडाल में मौजूद थे। मेरे पति ने दुर्गा की मूर्ति के पैर छू लिए। इस पर दोनों भाइयों ने उन्हें जातिसूचक गालियां दी। जगरूप के एतराज जताने पर कुलदीप मिश्र व संदीप मिश्र के अलावा एक अन्य व्यक्ति ने मिलकर उन्हें लाठी–डंडों पीटना शुरू कर दिया। कुर्सी उठाकर उन्होंने अपना बचाव करने की कोशिश की, लेकिन उनके ऊपर तब तक हमला किया गया, जब तक वह मरणासन्न नहीं हो गए।“
जगरूप गौतम की पत्नी अपने पति को याद करके रोने लगती हैं, जबकि पास बैठी महिलाएं उन्हें सांत्वना देती हैं। उनके पास बैठी उनकी बेटी गीता देवी रोते हुए कहती हैं, “मेरे पिता की जिस रोज़ पीट–पीटकर लहूलुहान किया गया उस दिन मैं अपने ससुराल में थी। मेरे पिता को सिर्फ़ इस बात के लिए पीटा गया कि उन्होंने दुर्गा पंडाल में देवी के पैर छू लिए थे। दलित होने की वजह से ब्राह्मण समुदाय यह कहकर पीटा कि उसके छूने से ‘मातारानी’ अपवित्र हो गईं। दबंगों ने तो उन्हें मौके पर ही अधमरा कर दिया था। वो कहती हैं, ” लोग कह रहे हैं कि मेरे पिता को इसलिए पीटा गया, क्योंकि उन्होंने अभियुक्तों से उनकी बाइक पर लिफ्ट मांगा था और दोनों भाइयों ने इनकार कर दिया था। समूचे मामले को रफ़ा–दफ़ा करने के लिए झूठी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं कि पिता का दिमागी संतुलन ठीक नहीं था। लेकिन दोनों बातें सरासर झूठ हैं। हमारे पिता पूरी तरह स्वस्थ थे। अगर उनकी दिमागी हालत ख़राब होती तो भला किसी महिला की विदाई करने कैसे चले जाते? हमारी बुआ की विदाई के बाद वह दुर्गा पंडाल में देवी की मूर्ति के सामने मत्था टेकने चले गए। दबंगों ने उन्हें ऐसा करने से रोकते, इससे पहले उन्होंने मातारानी के क़दमों पर शीश नवा दिया। दलित होने के कारण ब्राह्मण समुदाय के लोग चिढ़ गए। उनका कहना था कि दलित के छूने से देवी अपवित्र हो गईं। इसी बात पर विवाद शुरू हुआ और कुलदीप मिश्र और संदीप मिश्र ने लाठियों से उन पर हमला बोल दिया। मेरे पिता निहत्थे थे। कुछ ही देर में वो मरणासन्न हो गए।“
जगरूप की मौत को लेकर सोशल मीडिया पर दो तरह की बातें उठाई जा रही हैं। दलित समुदाय के लोगों का कहना है कि दुर्गा की मूर्ति छूने के कारण उनकी पिटाई की गई थी। तीन आरोपियों के ख़िलाफ़ ग़ैर–इरादतन हत्या और अनुसूचित जाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
सीसीटीवी फुटेज में क्या है?
पूजा पंडाल में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे का एक फुटेज सामने आया है। बताया जा रहा है कि यह फुटेज उसी दुर्गा पंडाल का है, जहां जगरूप गौतम को पीटा गया था। क़रीब 6.46 सेकेंड के सीसीटीवी फुटेज में लगभग 2.36 सेकेंड पर पंडाल के अंदर एक व्यक्ति कुर्सी उठाए हुए है और दो–तीन लोग उसे गिराकर पीट रहे हैं। बताया जा रहा है कि सीसीटीवी फुटेज में जगरूप को पीट रहे लोगों में कुलदीप मिश्र, संदीप मिश्र और मुन्ना पाल हैं।
प्रतापगढ पुलिस इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि दुर्गा पंडाल में मूर्ति छूने की वजह से जगरूप गौतम को पीट–पीटकर लहूलुहान किया गया। सोशल मीडिया पर मूर्ति के पैर छूने पर मारपीट की घटना को वायरल किया जा रहा है, लेकिन वह पूरी तरह असत्य है। वहीं, इस मामले में 4 अक्टूबर 2022 की सुबह मृतक के दामाद का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह पैर छूने पर मारने–पीटने की बात कह रहा है।
पूर्वी प्रतापगढ़ के एएसपी विद्यासागर मिश्र कहते हैं, “जगरूप गौतम अपने गांव में ही शिरोमणि मिश्रा के घर में लगे दुर्गा पंडाल में गए थे। वहां कुलदीप मिश्र और संदीप मिश्र पहले से मौजूद थे। इस दौरान जगरूप ने अपनी बहन को घर तक छोड़ने के लिए कुलदीप और संदीप से कहा तो उन्होंने मना कर दिया था। इस बात पर विवाद हुआ और कुलदीप और संदीप ने उनकी पिटाई कर दी, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। आरोपियों की तलाश के लिए टीम भी गठित की गई है। पीड़ित परिजन को सरकार से आर्थिक सहायता दिलवाने के लिए पत्राचार किया जा रहा है। जगरूप की पत्नी राधा देवी ने पुलिस में जो शिकायत दी है उसमें भी मूर्ति छूने अथवा उसके कारण मारपीट का जिक्र नहीं है।” हालांकि मृतक जगरूप गौतम के परिजनों का कहना है कि पट्टी थाना पुलिस ने दबाव बनाकर मनमाने ढंग से एफ़आईआर दर्ज कराई है। राधा देवी अनपढ़ महिला हैं। इसीलिए इनके आरोप और एफ़आईआर में अंतर है।
दो अक्टूबर को जगरूप की मौत के बाद उनके दामाद शिवप्रसाद की शिकायत पर पुलिस मौक़े पर पहुंची और शव को क़ब्ज़े में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पट्टी थाने के कोतवाल नंदलाल सिंह ने बताया कि अगले दिन तीन अक्टूबर को लाश घर आई तो परिजनों के साथ दलित बस्ती के लोग मुआवज़ा और ज़मीन के लिए अड़ गए। पीड़ित पक्ष ने मृतक का अंतिम संस्कार न करने का ऐलान कर दिया। काफी जद्दोजेहद के बाद 4 अक्टूबर 2022 की शाम पांच बजे मृतक का अंतिम संस्कार के लिए परिवार के लोग तैयार हुए।” फिलहाल प्रशासन ने भूमि आवंटन और यथासंभव मुआवज़ा देने का भरोसा दिया है। देर शाम एक आरोपी कुलदीप मिश्रा को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है और दो अन्य अभियुक्त अभी फ़रार हैं।
तनाव की स्थिति
दलित जगरूप गौतम की मौत के बाद पूरा गुलाब में हत्या के अभियुक्तों के घर पर सन्नाटा पसरा है। महिलाएं ख़ौफ़ में हैं। अभियुक्तों के परिवार के लोग बात करने के लिए तैयार नहीं है। बताया जा रहा है कि डर के मारे घर के पुरुष सदस्य कहीं दूसरी जगहों पर चले गए हैं। गांव में तनाव बरक़रार है। मौक़े पर पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं। सवर्ण तबक़े के लोगों का कहना है कि दुर्गा पंडाल में आज तक कभी किसी दुर्गा मूर्ति छूने से कभी नहीं रोका गया। लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि आख़िर 30 सितंबर 2022 को ऐसा क्या हुआ कि ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने दलित जगरूप पर हमला बोल दिया? इस सवाल का जवाब गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं देना चाहता है। गांव के लोग बताते हैं कि दोनों पक्षों में इससे पहले भी कोई विवाद नहीं था। दलित समुदाय के लोग ब्राह्मणों के खेत–खलिहान में काम भी किया करते थे। जिन लोगों पर हत्या का आरोप लगा है, पुलिस के अभिलेखों में उन पर अब तक किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल होने के प्रमाण नहीं हैं।
क़रीब चार हज़ार की आबादी वाले उड़ैयाडीह में कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “जगरूप पर हमला करने वालों का भले ही को कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन इनकी गुंडागर्दी से दलित और ग़रीब तबक़े के लोग कांपते रहे हैं।” वहीं जगरूप की हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। एक ओर जहां सोशल मीडिया पर कुछ पूजा पंडाल में मूर्ति छूने पर दलित की हत्या किए जाने की निंदा कर रहे हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी इसे दलित उत्पीड़न बता रहे हैं। पट्टी विधानसभा क्षेत्र के बसपा महासचिव अखिलेश गौतम कहते हैं, ” पट्टी तहसील के उड़ैयाडीह के आसपास के गांव गजनीपुर, भदेवरा, सांगा पट्टी, पूरे गुलाब में ब्राह्मण और दलितों की आबादी ज़्यादा है। ऊंची जातियों की दबंगई से दलित समुदाय के लोग भयभीत रहते हैं। दबंगों के घरों के लड़के जब–तब अकारण दलितों के बच्चों के साथ मारपीट करते रहते हैं। अब दलित अत्याचार सहन नहीं किया जाएगा। जु़ल्म बंद नहीं हुआ और पीड़ितों को इंसाफ़ नहीं मिला तो दलित समाज सड़क पर उतरकर आंदोलन करने को बाध्य होगा। यूपी में दलितों की लगातार हत्या और उनके उत्पीड़न की ख़बरें आ रही हैं।“
प्रतापगढ़ के पट्टी इलाक़े में दलित जगरूप को पीट–पीटकर हत्या किए जाने का मामला पहला नहीं है। 16 जून 2019 को एक दलित युवक विनय प्रकाश सरोज उर्फ़ बबलू (33) को उसी के सुअरबाड़े में चारपाई से बांधकर ज़िंदा जला दिया गया था। वह घटना पट्टी कोतवाली के बेला रामपुर गांव में हुई थी। सुबह लोगों ने युवक का जलता हुआ शव देखा तो पुलिस को जानकारी दी। मौक़े पर पहुंची पुलिस को ग्रामीणों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा था।
पूर्वांचल में हाल के दिनों में आधा दर्जन दलितों की हत्याएं हो चुकी हैं। इसी साल जुलाई महीने में बनारस के कपसेठी थाना क्षेत्र के सुइलरा गांव में दलित पप्पू का 14 वर्षीय पुत्र विजय गौतम पर चार किलो चावल चुराने का इल्ज़ाम लगाकर बुरी तरह पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। दलित समुदाय का यह बच्चा हाथ जोड़कर दुहाई देता रहा कि वह निर्दोष है, लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी। पुलिस आई तो उसने भी सवर्णों का साथ दिया और अपनी मौजूदगी में बच्चे के परिजनों को बुलाकर उनसे चावल के पैसे की वसूली भी कराई। साथ ही माफ़ीनामे पर अंगूठा भी लगवाया। दलितों का यह भी आरोप है कि समझौते के बाद दबंगों ने दोबारा उसी लड़के को पकड़ा और फिर जमकर पीटा, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। अस्पताल में भर्ती कराने के बावजूद वह ज़िंदा नहीं बच सका। विजय 8वीं कक्षा में पढ़ता था।
राज्य के आला अधिकारी इस बारे में पूछे जाने पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताते लेकिन अनाधिकारिक रूप से सिर्फ़ यही कहते हैं कि पुलिस जांच कर रही है, जो भी दोषी होंगे उन्हें सज़ा ज़रूर मिलेगी। वह कहते हैं कि हर हत्या को दलित–सवर्ण से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है। कुछ जगहों पर आपसी लड़ाई को भी जातीय संघर्ष के रूप में दिखाने की कोशिश होती है जो ठीक नहीं है। जातीय संघर्ष तब समझा जाए जबकि विवाद में दो अलग–अलग पक्षों के कई लोग इसमें शामिल हों। उत्तर प्रदेश में एससी–एसटी आयोग के अध्यक्ष और राज्य के पूर्वी डीजीपी डॉक्टर बृजलाल कहते हैं, “यूपी में योगी सरकार में दलित पूरी तरह सुरक्षित हैं। जहां कहीं भी उनके ख़िलाफ़ अन्याय होता है, तुरंत क़ानूनी कार्रवाई हो रही है। कुछ लोग इन मुद्दों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश में रहते हैं लेकिन इससे उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है।“
क्या है प्रतिशोध की वजह?
जाने–माने पत्रकार और चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, “वास्तव में पिछले कुछ सालों में दलितों के सामाजिक और राजनीतिक हस्तक्षेप ने सवर्णों में एक प्रतिशोध पैदा किया है। यह ऐसी भावना है जिससे उन्हें लगता है कि ये लोग तो पहले हमारे पीछे रहते थे, लेकिन आज वही दबा रहे हैं। इस प्रतिक्रिया का बोझ और ग़ुस्सा सबसे ज़्यादा दलितों और ग़रीब पिछड़ी जातियों पर पड़ता है। यूपी में ठाकुर, ब्राह्मण और यादव जैसी प्रभावशाली जातियां राजनीतिक और सामाजिक दबदबे के लिए हिंसा का सहारा लेती हैं। यूपी में क़रीब 22 सालों से अपर कास्ट के मुख्यमंत्री रहे हैं। योगी आदित्यनाथ एक ठाकुर हैं और इनके कार्यकाल में सवर्ण जाति के लोगों को अनुचित प्रमुखता दी जा रही है।“
“जिस तरह की राजनीतिक विचार वाली शक्तियों का सत्ता में वर्चस्व हुआ है उसमें इस तरह की घटनाएं होना लाज़मी है। सत्ता में क़ाबिज़ लोग खुलेआम ऐलान करते फिर रहे हैं कि मौजूदा संविधान अप्रासंगिक है। वो यहीं रुक नहीं रहे हैं, बल्कि इससे आगे बढ़कर इस बात की मुनादी कर रहे हैं कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था मुनस्मृति के आधार पर चलनी चाहिए। ऐसे लोग समाज को हज़ारों साल पीछे ले जाना चाहते हैं। वह समाज को एक ऐसे युग में खड़ा करना चाहते हैं जहां सब कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथ में हो। बाक़ी लोग चाकर की हैसियत में ज़िंदगी गुज़ारते रहें। उड़ैयाडीह जैसी घटनाएं बताती हैं कि अपनी सोच को अमलीजामा पहनाने में ये ताक़तें कितनी सक्रिय हैं। देश में दलितों पर लगातार बढ़ती ज़ुल्म की घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि जातीय आधारित सामंती सोच कितनी मज़बूत हो गई हैं।“
प्रदीप कुमार यह भी कहते हैं, “देश और समाज एक ऐसी मानसिक ग़ुलामी के दलदल में फंसता जा रहा है जिससे उबर पाना बेहद मुश्किल है। अफ़सोस इस बात का है कि पीड़ित और दलित तबक़ा भी छोटी–मोटी रियायत व व्यवस्था में हिस्सेदारी के सब्ज़बाग में फंसकर सामंतों का पिछलग्गू बनता जा रहा है। इक्का–दुक्का ऐसे मंच जो मौजूद भी हैं तो उनकी सामूहिक प्रतिरोध क्षमता में सेंध लगाने के लिए सामंती सोच के पैरोकार छद्म भेष में शामिल हो गए हैं। लड़ाई मुश्किल है, लेकिन जगह–जगह से उठती आवाज़ें इस उम्मीद को मरने नहीं दे रही हैं कि आने वाले दिनों में यह प्रतिरोध असरदार बनेगा।“
सामंतों का वर्चस्व
इतिहास के पन्नों को खंगालने से पता चलता है कि उपनिवेश काल में प्रतापगढ़ के पूर्ववर्ती राजा, महाराजा, जमींदार और तालुकदार सवर्ण रहे हैं। पट्टी इलाक़े के पुराने राजा देवमणि पांडेय हुआ करते थे, जिनका राज पूरे प्रतापगढ़ पर था। इस ज़िले में सवर्णों की आबादी महज सात–आठ फ़ीसदी है, लेकिन 50 फ़ीसदी से अधिक भूमि का स्वामित्व इनके पास ही है। जनसंख्या के विषम अनुपात में शक्ति, धन और सामाजिक प्रतिष्ठा का हिस्सा हासिल कर रखा है।
दलित समुदाय के साथ ज़ुल्म–ज़्यादती के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने वाले एक्टिविस्ट डा.लेनिन रघुवंशी कहते हैं, “सामंती सोच वाले लोग इसलिए रि–बोल्ट कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आज़ादी के समय जो हमारे पास था वो ग़ुलामों के पास चला गया। उनके अंदर इस बात की खदबदाहट है। खुला सच तो यह भी है कि आज़ादी के बाद कई दशकों तक ठाकुरों ने ब्राह्मणों का पक्ष लिया। आज भी उच्च जातीय मत को प्रायः एक गुट में माना जाता है। आज़ाद भारत के पहले 42 सालों में यूपी के 14 मुख्यमंत्रियों की सूची इस बात का संकेत है कि इस शक्ति का उपभोग उच्च जातियों ने किया, जिनमें पांच ब्राह्मण, तीन ठाकुर, दो वैश्य (बनिया), एक कायस्थ, एक बंगाली ब्राह्मण महिला जिन्होंने अपने सिंधी पति के नाम का टाइटल अपनाया (सुचेता कृपलानी), एक जाट और एक यादव रहे। सत्ता में दलितों की भागीदारी बहुत बाद में मिली।“
“साल 2017 में यूपी में भाजपा की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाने के बाद यह समझा जाने लगा कि यूपी में ठाकुर जाति प्रभावशाली हो गई है, क्योंकि साधु से नेता बने योगी खुद उस जाति से आते हैं। थानों पर जाति विशेष के दारोगाओं की तैनाती इस बात को प्रमाणिक करती है कि जो इल्ज़ाम पहले अखिलेश सरकार पर चस्पा हुआ करता था, वही अब योगी सरकार पर भी चस्पा होने लगा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए वह अपनी ऐसी छवि पेश करें जिस पर लांछन न लगा सके। जब दबंगों की दबंगई बढ़ेगी और दलित समुदाय के लोग ज़ुल्म–ज़्यादती के शिकार होंगे तो देर–सबेर उसका ख़ामियाज़ा सत्तारूढ़ दल को ही भुगतना पड़ेगा।“
प्रतापगढ़ यूपी का 72वां ज़िला है। पहले इसे बेला, बेल्हा, परतापगढ़ अथवा प्रताबगढ़ के नाम से भी जाना जाता रहा है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपना राजनीतिक करियर यहीं से शुरू किया था। प्रतापगढ़ का पट्टी तहसील मूलतः अवध इलाक़े में आता है। इसी तहसील का बाज़ार है उड़ैयाडीह। ज़िला मुख्यालय से क़रीब 25 किमी दूर पट्टी के नज़दीक रूर गांव से सबसे पहले ऐतिहासिक अवध किसान आंदोलन का शुरू हुआ था। यहां दुनिया का इकलौता किसान देवता मंदिर है, जहां किसी भी किसी भी धर्म और संप्रदाय के लोग आ सकते हैं। इस मंदिर का उद्देश्य किसानों को सम्मान दिलाना है। किसान देवता मंदिर पट्टी तहसील के सराय महेश गांव में है। किसान पीठाधीश्वर योगिराज ने किसान देवता मंदिर का निर्माण कराया था।
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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