Kota: समय-समय पर हुए मानव सभ्यता के विकास के जीवंत प्रमाण यहां मौजूद हैं, जो देते हैं गवाही मानव संस्कृति के उत्थान की. हाड़ौती के जंगल और नदियां प्रस्तरयुगीन मानव के क्रियाकलापों और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र थे. इतिहास का ये अनमोल खजाना बताता है कि कैसे आदिमानव नदी-घाटियों, चट्टानों को अपना आश्रय स्थल बनाकर शैलाश्रयों में रहा करता था और अपने कला- कौशल से पत्थरों से औजार बनाकर जंगल के खूंखार जानवरों से ना सिर्फ अपनी आत्म रक्षा करते थे बल्कि जानवरों को मारकर अपना भोजन भी बनाते थे.
आर्थिक दृष्टि से क्रांतिकारी परिवर्तन था
फुर्सत के लम्हों में ये आदिमानव शैलाश्रयों में रहकर शैल चित्र भी बनाते थे, ये शैलाश्रय उनकी कलात्मक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साक्षी हैं. कोटा के आलनिया, बारां के कपिलधारा, बूंदी के हौलासपुर में ये शैलचित्र और प्रस्तर यानि पत्थरों के हथियार मिले हैं. इन शैलचित्रों से हमारे पूर्वजों की जीवन शैली का परिज्ञान होता है. मानव सतत से संस्कृतिक विकास की ओर बढ़ रहा था. उसने अपने शहरों को छोड़कर नदियों के मैदानी भागों में आबाद होने का निश्चय किया और यह मानव इतिहास में एक सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से क्रांतिकारी परिवर्तन था क्योंकि अब मानव आखेटक अवस्था से भोजन संग्रह की अवस्था में प्रवेश कर रहा था. स्थाई आवास ,कृषि कर्म पशुपालन के साथ-साथ आमोद-प्रमोद उसकी प्राथमिकता बन गई.
नदी के तट से भी मध्य पाषाण कालीन औजार प्राप्त हुए
यहीं से ताम्र युगीन संस्कृतिया तीन हजार ईसा पूर्व से प्रारंभ होकर छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक अनेक सांस्कृतिक उतार-चढ़ाव के बीच अपना रास्ता तय करती है. इस खंड में पुरापाषाण और मध्य पाषाण कालीन कुछ प्रस्तर. उपकरण प्रदर्शित किए गए हैं यह प्रस्तर उपकरण झालावाड़ जिले के गागरोन और बूंदी जिले से प्राप्त किए गए हैं . बिलासी नदी के तट से भी मध्य पाषाण कालीन औजार प्राप्त हुए हैं. पुरापाषाण कालीन अवशेषों में हैंड एक्स और क्लीवर, हस्त कुठार और खुरचनी प्रमुख है. दीर्घा में प्रदर्शित मृदा पात्र नमाना और केशोरायपाटन से प्राप्त किए गए हैं.
कोटा के संग्रहालय में मौजूद हैं ये पुरा अवशेष
वहीं, मृदा से बने खिलौने माइक्रोन मूर्तियां जानवर है, यह मौर्य काल से कुषाण काल की है. वहीं पत्थरों और मृदा से बनी श्रृंगार सामग्रियों को देखकर पता चलता है कि उस काल मे महिलाओं में श्रृंगार कला का विकास हो चुका था. कर्णाभूषण, हाथी दांत की चूड़ियां और मृण्मय झावा, सीप के चूडिखण्ड से ततकालीन सौंदर्य प्रसाधन की प्रवृत्ति का भी पता चलता है. कोटा संग्राहलय के अधीक्षक बताते हैं कि कोटा के संग्रहालय में मौजूद ये पुरा-अवशेष मानव संस्कृति के विकास क्रम की विभिन्न कड़ियों को जोड़ने में सहायक हैं और आदिमानव से मानव बनने तक के सफर के जीवंत प्रमाण है जिन्हें संग्राहलय प्रशासन ने बखूबी सहेज कर रखा हुआ है जो आने वाली पीढ़ियों को अपने पूर्वजों के विकास की कहानी को बयां करने के लिए हर रोज उपलब्ध रहते हैं.
Reporter- KK Sharma
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