विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में एक साल में करीब 7.3 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इसके अलावा करीब बीस लाख लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। यह स्थिति परेशान करने वाली है। भारत में आत्महत्या की दर बढ़ने के कारणों को लेकर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा से ज्यादा लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। वे खुद में सिमटते चले जा रहे हैं। उनके प्रत्यक्ष मित्र कम और सोशल मीडिया पर मित्र अधिक हैं। ऐसे लोग अपने परिवार के सदस्यों से कट रहे हैं और अपने फोन या सोशल मीडिया के घेरे तक ज्यादा सीमित हो गए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्या के कारण के लिए पेशेवर या करिअर संबंधित समस्याओं के साथ अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, परिवारिक समस्याओं, मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पुराने दर्द आदि को प्रमुख कारण माना है। विशेषज्ञों के मुताबिक अवसाद शारीरिक और विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य को अक्षम करने वाले कार्य की सूची में सबसे आगे है।
इसके अलावा, गरीबी स्थिति से उपजा चिड़चिड़ापन आगे आक्रामकता, शोषण और दुर्व्यवहार के लिए उकसाने वाले दर्द और निराशा की भावनाओं को बढ़ावा दे सकते हैं। बदलती जीवन शैली, खुद के लिए समय की कमी, परिवारिक संबंधों में दूरियां, घर का नकारात्मक माहौल, प्रेम में विफलता, अकेलापन, शिक्षा और करिअर में गला काट प्रतिस्पर्धा आदि ऐसे कारण हैं, जिनसे लोगों में अवसाद पनप रहा है और अनेक मामलों में इस वजह से ही लोग आत्महत्या करते हैं।
इसमें तनाव मौजूद है, जिससे समाज का लगभग प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है। दहेज जैसी कुप्रथा और परिवारिक समस्याओं के कारण भी महिलाओं की आत्महत्या के मामले सामने आते हैं, वहीं युवाओं द्वारा पढ़ाई का दबाव, करिअर संबंधित समस्याएं और खराब होते रिश्ते आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने की प्रमुख वजह बन रहे हैं।
महामारी के दौर में नौकरियां छिन जाने, अपने करीबियों को खोने और अकेलेपन ने लोगों को चिंतित, उदास, एकाकी और अति संवेदनशील बना दिया है। इस कारण भी कुछ लोग जीवन में आई मुसीबतों का मुकाबला करने के बजाय आत्महत्या की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक आत्महत्या को रोकने का सबसे अच्छा तरीका चेतावनी संकेतों को पहचानना और इस तरह के संकट पर तुरंत सक्रिय होना है।
देश में हर साल लाखों आत्महत्या समाज में हताशा और निराशा व्याप्त होने का जीता जागता प्रमाण है। हालांकि आत्महत्या की समस्या केवल आर्थिक या राजनीतिक समस्या नहीं है, बल्कि इसके पीछे सामाजिक और मानसिक कारण भी मौजूद होते हैं। अगर आर्थिक और राजनीतिक कारणों से समाज में हताशा या निराशा व्याप्त होती है तो उनके निवारण की जिम्मेवारी सरकार की है।
हमारा जीवन अनमोल है। तनाव, हताशा या निराशा का समाधान आत्महत्या नहीं है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि अवसाद से ग्रसित लोगों को मानसिक चिकित्सा के जरिए स्वस्थ बनाया जा सकता है। इसके अलावा, परिवार और समाज का भावनात्मक संबल भी अवसाद में जाने से बचाने में मददगार हो सकता है। परिवार के बड़े-बुजुर्ग, रिश्तेदार, बच्चों से बात करके, अपना दुख उनसे साझा करके तनाव को कम किया जा सकता है। साथ ही पर्यटन एक वैकल्पिक पहलू हो सकता है।
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