महामारी बनी वजह?
सब जानते हैं कि भारतीयों को हृदय से संबंधित जटिलताएं जल्दी होती हैं, लेकिन चिंता 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में बढ़ती मौत है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये ‘ट्रेंड’ कुछ हद तक सोशल मीडिया का पैदा किया हुआ है। सिलेब्रिटी की मौत की रिपोर्ट पर खूब चर्चा होती है। लेकिन ये भी हो सकता है कि महामारी के वर्षों ने भी एक भूमिका निभाई हो। इस दौरान लोग अधिक तनावग्रस्त थे। शिथिलता के कारण वजन भी बढ़ गया। इसके अलावा, कोविड वायरस में एक थ्रोम्बोजेनिक असर होता है, जो थक्के बनाने की क्षमता रखता है।
कोविड ने बढ़ाया तनाव
एलएच हीरानंदानी अस्पताल, मुंबई के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. गणेश कुमार कहते हैं, अनजान हालात के डर से तनाव का स्तर बढ़ता है। नौकरी या दूसरी तरह की सुरक्षा खोने का डर महामारी के दौरान बढ़ गया। युवा लोगों ने इसे और गहराई से महसूस किया। जो लोग अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके हैं, जैसे कि बच्चों की शिक्षा, उनके अधिक तनावग्रस्त होने की संभावना नहीं है। लेकिन जो अभी भी ईएमआई का भुगतान कर रहे हैं, अपने बच्चों की शिक्षा की प्लानिंग कर रहे हैं, उनके तनावग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना है। यही तनाव ज्यादा हो जाए तो समय से पहले हृदयाघात की वजह बन जाता है। नए अध्ययनों से पता चलता है कि अनुवांशिक कारणों के बजाय हृदय के स्वस्थ होने में पोषण एक बड़ी भूमिका निभाता है, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के मामले में।
लेकिन कसरत का क्या लिंक है?
विशेषज्ञों का कहना है कि कॉर्पोरेट सेक्टर में आगे बढ़ने वाले युवा लोगों में तनाव का स्तर अधिक होता है। कोविड ने इसे बढ़ा दिया। लॉकडाउन के दौरान जब लोगों का वजन बढ़ गया तो वे जोरदार व्यायाम करने लगे। यह लाभ से अधिक नुकसान दे रहा था। हार्ट अटैक से सिलेब्रिटीज की मौत भले ही चुनिंदा रही हो, लेकिन एक बात साफ हो गई कि ऐसी घटनाएं किसी को भी, कभी भी शिकार बना सकती हैं।
खास कारण बन जाते हैं घातक
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड रिसर्च में प्रकाशित मुंबई के एक अध्ययन से पता चलता है कि ये घटनाएं इतनी आम नहीं हैं, लेकिन पसीना बहाने वाली गतिविधियों के बाद ये मुमकिन है। केईएम अस्पताल, मुंबई में कार्डियोलॉजी के प्रमुख डॉ. अजय महाजन भी कहते हैं, हृदयगति का अचानक रुक जाना विशिष्ट कारणों से होता है और यह हर किसी में नहीं होता है। कभी-कभी उच्च तनाव की घटनाओं के कारण यह होता है। वायरस या संक्रमण के कारण भी थक्के का खतरा बढ़ जाता है। जहां तक व्यायाम के साथ संबंध की बात है, कई बार लोगों के हृदय में इस तरह की विसंगति होती है, जिसकी जानकारी नहीं होती। यही व्यायाम के दौरान रक्त के प्रवाह को कम कर देती है।
हर साल होती है लाखों की मौत
दिल की बीमारियों से हर साल दुनिया भर में 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन इससे भी बुरी बात यह है कि लगभग एक तिहाई मामलों में परेशानी का पहले से संकेत नहीं मिलता, अचानक मौत हो जाती है। निदान के नए इंतजामों के बावजूद सोशल मीडिया पर यह बताया जाता है कि जिनका ईसीजी और ईकेजी स्कैन बिल्कुल सामान्य था, लेकिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा।डॉक्टरों का कहना है कि पहली बार संकेत मिलने और उपस्थिति और जांच के बीच जो अंतराल होता है, वो नतीजों पर फर्क डाल सकता है। फिर भी ऐसे संकेत हैं, जिन्हें कभी भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। सबसे पहले सीने में दर्द होता है। किसी व्यक्ति के सीने में दर्द के साथ अस्पताल पहुंचने के लगभग तुरंत बाद टेस्ट शुरू हो जाते हैं।
जरूरी हैं कुछ टेस्ट
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम टेस्ट: इसे ईसीजी या ईकेजी भी कहा जाता है। यह एक सामान्य टेस्ट है, जो हृदय की धड़कन से पैदा हुए छोटे विद्युत आवेगों को रिकॉर्ड करता है। इनसे हृदय के काम में किसी असामान्यता का संकेत मिल सकता है। हालांकि यह दिल के दौरे की भविष्यवाणी नहीं कर सकता है, लेकिन यह पुष्टि करता है कि किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ा है और किस प्रकार का है। यह सबसे असरदार इलाज मुहैया कराने में डॉक्टरों को मदद देता है। लेकिन इसकी अपनी सीमा है। कई बार मरीज छाती में दर्द की शिकायत करता है, लेकिन ईसीजी सामान्य आता है। तब ईसीजी टेस्ट हर 30 मिनट में दोहराया जाता है। हालांकि, शहरों में कई निजी अस्पताल और ईसीजी किए बिना सीधे ट्रोपोनिन टेस्ट करते हैं।ट्रोपोनिन टेस्ट: अगर ईसीजी सामान्य हो लेकिन दर्द जारी रहे, तब डॉक्टर रक्त में ट्रोपोनिन प्रोटीन की तलाश के लिए कार्डियक एंजाइम आधारित टेस्ट के लिए आगे बढ़ते हैं। ट्रोपोनिन के प्रोटीन विशेषरूप से हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं में पाए जाते हैं, लेकिन दिल के दौरे के दौरान वे रक्तप्रवाह में फैल जाते हैं। ट्रोपोनिन का रक्त स्तर अटैक के 3 घंटे बाद बढ़ता है और 7-14 दिनों तक ज्यादा रहता है। यदि छाती में दर्द और सांस फूलने के 3 घंटे बाद टेस्ट नेगेटिव है, तो रोगी को लगभग निश्चित रूप से दिल का दौरा नहीं पड़ा।
कार्डियो एंजियो: यह टेस्ट आमतौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता है, क्योंकि इसमें रोगी को एक्स-रे की हाई डोज का सामना करना पड़ता है जो कैंसर का कारण बन सकता है। इसकी सलाह तभी दी जाती है, जब कोई रोगी 30 से 40 की उम्र में इनमें से कम से कम दो जोखिम रखता हो: डायबिटीज, धूम्रपान, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा और 50 वर्ष की आयु तक माता-पिता को दिल का दौरा पड़ने का पारिवारिक इतिहास।
सीने में दर्द है पहला लक्षण
दिल का दौरा एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें हृदय को रक्त की आपूर्ति अचानक रुक जाती है, शायद रक्त के थक्के के कारण। कुछ मिनटों के लिए भी रक्त प्रवाह नाकाफी हुआ तो यह हृदय की मांसपेशियों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है और मृत्यु का कारण बन सकता है।
मुंबई में 18-45 आयु वर्ग के लोगों में दिल के दौरे के मामलों में एक अध्ययन किया गया। इसमें ये निष्कर्ष निकले।
लक्षणः 91% रोगियों में खास तौर से था छाती में दर्द
लिंगः पुरुषों को दिन के घंटों (सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे) और महिलाओं को रात (6 बजे शाम से सुबह 6 बजे) में अटैक की अधिक संभावना थी
व्यायामः मध्यम से जोरदार शारीरिक गतिविधि के बाद केवल 24% को सीने में दर्द का अनुभव
नशाः 48% रोगी तंबाकू का सेवन करते थे, लेकिन केवल 15% ने शराब का सेवन किया था
तनावः 66% रोगियों ने तनाव की शिकायत नहीं की। लेकिन जिसने की, कहा कि नौकरी और परिवार का तनाव सबसे ज्यादा था (दोनों का हिस्सा 10%-10%)
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post