हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखता था अल्लामा इकबाल का परिवार, इस वजह से कराया था धर्म परिवर्तन, जानिए कौन थे अल्लामा इकबाल? जानेमाने उर्दू शायर रहे अल्लामा इकबाल का संबंध हिंदू धर्म से ही था। उनके दादा कन्हैयालाल हिंदू थे। वहीं इकबाल के चाचा और बुआ भी हिंदू ही थीं लेकिन उनके पिता ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।
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‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ लिखने वाले अल्लामा इकबाल रखते थे हिन्दू धर्म से ताल्लुक
‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ लिखने वाले अल्लामा इकबाल 20वीं सदी के बड़े कवियों में शामिल हैं। वह खास इसलिए भी हैं क्योंकि उन्होंने यह बात जानने की कोशिश की कि आखिर मुसलमानों के दिमाग में क्या चल रहा है। इसके बाद उन्होंने अपनी कविताओं में उन बातों को उतारना शुरू किया। इकबाल की मातृभाषा पंजाबी होते हुए भी उन्होंने उर्दू और फारसी में लेखन किया।
अल्लामा इकबाल ने कहा था कि हिन्दू और मुस्लमान एक साथ नहीं रह सकते
इकबाल को पाकिस्तान का जनक भी कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले उन्होंने ही हिंदू और मुसलमान के लिए द्विराष्ट्र की थ्योरी दी थी। उनका कहना था कि हिंदू और मुसलमान इकट्ठे नहीं रह सकते इसलिए मुसलमानों के लिए अलग देश होना चाहिए। इकबाल तो जन्म से ही मुसलमान थे लेकिन उनका परिवार मुसलमान नहीं थे। उनके पिता रतन लाला ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया था और फिर उनका नाम नूर मोहम्मद रख दिया गया था।
जानिए अल्लामा इकबाल के परिवार के बारे में
बताया जाता है कि इकबाल बीरबल परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बीरबल के पांच बेटे और एक बेटी थी। उनके तीसरे बेटे का नाम कन्हैयालाल था और उनकी बीवी का का नाम इंदिरानी था कन्हैयालाल के भी तीन बेटे और पांच बेटियां थीं कन्हैयालाल ही इकबाल के दादा थे उनके बेटे रतनलाला ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और इमाम बीबी नाम की महिला से शादी कर ली। अब रतन लाल के धर्म परिवर्तन को लेकर कई बातें कही जाती हैं।
हिन्दू धर्म के रतनलाला ने अफगान गवर्नर के आदेश पर मुस्लिम धर्म अपनाया था
एक जगह कहा जाता है कि रतनलाल को धन की हेराफेरी करने के मामले में पकड़ लिया गया था। इसके बाद अफगान गवर्नर ने आदेश दिया कि उन्हें या तो इस्लाम धर्म स्वीकार करवाया जाए या फिर फांसी पर चढ़ा दिया जाए। रतन लाल ने इस्लाम स्वीकार करना ज्यादा ठीक समझा। सिखों का साम्राज्य के बाद अफगान गवर्नर भाग गया तब रतनलाल सियालकोट चले गए। इमाम बीबी भी सियालकोट की ही रहने वाली थी।
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जानिए कहाँ हुआ था अल्लामा इकबाल का जन्म
1877 में यहीं इकबाल का जन्म हुआ और वह सियालकोट में ही पले-बढ़े। जानकारों का कहना है कि नए-नए इस्लाम में आने की वजह से इकबाल ज्यादा कट्टरथे। यह भी कहा जाता है कि वह अपनी दादी से मिलने अमृतसर गए थे। हालांकि उन्होंने खुद कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं किया है।
अल्लामा इकबाल के हिसाब से उहने लगता था की मुसलमानो का अलग देश होना चाहिए
इकबाल के बहुत सारे हिंदू और सिख दोस्त और प्रशंसक थे बावजूद इसके उन्हें लगता था कि मुसलमानों के लिए अलग देश होना चाहिए। उनकी ही विचारधारा के मुताबिक आगे चलकर पाकिस्तान बना। उनके निजी जीवन के बारे में कहा जाता है कि उनकी तीन शादियां हुई थीं। उनके एक बेटे का नाम जावेद था जो कि बाद में लाहौर हाई कोर्ट का जज बना।
अल्लामा इकबाल अपने अफेयर की चर्चा में काफी सुर्खियों में रहे थे
इकबाल के अफेयर की भी चर्चा होती है। कहा जाता है कि लंदन में उनकी दोस्ती अतिया फैजी नाम की महिला से हो गई थी। उनकी पढ़ाई लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से हुई थी। इसके बाद वह फिलॉस्फी के लेक्चरर हो गए। वह ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज और जर्मनी के हाइडलबर्ग और म्यूनिख में पढ़ने गए थे। इसके बाद उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की। उन्होंने शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वकालत की। इकबाल शुरू में अखंड भारत की बात करते थे लेकिन बाद में हिंदी हैं हम वतन लिखने वाले इकबाल ने मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा भी लिखा।
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