नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है. पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में अमेरिकी राजदूत डेविड ब्लोम की यात्रा विवादों के घेरे में है. उन्होंने इसका जिक्र ‘आजाद’ जम्मू-कश्मीर के रूप में किया.
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नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है. पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में अमेरिकी राजदूत डेविड ब्लोम की यात्रा विवादों के घेरे में है. उन्होंने इसका जिक्र ‘आजाद’ जम्मू-कश्मीर के रूप में किया. इससे भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्तों को नया झटका लगा है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से लगातार उतार-चढ़ाव से गुजर रहे हैं.अमेरिकी महिला सांसद इल्हान उमर के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर का दौरा करने वाले राजदूत ब्लोम अमेरिका के दूसरे हाई-प्रोफाइल नेता हैं.
इल्हान उमर ने इस साल की शुरुआत यानी 2022 में इस क्षेत्र का दौरा किया था. दोनों ही मामलों में भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन यात्राओं की कड़ी निंदा की. साथ ही, इसे ‘भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन’ करार दिया.पिछले महीने, जब 2+2 सिक्योरिटी डायलॉग और एक क्वाड मीटिंग के लिए अमेरिकी अधिकारी नई दिल्ली में थे, उसी दौरान बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर सैन्य पैकेज दिया, जिसे ‘F-16 फाइटर जेट्स के रखरखाव और संबंधित उपकरणों’ के लिए मदद करार दिया गया.
पाकिस्तान को अमेरिका से मदद
पाकिस्तान को सैन्य सहायता देने के मामले में भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका के रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन से बातचीत की. साथ ही, पाकिस्तान की F-16 फ्लीट के रखरखाव के लिए मदद देने अमेरिका के फैसले पर भारत की चिंता का भी जिक्र किया.
वहीं, इसी महीने की शुरुआत में अमेरिका ने मुंबई स्थित पेट्रोकेमिकल्स फर्म तिबालाजी पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड पर प्रतिबंध लगा दिया. अमेरिका ने कंपनी पर करोड़ों रुपये के ईरानी पेट्रोकेमिकल्स और पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री का आरोप लगाया. किसी भारतीय कंपनी पर अमेरिकी कार्रवाई का यह अपने आप में पहला मामला था. हालांकि, अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने इसे दक्षिण और पूर्वी एशिया में ईरान के पेट्रोकेमिकल्स और पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल रोकने के लिए उठाया गया कदम करार दिया.
नई दिल्ली और वॉशिंगटन के संबंधों में चुभन उस वक्त और ज्यादा महसूस हुई, जब अमेरिका ने शुक्रवार (7 अक्टूबर) को भारत आने वाले अपने नागरिकों के लिए नई ट्रैवल एडवाइजरी जारी की. इसमें खासतौर पर जम्मू-कश्मीर का हवाला देते हुए भारत में ‘अपराध और आतंक’ का खतरा बताया गया. साथ ही, अमेरिका ने भारत के लिए अपनी ट्रैवल एडवाइजरी के स्तर को एक पायदान नीचे कर दिया.
भारत को यह झटका उस वक्त लगा, जब भारत ने यूक्रेन में युद्ध के बाद खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति में आने वाले वैश्विक व्यवधान को देखते हुए अपनी ‘इश्यू-बेस्ड’ विदेश नीति का जोरदार तरीके से बचाव किया.
दरअसल, भारत ने वॉशिंगटन की तमाम दलीलों के बावजूद बढ़ती महंगाई दर से निपटने के लिए रूस से सस्ता तेल खरीदने की रफ्तार बढ़ा दी, जिससे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के असर से बचने में मदद मिली.
उधर, भारत द्वारा उठाए गए कई कदमों ने हालात और ज्यादा बिगाड़ दिए हैं. दरअसल, यूक्रेन के मसले पर संयुक्त राष्ट्र में पश्चिमी देशों का समर्थन करने से इनकार करके भारत ने लड़ाई मोल ले ली. वहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की घबराहट की परवाह किए बिना इश्यू-बेस्ड गठबंधनों और व्यापारिक समझौतों का बचाव करने के लिए आक्रामक रुख अपना रखा है.
क्या भारत ने अमेरिका से दूरी बढ़ा ली है?
दरअसल, रूस-यूक्रेन के युद्ध ने भारत-अमेरिका के संबंधों में कड़वाहट बढ़ा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि अहम मसलों पर मतभेद का असर दोनों देशों के रिश्तों पर नजर आएगा. सबसे अहम बात यह है कि एशिया में भारत, अमेरिका और दोनों के सहयोगियों का एक ही दुश्मन है और वह चीन है.
इस लड़ाई में जीत के लिए वॉशिंगटन को नई दिल्ली की जरूरत है. शायद, भारतीय विदेश नीति द्वारा अपनाए गए आक्रामक रुख के बाद इसका असर नजर आता है. एशिया और यूरोप में तमाम जमीनी और राजनीतिक बदलावों के बीच इस रास्ते में कई रोड़े आ सकते हैं, लेकिन यह तो समय ही बताएगा कि भारत-अमेरिका का यह रिश्ता टूटने से पहले कितना सफर तय कर पाएगा.
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