समिति ने यह भी सिफारिश की कि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक होनी चाहिए।
पिछले महीने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पेश की गई अपनी 11वीं रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा पर संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए।
सूत्रों के अनुसार, समिति ने सुझाव दिया कि देश के सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में शिक्षा के माध्यम के रूप में हिंदी या स्थानीय भाषा का उपयोग किया जाना चाहिए और अंग्रेजी के उपयोग को वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए।
समिति के उपाध्यक्ष बीजू जनता दल (बीजद) नेता भर्तृहरि महताब ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि समिति ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार सिफारिशें तैयार की हैं, जिसमें सुझाव दिया गया है कि शिक्षा का माध्यम आधिकारिक या क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए।
समिति ने सुझाव दिया है कि ‘ए’ श्रेणी के राज्यों में हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिया जाना चाहिए और इसका शत-प्रतिशत इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पैनल ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा होनी चाहिए।
महताब ने कहा कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में हिंदी का केवल 20-30 प्रतिशत इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि इसका उपयोग शत-प्रतिशत किया जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा, ‘‘अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हमें इस औपनिवेशिक प्रथा को खत्म करना चाहिए।’’
इसी तरह की भावना भाजपा सदस्य रीता बहुगुणा जोशी ने भी व्यक्त की, जो दूसरी उप-समिति की संयोजक हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अंग्रेजी एक ‘विदेशी भाषा’ है और ‘हम इसे समाप्त करना चाहते हैं’ और इसे हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।’’
जोशी ने कहा, ‘‘सिफारिशें नई शिक्षा नीति के अनुसार हैं, जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी में समान रूप से शिक्षा देने पर जोर दिया गया है।’’
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार गुप्ता ने कहा कि समिति ने सिफारिश की है कि ‘ए’ श्रेणी या हिंदी भाषी राज्यों में शिक्षा का माध्यम हिंदी होना चाहिए और बाकी राज्यों में यह संबंधित स्थानीय भाषाओं में होना चाहिए।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हिंदी के प्रगतिशील इस्तेमाल के आधार पर तीन समूहों (क्षेत्रों) में बांटा गया है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह ‘ए’ श्रेणी में और गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली ‘बी’ श्रेणी में आते हैं तथा शेष भारत को ‘सी’ श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषाओं में से एक बनाया जाना चाहिए।
महताब ने कहा, ‘‘कुल 193 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं, लेकिन कितने देश विदेशी भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं।’’
बीजद नेता ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) या रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) जैसे तकनीकी संगठनों में और गृह मंत्रालय में हिंदी का उपयोग 100 प्रतिशत है।
यह समिति की 11वीं रिपोर्ट थी और यह पांच साल में एक रिपोर्ट पेश करती है।
हालांकि, इस बार तीन साल के भीतर समिति ने दो रिपोर्ट सौंप दी। किसी रिपोर्ट को स्वीकार करना या न करना राष्ट्रपति का विवेकाधिकार है।
हिंदी के तकनीकी शब्दकोश के 12 से अधिक खंड हैं।
समिति का गठन 1976 में राजभाषा अधिनियम, 1963 के तहत किया गया था। इसमें संसद के 30 सदस्य शामिल हैं, जिनमें से 20 सदस्य लोकसभा और 10 राज्यसभा से हैं।
समिति ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में जानबूझकर हिंदी में काम न करने व़ाले केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए और अगर वे चेतावनी के बावजूद ऐसा नहीं करते हैं, तो इसे उनकी वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) में दर्शाया जाना चाहिए।
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