माउंट आबू38 मिनट पहले
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ब्रह्माकुमारी संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि के अवसर पर माउंट आबू आयोजित कार्यक्रम में देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु जुटे हैं।
ब्रह्माकुमारी संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि के अवसर पर माउंट आबू में देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु जुटे हुए हैं। इस अवसर पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में मानवीय एकता और विश्व शांति की मनोकामना को लेकर निरंतर साधना चल रही है। संगठन के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय पांडव भवन के चारों धाम में दिनभर साधना चलती रही।
मानवीय एकता और विश्वशांति दिवस के लिए ब्रह्माकुमारी संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि के उपलक्ष में बाबा के समाधि स्थल शांतिस्तंभ, बाबा का कमरा, तपस्यास्थली कुटिया, हिस्ट्री हॉल में निरंतर साधना की जा रही है। सवेरे तीन बजे से आरंभ होकर रात्रि दस बजे तक देश विदेश से हजारों की तादाद में आए राजयोगी श्रद्धालु साधना में जुटे हुए हैं।
इस अवसर पर संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी ने कहा कि कर्मों का फल कभी निष्फल नहीं जाता।
साधना प्रवचन को लेकर सवेरे ओम शान्ति भवन में आयोजित कार्यक्रम में संगठन की संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके शशिप्रभा ने ब्रह्मा बाबा के साथ के अनुभव सांझा करते हुए कहा कि बाबा का जीवन उच्चकोटि के चरित्रों का आइना था। बाबा का जीवन निरंतर तपस्वीमूर्त अनुभव होता था। ब्रह्मा बाबा की मन-वचन-कर्म की व्यवहारिकता से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह स्पष्ट महसूस होता था।
कर्म कभी निष्फल नहीं जाते: डॉ. निर्मला दीदी
संयुक्त मुख्य प्रशासिका डॉ. निर्मला दीदी ने कहा कि कर्मों का फल कभी निष्फल नहीं जाता। कभी न कभी उसका फल अवश्य मिलता है। हम किसी को गाली दें तो वह हमें थप्पड़ मार देता है। कर्म का फल तुरंत मिल गया। कुछ उल्टा-सीधा खा पी लें तो उसका फल कुछ दिनों या वर्षों बाद शरीर में रोग के रूप में सामने आता है। इसी प्रकार कुछ कर्मों का फल इसी जीवन में मिल जाता है, जबकि कुछ का अगले जन्म में।
ब्रह्माकुमारी संगठन के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की पुण्य तिथि के अवसर पर माउंट आबू में देश-विदेश के हजारों श्रद्धालु जुटे हुए हैं।
बच्चे की तरह दें मन को प्रशिक्षण
राजयोग प्रशिक्षिका बीके शीलू बहन ने कहा कि प्रबल साधना के लिए मन की एकाग्रता को बनाए रखने के उपाय सुझाते हुए कहा कि मन एक बच्चे की तरह होता है, जिसमें जो संकल्प डाले जाते हैं उसी अनुसार संस्कार को पोषण होता है। साधना से पूर्व मन को पवित्र संकल्पों से भरपूर कर दिया जाए तो सार्थक परिणाम प्राप्त होने से जीवनशैली साधनामय बन जाती है।
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