भारतीय सभ्यता हमें मिलकर रहना और जीना सिखाती है और संघ भी इसी विचार को लेकर चलता है। संघ के कार्यकर्ता और प्रचारक मातृभूमि एवं विश्व कल्याण के भाव को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
संघ के विजयादशमी उत्सव में मुख्य अतिथि के नाते उपस्थित पद्मश्री संतोष यादव ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सनातन धर्म, दोनों का भाव समान है। संघ का कार्य ईश्वरीय कार्य है। सभी को संघ कार्य को देखने, समझने और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
श्रीमती संतोष यादव ने आगे कहा कि, ‘प्रारब्ध पहले भयो जन्म पाछे’, ऐसा बचपन से सुनती आई हूं, और आज उसका अनुभव हो रहा है। बचपन से मेरे विचार सुनकर लोग मुझसे पूछा करते थे कि ‘क्या तुम संघ से जुड़ी हो’? तब मुझे संघ कार्य का बोध नहीं था, लेकिन मेरे क्रियाकलाप और विचारों से लोगों को लगता था कि मैं संघ—विचारों से प्रेरित हूं। इसी प्रारब्ध के चलते आज संघ के सर्वोच्च मंच पर आने का सम्मान प्राप्त हुआ है।
विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही श्रीमती यादव ने कहा कि पूरे विश्व को संघकार्य को देखना, समझना चाहिए। भारतीय सभ्यता हमें मिलकर रहना और जीना सिखाती है और संघ भी इसी विचार को लेकर चलता है। संघ के कार्यकर्ता और प्रचारक मातृभूमि एवं विश्व कल्याण के भाव को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। संघ सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लीन है। संघ की राष्ट्रभावना मुझे संघ की ओर आकर्षित करती है। उत्तर में हिमालय से दक्षिण में सागर तक फैला हमारा देश सनातन भूमि है।
उन्होंने कहा कि सनातन में सृजन का भाव होता है, नष्ट करने का नहीं। वर्तमान समय में विश्व को परेशान करने वाली परिस्थितियों, बाधाओं और समस्याओं का उत्तर सनातन संस्कृति के पास है। विश्व भर में मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर चलना, यही तो सनातन सभ्यता और संघ का कार्य है।
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