‘इंडिया टुडे’ (India Today) समूह के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी का कहना है कि मीडिया को संतुलनकारी कार्य करना होगा। एक तो उसे वित्तीय व्यावहार्यता हासिल करनी होगी और उसी दौरान सरकार और विज्ञापनदाताओं के दबाव को भी संभालना होगा।
अरुण पुरी शुक्रवार को मुंबई में ‘सुभाष घोषाल मेमोरियल लेक्चर’ (Subhas Ghosal Memorial Lecture) को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन ‘एडवर्टाइजिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (AAAI) और ‘सुभाष घोषाल फाउंडेशन’ (SGF) ने मिलकर किया था। कार्यक्रम में विज्ञापन जगत से जुड़ी देश की टॉप हस्तियां शामिल रहीं।
इस मौके पर अरुण पुरी का कहना था, ‘पत्रकारिता नेक पेशा है और विश्वसनीयता ही न्यूज मीडिया की सबसे बड़ी पूंजी है। तमाम मीडिया संस्थान अभी भी समाज की सेवा में जुटे हैं। वे सच को केंद्र में रखते हैं यानी उनके लिए सच सर्वोपरि है और वे अपनी विश्वसनीयता के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, दूसरे देशों की तुलना में भारत में मीडिया काफी सस्ता है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए सबस्क्रिप्शन मॉडल की बात करें तो विदेश में यह मॉडल काफी सफल है, जबकि हमारे देश में उतना नहीं।’
उन्होंने कहा, ‘भारत में केबल कनेक्शन भी काफी सस्ते हैं और यही कारण है कि न्यूज चैनल्स बहुत हद तक एडवर्टाइजर्स पर निर्भर हैं और टीआरपी के पीछे भाग रहे हैं।’ अरुण पुरी का कहना था कि बार्क रेटिंग को लेकर भी वह चिंतित थे। उन्हें लगा कि सिस्टम में सुधार की जरूरत है, लेकिन बाद में इस संबंध में काम शुरू हो गया था।
‘इंडिया टुडे’ समूह की सफलता के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया उनके पहले पब्लिकेशन ‘इंडिया टुडे मैगजीन’ के लिए 1977 और 1980 के चुनाव किस तरह दो निर्णायक मोड़ साबित हुए। अरुण पुरी ने कहा, ‘हमने इस मैगजीन को दिसंबर 1975 में लॉन्च किया, तब आपातकाल का दौर था। दो साल बाद 1977 के आम चुनावों के दौरान कांग्रेस को हराकर एक गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई। उस समय भारतीय राजनीति और समाज में भारी उथल-पुथल देखी जा रही थी लेकिन तब अखबारों की कवरेज उतनी प्रखर नहीं थी और छपाई की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं थी। उस समय अच्छे कंटेंट और बेहतरीन प्रिंटिंग की वजह से हमारी मैगजीन को काफी रफ्तार मिली और इसका सर्कुलेशन 15000 से एक लाख तक पहुंच गया। इसके बाद से इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।’
1980 के चुनावों से पहले मैगजीन ने ‘दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ के दो प्रोफेसरों प्रणय रॉय और अशोक लाहिड़ी के सुझाव और मदद से देश का पहला मत सर्वेक्षण (poll survey) किया। अरुण पुरी का कहना था, ‘इस चुनाव में कई लोगों का मानना था कि जनता पार्टी की सरकार वापस आएगी, हमारे सर्वेक्षण ने सही भविष्यवाणी की थी कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस बहुमत के साथ वापस आएगी। इस सर्वेक्षण ने हमारी विश्वसनीयता को इतना बढ़ा दिया कि शीर्ष उद्योगपति जीडी बिड़ला ने मुझे लंच पर आमंत्रित किया, तब मैं सिर्फ 36 साल का था।’
अपने निजी और व्यावसायिक अनुभवों के बारे में पुरी ने कई अहम बातें साझा कीं। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि मुझे सफलता कैसे मिली। यह घटनाओं, संयोगों, मेरी शिक्षा और कई अन्य चीजों की श्रंखला हो सकती है। मेरा मानना है कि इन चार चीजों ने मेरी काफी मदद की। पहली मेरा सीए होना, जिससे मुझे पता चला कि जब तक स्थिति स्पष्ट न हो, चीजें कैसे पूछनी हैं। दूसरा, एक गैर-पत्रकार होने के नाते मुझे यह पता लगाने में मदद मिली कि एक औसत पाठक को क्या पसंद आएगा। तीसरा,काम के प्रति मेरा जुनून और चौथा, कोई पूर्वकल्पित विचार (preconceived idea) का न होना।’
इस दौरान अरुण पुरी ने बताया, ‘मैं लाहौर में पैदा हुआ और विभाजन के बाद मेरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया। मेरे पिता ने फिल्मों में फाइनेंसिंग शुरू की। ‘आग‘ और ‘मदर इंडिया‘ से इसकी शुरुआत हुई, जिसने महबूब स्टूडियो की स्थापना की और फिर ‘आवारा‘, जिसने राज कपूर के प्रोडक्शन की स्थापना की। फिर बीआर चोपड़ा की ‘नया दौर‘, उन दिनों में उन्होंने जो भी निवेश किया, वे सभी फिल्में सफल रहीं।’
परिवार में हुई एक त्रासदी के कारण उनका परिवार बाद में दिल्ली शिफ्ट हो गया। अरुण पुरी उस समय किशोर थे और अपने करियर के बारे में उन्हें कुछ भी तय नहीं था। अरुण पुरी के अनुसार, ‘मेरे पिता ने मुझे सीए की पढ़ाई करने के लिए कहा। ऐसा कोर्स जो उनके बिजनेस में मददगार साबित हो सकता था।’ 1970 में जब पुरी सीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद लंदन में ऑडिटर के रूप में काम कर रहे थे, तो उनके पिता ने उन्हें फरीदाबाद में अपनी प्रिंटिंग प्रेस ‘थॉमसन प्रेस’ का दौरा करने के लिए कहा, जिसे उन्होंने ब्रिटिश मीडिया मुगल पॉल रॉयटर के सहयोग से स्थापित किया था।
अरुण पुरी ने बताया, ‘प्रेस को देखने के बाद मैंने यहीं रहने और प्रॉडक्शन कंट्रोलर के रूप में बिजनेस को संभालने का फैसला किया। हमने गुणवत्तापूर्ण छपाई के लिए धीरे-धीरे बेहतर तकनीक लागू की लेकिन हम दूसरों के लिए कंटेंट छाप रहे थे। फिर, हमने सोचा कि क्यों न हमारा अपना पब्लिकेशन हो। हमने कई चीजों की कोशिश की, लेकिन असफल रहे।’ फिर उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान एक मैगजीन के साथ इंडिया टुडे ग्रुप की स्थापना की।
अरुण पुरी के अनुसार, ‘इंडिया टुडे मैगजीन शुरू करने की कल्पना आपातकाल से पहले की गई थी लेकिन इसे दिसंबर 1975 में अमलीजामा पहनाया गया था। इन 47 वर्षों में हमने 56 पब्लिकेशंस और चैनल लॉन्च किए, जिनमें से कुछ बंद भी हो गए।’
इस मौकै पर अरुण पुरी ने यह भी बताया कि कैसे इस ग्रुप ने एक घंटे के वीडियो कैसेट के साथ वर्ष 1988 में वीडियो जर्नलिज्म के क्षेत्र में कदम रखा था। इसके बाद 1995 में ‘दूरदर्शन’ पर ‘आजतक’ शो के लिए 20 मिनट का स्लॉट मिला और फिर कैसे यह 24/7 न्यूज चैनल में बदल गया।
इस कार्यक्रम में अपने संबोधन के अंत में पुरी ने कहा, ‘प्रेस की स्वतंत्रता अच्छी बात है। यह भारत के अस्तित्व और विकास के लिए आवश्यक है। अगली बार जब आप प्रेस की निंदा करें, तो सोचें कि क्या इसके बिना भारत की स्थिति बेहतर हो सकती है।’
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