सात मार्च 2017 को गढ़चिरौली सत्र अदालत ने आरोपी को गैरकानूनी गतिविधियों, साजिश, यूएपीए के तहत आतंकवादी गिरोह की सदस्यता और समर्थन के आरोप में भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया था। साईबाबा समेत पांच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके अलावा एक अन्य आरोपी विजय तिर्की को 10 साल की सजा सुनाई गई थी। 23 गवाहों से पूछताछ के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया था। आरोपियों में से एक पांडु पोरा नरोटे की अगस्त 2022 में मृत्यु हो गई। महेश तिर्की, हेम केश्वदत्त मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की अन्य आरोपी हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
हाई कोर्ट का कहना है कि इस मुकदमे की कार्यवाही के लिए यूएपीए कानून की धारा 45 (1) के तहत जरूरी वैध अनुमति नहीं ली गई थी और इसके अभाव में मुकदमा खारिज किया जाता है। अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध था। साईबाबा शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं। उन्हें नागपुर केंद्रीय कारागार में रखा गया है। पीठ ने टिप्पणी की कि जब 2014 में निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के आरोप पत्र का संज्ञान लिया था, तो उस समय साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत अभियोजन चलाने की मंजूरी नहीं दी गई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी न होने के कारण निचली अदालत की कार्यवाही अमान्य है और इसलिए निचली अदालत का आदेश दरकिनार किए जाने और रद्द किए जाने के लायक है।
कोर्ट ने अपने आदेश के समय टिप्पणी की, ‘ सरकार को आतंकवाद के खिलाफ दृढसंकल्प होकर युद्ध छेड़ना चाहिए और अपने पास मौजूद हर वैध हथियार को इसके खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज कानूनी रूप से प्रदान किए गए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का कथित खतरे के नाम पर त्याग नहीं कर सकता और ये उपाय कानून की उचित प्रक्रिया का अहम पहलू हैं।’
पीठ ने आगे कहा कि यह विधायी अनिवार्यता है कि अभियोजन की मंजूरी स्वतंत्र प्राधिकारी (अधिनियम के तहत नियुक्त) की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद ही दी जाएगी और यह प्राधिकारी जांच के दौरान एकत्र सबूतों की स्वतंत्र समीक्षा कर सकता है और सिफारिश कर सकता है। इस मामले में नियुक्त प्राधिकारी की रिपोर्ट ने मंजूरी देने वाले प्राधिकरण को कोई मदद नहीं दी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘हम बेहिचक यह कहते हैं कि स्वीकृति देने वाले प्राधिकरण ने विधायी आदेश का केवल कहने के लिए पालन किया और नियुक्त प्राधिकारी की रिपोर्ट मांगी गई और दुर्भाग्यपूर्ण रूप से इसे केवल औपचारिकता के लिए सौंपा गया। विधायी अनिवार्यता का उल्लंघन मंजूरी के आदेश को कानून की दृष्टि से गलत ठहराता है और इसलिए यह अमान्य है।’
अदालत ने साईबाबा के अलावा महेश किरीमन टिर्की, पांडु पोरा नारोते (दोनों किसान), हेम केशवदत्त मिश्रा (छात्र) और प्रशांत सांगलीकर (पत्रकार) को भी बरी कर दिया है। उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इसके अलावा विजय टिर्की (श्रमिक) को भी बरी कर दिया गया। उसे 10 साल कारावास की सजा दी गई थी। नारोते की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान मौत हो गई। पीठ ने आदेश दिया कि यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए।
अदालत ने कहा कि यूएपीए मूल रूप से आतंकवादी गतिविधियों को कवर नहीं करता था। आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (टाडा), 1987 और आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (पोटा), 2002 सहित अन्य कानून आतंकवाद से तब तक निपटे जब तक कि उन्हें निरस्त नहीं किया गया या समाप्त होने की अनुमति नहीं दी गई। कठोर होने के कारण इन दोनों कानूनों की आलोचना की गई और केंद्र सरकार आलोचना के प्रति संवेदनशील थी।
साईबाबा के खिलाफ काफी सबूत थे: फडणवीस
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को कथित माओवादी संबंधों के मामले में बरी करने को दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक बताया है। उन्होंने कहा कि साईबाबा के खिलाफ काफी सबूत थे। लेकिन उन्हें तकनीकी आधार पर बरी कर दिया गया जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि नक्सलियों के हमलों में शहीद हमारे उन पुलिसकर्मियों के परिजनों पर क्या बीत रही होगी जो इसे सुन रहे होंगे। हमने बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और विश्वास है कि हमें न्याय मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच आज करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की बेंच यूएपीए मामले में प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी किए जाने को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए आज सुबह 11 बजे विशेष सिटिंग करेगी। इससे पहले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट को आदेश पर तत्काल स्टे लगाने से मना कर दिया था।
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