हिसार, जागरण संवाददाता। हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आरंभ हुई दो दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला संपन्न हुई जिसमें प्रदेशभर के कृषि अधिकारियों के साथ विज्ञानियों ने कार्यशाला में रबी फसलों की समग्र सिफारिशों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई। कई महत्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया। कार्यशाला में अनुमोदित की गई आठ नई सिफारिशों में चार नई किस्में हैं। जिसमें देसी चने की हरियाणा चना-6 (एचसी-6), जई की एचएफओ-611 एवं एचएफओ-707 तथा चंद्रशूर की एचएलएस-4 को शामिल किया गया है।
इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में जौ की बिजाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवम्बर के पहले सप्ताह के बीच करना, दाना मटर में निम्न सल्फर स्तर वाली जमीन में 12 किलो ग्राम सल्फर प्रति एकड़ एवं निम्न व मध्यम पोटाश वाली जमीन में 8 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से बिजाई के समय डालना, टिकाऊ खेती के लिए ज्वार-बरसीम फसल चक्र में जैविक चारा उत्पादन तथा गेंहू के पीला रतुआ के नियंत्रण के लिए 120 ग्राम नैटिवो प्रति एकड़ स्प्रे करना भी नई समग्र सिफारिशों में शामिल है।
प्रदेश में किसानों तक पहुंचेगा फायदा
इस अवसर पर मुख्यातिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने कार्यशाला में उपस्थित कृषि अधिकारियों से आहवान किया कि शोध की गई नई सिफारिशों को पूरे प्रदेश में किसानों तक पहुंचाना होगा। साथ-साथ कृषि विज्ञानियों को फसलों की मुख्य समस्याओं को ध्यान में रखकर शोध करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पराली प्रबंधन के लिए विश्वविद्यालय द्वारा की जा रही शोध के विकास कार्यों पर चर्चा की।
फसल अवशेष जलाना व उर्वरकों के अत्याधिक प्रयोग को रोकना अत्यंत आवश्यक: डॉ. हरदीप सिंह
इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा के महानिदेशक डा. हरदीप सिंह ने कहा कि फसल अवशेष जलाना व उर्वरकों का अत्याधिक प्रयोग रोकना अत्यंत आवश्यक। उन्होंने कहा कि खाद की कमी नहीं है बल्कि उसका वितरण सही तरीके से करने की जरूरत है। उन्होंने पराली प्रबंधन, रबी फसलों की समग्र सिफारिशों व नवीनतम तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के निर्देश दिए।
Edited By: Naveen Dalal
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