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- The Sage Said That Even After Taking A Character Life, The Sense Of Equality Does Not Appear.
झाबुआ2 घंटे पहले
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ज्ञान का फल समता है। जो की हमारी धर्म साधना को स्थिर करती है। यदि समता भाव जीवन में नहीं आए तो हमारी सारी धर्म क्रिया भी निष्फल हो जाती है। समता भाव के अभाव में मन में तरह तरह के विकल्प चलते रहते है। जो की पीड़ा देने वाले होते है, और ज्यादातर विकल्प राग एवं द्वेष से युक्त ही होते है। जबकि राग द्वेष रहित समता ही तत्व ज्ञान है। उपरोक्त प्रेरक उद्बोधन आचार्य नित्यसेन सूरीश्वरजी साधु साध्वी मंडल की निश्रा में चल रहे आत्मानंदी चातुर्मास में बावन जिनालय के पौषध भवन में प्रतिदिन चल रहे योग सार ग्रंथ की गाथाओं को समझाते हुए शनिवार को धर्म सभा में पुण्य सम्राट के शिष्य मुनि निपुणरत्न विजयजी ने व्यक्त किए।
आपने कहा कि समता भाव याने हमारे जीवन में अनुकूल या प्रतिकूल कोई भी परिस्थिति यदि आती है, तो हमें प्रभावित नहीं कर सकती है। आपने समता भाव नहीं आने के कारणों को समझाते हुए कहा कि राग और द्वेष का मेल आत्मा पर चढ़ा होने से आज तक समता भाव नहीं आ पाया है। उन्होंने आज चारों प्रकार की भावनाओं का विशेष महत्व समता भाव लाने में होता है। इस विषय को स्पष्ट करते हुए विस्तार से समझाते हुए कहा कि चारित्र जीवन ग्रहण करने के पश्चात भी समता भाव प्रकट नहीं होते है, और मोक्ष की और अग्रसर नहीं हो पाते है।
विकल्पों की श्रंखला को यदि रोकना है, तो तुरंत उन विकल्पों पर नजर रखो, जैसे ही विकल्प पर नजर डाली नया विकल्प का जन्म रुक जाएगा। इन विकल्पों को रोकने में हमारा आत्मा की मजबूती भी सहायक होती है। समता भाव लाने के तीन सुत्र दिए। प्रथम किसी के दोष नहीं देखना, दूसरा दोष को व्यक्त भी नहीं करना और तीसरा दोष पर विचार भी नहीं करना। समता भाव किसी के अधीन नहीं है। अपितु स्वाधीन भाव है।
मुनि प्रशमसेन विजयजी ने कहा कि जिन शासन में प्रवेश के पूर्व हमारे जीवन में अनुशासन आना आवश्यक है। जिसके अभाव में धर्म क्रिया सफल नहीं हो सकती। डाॅ. प्रदीप संघवी ने बताया की सोमवार को पुण्य सम्राट की मासिक पुण्यतिथि पर विशेष गुणानुवाद सभा एवं प्रवचन, पूजन आदि कार्यक्रम होंगे।
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