अक्टूबर 2022 मानव इतिहास में यादगार महीना होगा। खासकर यह सप्ताह। इसलिए क्योंकि बीजिंग में शी जिनफिंग के उस तीसरे कार्यकाल पर ठप्पा लग रहा है, जिसकी गूंज महासंग्राम का बिगुल है। चीन अगले पांच वर्षों में नई विश्व व्यवस्था बना कर दुनिया को अपनी ऊंगलियों पर नचाएगा। राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने अपने को जिस अंदाज में, जिन तौर-तरीकों से माओत्से तुंग, देंग शियाओ पिंग से भी बड़ा सुपर इतिहास नेता बनाया है वह विश्व संग्राम का लांच है। चीन और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी, पीएलए याकि चाइनीज सेना, उसके आर्थिक पॉवर व 145 करोड़ लोगों की मानव ताकत उनका अंहकार है। ऊपर से दुनिया के कोई एक-तिहाई से ज्यादा गरीब, कर्जदार देशों को भी अपना पीछलग्गू बना लिया है। तभी अगला और अल्टीमेट मिशन सिर्फ और सिर्फ चीन की धुरी पर पृथ्वी को घूमाना है। शी जिन पिंग एक ऐसी नई विश्व व्यवस्था बनाएंगे, जिससे उसका वह प्राचीन वैभव बने जो कभी हान व मिंग वंश का था। जब चाइनीज सभ्यता-संस्कृति दुनिया का मिडिल किंगडम माना जाता था। याद करें ऐसे ही तो हिटलर के सपने हुआ करते थे। हिटलर ने भी विकास के रथ की बुलेट ताकत बना लेने के बाद फिर अहंकार में सेना को दौड़ाया था ताकि जर्मनी की दुनिया पर एकछत्रता बने। दुश्मन नस्ल व धर्म के लोग खत्म हों।
किसी भी कोण, किसी भी पहलू से सोचें, वर्ष 2022 का अक्टूबर महीना भयावह दिशा बना रहा है। तीसरे महायुद्ध की वैश्विक खाइयां बनते हुए हैं। चाइनीज सभ्यता के बाशिंदों ने बीजिंग के पीपुल्स हॉल की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में विश्वयुद्ध के कमांडर-इन-चीफ के रूतबे जैसे अंदाज में शी जिन पिंग की शान में तालियां बजाई। एक तरह से शी जिनफिंग के विजन और मकसद में देश की कुर्बानी तक पर ठप्पा। उधर रूस की राजधानी मॉस्को के क्रेमलिन में राष्ट्रपति पुतिन ने सेना के उस जनरल को यूक्रेन में लड़ाई की कमान दी है, जिसकी कुख्याती है कि लड़ाई को लड़ाई की तरह नहीं, बल्कि नरसंहार और विध्वंस के मकसद में लड़ो। नतीजतन पिछले सप्ताह मिसाइलों से यूक्रेन बुरी तरह दहला। तुरंत नाटो देशों के रक्षामंत्रियों, सेनापतियों ने ब्रुसेल्स में आपात बैठक की। बैठक के बाद सार्वजनिक ऐलान हुआ कि यूक्रेन को, आकाश में ही मिसाइल को भेद कर खत्म करने के नए हथियार देंगे। यूक्रेन को खत्म नहीं होने देंगे, हारने नहीं देंगे। हम अंधेरे में रह लेंगे, आर्थिक बरबादी सह लेंगे लेकिन रूस से गैस-तेल नहीं खरीदेंगे। उससे न तो कूटनीति होगी और न ही उसका यूक्रेन पर कब्जा होने देंगे!
आंकड़ें हैं, आखों से, कैमरे में रिकॉर्डेड विजुअल और वीडियो हैं कि यूक्रेन, रूस, यूरोप कैसे बरबाद होते हुए हैं मगर बावजूद इसके कोई कुछ नहीं कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र में बहस और वोटिंग हो रही है मगर कूटनीति की तनिक भी हलचल नहीं। भला कैसे हो सकती है? क्या रावण प्रवृत्ति के लोगों से कूटनीति संभव है? कोई 85 साल पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चेंबरलिन ने हिटलर के साथ कूटनीति करके लड़ाई टलने का विश्वास पाला था। रामजी का संदेश लेकर हनुमानजी भी श्रीलंका के अधिपति रावण को समझाने, उससे कूटनीति करने गए थे। महाभारत में कौरवों, दुर्योधन को समझाने की भी कूटनीति हुई थी लेकिन रावण हो, दुर्योधन हो या इक्कीसवीं सदी के आधुनिक व्लादिमीर पुतिन और शी जिनफिंग, ये जब अपने को अहंकार व सर्वज्ञता में भगवान मान बैठते हैं, महादेव के आशीर्वाद से छप्पन इंची छाती का अधिपति समझने लगते हैं तो ऐसे में बेचारी कूटनीति, सरस्वती की वीणा-वाणी, समझने-समझाने की बुद्धि के लिए खोपड़ी में जगह कैसे होगी।
रावण और उसका अहंकार, फिर उससे पैदा रसायन की प्रवृत्तियों का यह इतिहास सत्य है जो हर काल, हर स्थान, हर इंसान लाल रंग का खूनी सैलाब बनता है। इसलिए कूटनीति से सफेद कबूतर उड़ाने, सफेद झंडा लेकर तानशाह अहंकारियों के आगे खड़ा होना हमेशा बेतमलब साबित हुआ है!
तभी तीसरे महायुद्ध की घड़ी आते हुए है। इसकी कालावधि का हिसाब वैसे ही लगाएं जैसे हिटलर और मुसोलिनी के उन्माद के चढ़ाव और उतार की अवधि थी। मोटा मोटी कह सकते हैं कि जब तक शी जिनफिंग और पुतिन जिंदा रहेंगे तब तक खून बहेगा। मानवता बेहाली, बरबादी और लड़ाई की खंदकों में मारी जाती रहेगी। भले इसके रूप अलग-अलग हो।
मतलब पहले और दूसरे महायुद्ध से कुछ अलग तरह का मगर ज्यादा घातक तीसरा महायुद्ध। क्यों? पहली बात, परमाणु हथियार की उपलब्धता। दूसरी बात, साइबर अटैक के नए हथियार। तीसरी बात, आर्थिक ताकत याकि महायुद्ध में पैसे की ताकत से खरीद-फरोख्त गुलाम बनाने के नए गुर। हां, शी जिनफिंग ने इसी हथियार से देशों को कर्जदार बना कर उन्हें अपने पर निर्भर बना कर लगभग अघोषित गुलाम-आश्रित बना दिया है। चौथी बात, मीडिया-सोशल मीडिया में प्रोपेगेंडा वॉर नया आकार-नए आयाम लिए हुए है। पांचवी बात, राष्ट्र सीमाओं के बजाय सभ्यताओं की लड़ाई। छठी बात, अहंकारी राजाओं, नस्ल, कौम व धर्म के धर्मयुद्ध तथा जेहादी भभकों के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तड़के बनेंगे। कह सकते हैं पिछले महायुद्ध के वक्त विचारधाराओं, साम्यवाद-पूंजीवाद-नात्सी विचारों की जो आग थी वह तीसरे महायुद्ध में नस्ल, धर्म, जेहाद से घी पाते हुए होगी। सातवीं बात, दुनिया क्योंकि भूमंडलीकृत हो गई है तो रणक्षेत्र का सेंटर केवल अकेले यूरोप का या दूसरे महायुद्ध जितना ही नहीं होगा, बल्कि एशिया और प्रशांत क्षेत्र में ज्यादा घमासान होगा। आठवीं बात, ऐसा होने की मुख्य वजह चीन और शी जिनफिंग का कमांडर-इन-चीफ होना हैं। चीन एशिया को जीत कर प्रशांत क्षेत्र में जापान, आस्ट्रेलिया को पार करके अमेरिका की और टारगेट बनाता होगा।
संभव है जो मेरा यह सिनेरियो कपोल कल्पित समझ आए। लेकिन इस बात को नोट रखें कि शी जिनफिंग अगले पांच वर्षों में पुतिन को जहां यूक्रेन के जरिए यूरोप से भिड़ांएंगे और उलझाए रखेंगे तो वहीं वे अपनी सैनिक ताकत से पहले ताइवान बनाम भारत के विकल्प में फैसला लेंगे। यों दोनों उसके आसान और पुराने टारगेट हैं। मगर ताइवान के पीछे क्योंकि अमेरिका और जापान है तो ताइवान में पीएलए सैनिकों को उतारने से तुरंत-सीधे विश्वयुद्ध की घोषणा का पंगा सभंव है जबकि भारत के अरुणाचल से ले कर भूटान, सिक्किम, नेपाल, उत्तराखंड, लद्दाख के हिमालयी इलाकों में यदि शी जिनफिंग अपने सैनिक बढ़ाएं तो अमेरिका और यूरोप चिंता करते हुए नहीं होंगे। नेपाल में सैनिक छावनी बना कर चीन अयोध्या के रामजी और काशी के बाबा विश्वनाथ के छोर तक पहुंच कर हिंदुओं और उनके मौजूदा भगवान नरेंद्र मोदी को बीजिंग बुलाकर दस्तखत करने के लिए कहे तो उसका पूरे एशिया पर जबरदस्त असर होगा। चीन की बेसिक-पहली रणनीति हिंदू-इस्लामी-अफ्रीकी आबादी को अपने अंगूठे के नीचे लेना है। तब अपने आप अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया लाचार होंगे। उन्हें समझ नहीं आएगा कि करें तो क्या करें।
आप सोच रहे होंगे कि मैं कैसी बकवास लिख रहा हूं। हमारे छप्पन इंची छाती के नरेंद्र मोदी, हमारी महाशक्ति, हमारा परमाणु हथियारों का जखीरा, मोदीजी की विश्वगुरूता, रूस और अमेरिका में मोदीजी, डोवालजी, जयशंकरजी की जब डुगडुगी है तो शी जिनफिंग की तो आंख खोल कर भारत की तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं है। फोटो में आपने देखा नहीं कि शी जिनफिंग अपने मोदीजी के सामने आंख नहीं खोलते। बेचारे की आंखें बंद रहती हैं।
मैं लिखते-लिखते व्यंग्य के मोड में आ गया हूं। दूसरे महायुद्ध का एक उदारहण बताता हूं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अमन की उम्मीद में हिटलर से मिलने बर्लिन गए थे तो दोनों की मुलाकात के बाद ब्रितानी मीडिया तक में चेंबरलिन की तारीफों के पुल बंधे थे। लोगों ने माना हिटलर हमें छोड़े रखेगा। लेकिन हुआ क्या? तभी कोई माने या न माने पिछले 75 वर्षों में बीजिंग के सभी हुक्मरानों ने, माओ से लेकर शी जिनफिंग लगातार भारत के प्रति हिकारत लिए हुए हैं। ये चीनी नेता भारत को दुहने और खाने वाली गाय मानते हैं। ताइवान के बाद अरूणाचल से लद्दाख याकि पूरे हिमालय को अपना मानते आए हैं। बार-बार दावा करते रहे हैं, चेताते रहे हैं। इसलिए नोट रखें तीसरे महायुद्ध का अनिवार्यतः रणक्षेत्र होगा हिमालय!
मैं मन से अपने ईश्वर से मौन प्रार्थना करते हुए हूं कि शी जिनफिंग का दिमाग, उनकी पीएलए सेना का टारगेट ताइवान, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका की तरफ हो। लेकिन अहंकारी तानाशाह की आंखें चारों दिशा में होती हैं। इसलिए होनी को कौन टाल सकता है? फिर हम हिंदूओं को क्या चिंता। यों भी भाग्य और नियति से जिंदा रहते हैं तो तीसरे महायुद्ध में भी रह लेंगे। नेहरूजी ने भी कहा था कि बंजर पठारों में रखा क्या है, घास भी नहीं उगती तो बाकि हिमालय पहाड़ों में व दूर के अरूणाचल में भी क्या रखा है। सबसे बड़ी बात- होइहे सोइ जो राम रचि राखा के मौजूदा संस्करण के होइहे सोइ जो मोदीजी रचि राखा में जब पूरा विश्वास है तो चिंता की क्या बात! आगे और गुलाम रह लेंगे!
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post