जानकारी के मुताबिक, पिछले साल नगर पालिका ने दशहरा मैदान में करीब 295 दुकानें आतिशबाजी विक्रेताओं को आवंटित की थी। खास बात यह है कि सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन ने आतिशबाजी के कारोबार पर काफी सख्ती बढ़ा दी है। जिसका असर आतिशबाजी की कीमतों पर पडऩे लगा है।
इस व्यवसाय में लंबे समय से काम कर रहे आतिशबाज के मुताबिक वैसे तो हर साल आतिशबाजी की रेट में इजाफा होता है, लेकिन पिछले दो सालों में काफी ज्यादा बदलाव आया है। पिछले साल की तुलना में इस बार आतिशबाजी 40 प्रतिशत महंगी हो गई है। यानी कि जो पटाखा बीते साल 50 रुपए का था वह इस बार 70 से 80 रुपए का मिल रहा है। इसके अलावा अन्य आइटमों की रेट भी बढ़ी है। इसके बावजूद लोग आतिशबाजी खरीदने में कोई कंजूसी नहीं करते। क्योंकि खुशी और उल्लास का यह त्योहार साल में एक बार आता है। जिसे सभी पूरी मन से मनाना चाहता हैं।
पत्रिका पड़ताल में सामने आया है कि स्थानीय स्तर पर आतिशबाजी निर्माण करने वालों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों ने बताया कि वर्तमान में जो आतिशबाजी निर्माण का काम कर रहे हैं, वह वर्षों पुराने हैं। कुछ का निधन हो चुका है। नया व्यक्ति इस काम को नहीं सीखना चाहता। इसलिए आतिशबाजी बनाने वालों की संख्या कम हो रही है। आतिशबाजी के शौकीन लोग ज्यादातर ऐसे पटाखों पसंद करते हैं, जिसकी आवाज बहुत तेज हो। इसी को ध्यान में रखते हुए आतिशबाजी बनाने वाले करीगर पटाखों तैयार करते हैं। पप्पू आतिशबाज के मुताबिक इस बार मार्केट में सबसे तेज धमाका करने वाला पटाखा मुर्गा छाप सुतली बम है इसकी कीमत 20 रुपए है इसके अलावा छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर भी कम आवाज वाली आतिशबाजी तैयार की गई है।
कंपनियों ने भी ग्रीन पटाखों की सप्लाई बढ़ा दी
50 सालों से आतिशबाजी विक्रय का काम करने वाले पप्पू आतिशबाज का कहना है कि अभी तक जो परंपरागत आतिशबाजी आती थी उससे वायु और ध्वनि प्रदूषण ज्यादा होता है। जिसे लेकर अब शासन-प्रशासन सहित आम जनता भी सचेत हो गई है। जिसकी वजह से ग्रीन पटाखों की मांग और निर्माण दोनों ही बढ़े हैं। गुना जिले में कुल आतिशबाजी में ग्रीन पटाखों की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ी है। यह ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत तक प्रदूषण को कम करते हैं। इसकी वजह से पटाखा बनाने वाली कंपनियों ने भी अब ग्रीन पटाखों की सप्लाई बढ़ा दी है। इन ग्रीन पटाखों के पैकेट पर लोगो और क्यूआर कोड दिया गया है, ताकि लोग इनकी असलियत का भी पता लगा सकें। वहीं आतिशबाजी निर्माण और वि₹य में एक और तब्दील हुई है। जिसके अनुसार अब देवी-देवताओं के चित्र वाले पटाखे या आतिशबाजी बाजार में आना बंद हो गई है।
तहसील आवेदन
● गुना 321
● चांचौड़ा 134
● राघौगढ़ 152
● आरोन 81
● कुल 662
महंगाई बढ़ने के ये भी कारण
आतिशबाजी निर्माण और विक्रय के व्यवसाय में लगे पप्पू आतिशबाज ने बताया कि पटाखे महंगे होने की नई-नई वजह जुड़ती जा रही हैं। सबसे पहले तो पटाखा बनने में जो सामग्री लगती है, वह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही है। रद्दी काफी महंगी हो गई है। पटाखे के अंदर जो मसाला भरा जाता है वह मुंबई, दिल्ली, आगरा से आता है। यहां तक पहुंचने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में मसाला भी बहुत महंगा हो गया है।
लाइसेंस आवेदन स्थिति
लाइसेंस जारी करने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है। अब तक अलग-अलग तहसीलों से जो आवेदन आए हैं। उनकी कुल संख्या 662 हो चुकी है। लाइसेंस देने की कार्रवाई एसडीएम स्तर से पूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद की जा रही है।
-आदित्य सिंह, एडीएम
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