मोदी सरकार में भारत रक्षा अनुसंधान, विकास और निर्यात के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। इसकी झलक डिफेंस एक्सपो-2022 में देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार (19 अक्टूबर, 2022) को गुजरात के गांधीनगर में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा आयोजित 12वें डिफेंस एक्सपो में इंडिया पैवेलियन का उद्घाटन किया। इस एक्सपो में दुनिया के 100 देश रक्षा क्षेत्र में भारत की प्रगति का गवाह बन रहे हैं, वहीं भारत रक्षा निर्यात में भी लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार है। अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों को 35,000 करोड़ रुपये तक के हथियार और ड्रोन्स आदि बेचने जा रहा है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार (17 अक्टूबर, 2022) को भारत की रक्षा तैयारियों के बारे में बताया कि भारत जहां डिफेंस एक्सपो में स्वदेशी हथियारों, उभरती तकनीकों पर अपनी रिसर्च और स्वार्म ड्रोन्स जैसे उपकरणों की ताकत दुनिया को दिखाएगा, वहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में भी भारत ने बड़ी सफलता हासिल की है। अब भारत की कोशिश है कि इन हथियारों और तकनीकों को हिंद महासागर के देशों और अफ्रीकी मुल्कों को निर्यात किया जाए।
अफ्रीकी देशों के अपने समकक्षों से बातचीत में जुटे राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत ने चालू वित्त वर्ष के छह महीनों में 8,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात दर्ज किया है। हमारा लक्ष्य है कि 2025 तक इस बड़े आंकड़े को हासिल किया जाए। बीते साल भी भारत ने 13,000 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया था। रक्षा मंत्री ने कहा कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद भारत के रक्षा क्षेत्र ने 2014 के बाद से 30,000 करोड़ रुपये का निर्यात किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 2014 से पहले हम 900 करोड़ रुपये से 1,300 करोड़ रुपये तक रक्षा निर्यात कर पाते थे। लेकिन मोदी सरकार में रक्षा निर्यात में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने कहा कि निजी और सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे तो आने वाले समय में हमारा निर्यात और तेजी से बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि हम तेजी से डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग में लीडर के तौर पर आगे बढ़ रहे हैं। हम अब आयातक होने की बजाय निर्यातक बनने की दिशा में हैं।
डिफेंस सेक्रेटरी अजय कुमार ने कहा कि इस साल के एक्सपो में कुल 451 एग्रीमेंट्स पर साइन होने वाले हैं। इनमें प्रोडक्ट्स की लॉन्चिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर शामिल है। मंगलवार को शुरू हुए एक्सपो से पहले राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश से आगे निकलते हुए टॉप 25 निर्यातकों में शामिल होने में सफलता पाई है।
आइए देखते हैं मोदी सरकार किस तरह रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को बढ़ावा दे रही है…
पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात में 334 प्रतिशत की उछाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों में से एक ‘मेक इन इंडिया’ ने 25 सितंबर, 2022 को विनिर्माण के क्षेत्र में गौरवशाली उपलब्धियों के साथ अपने आठ वर्ष का सफर पूरा कर लिया। इस दौरान इस कार्यक्रम ने विनिर्माण अवसंरचना, निवेश, नवोन्मेषण और कौशल विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रधानमंत्री मोदी के कुशल और गतिशील नेतृत्व में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम ने देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण और निवेश गंतव्य के रूप में पहचान दिलाई है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘लोकल गोज ग्लोबल-मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ के नारे का कामल है कि पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात में 334 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। भारत रक्षा उत्पादन के मामले में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।
पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात में करीब 8 गुना वृद्धि
दरअसल पीआइबी ने रविवार (25 सितंबर, 2022) को एक ट्वीट कर बताया कि दूसरे सबसे बड़े सशस्त्र बल वाला भारतीय रक्षा क्षेत्र क्रांति के मुहाने पर है। मोदी सरकार के प्रोत्साहन की वजह से आज भारत में निर्मित हथियार 75 देशों को निर्यात किया जा रहा है। डिफेंस मिनिस्ट्री ने जुलाई 2022 में बताया था कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 13 हजार करोड़ रुपये था। सालाना आधार पर इसमें 54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के एडिशनल सेक्रेटरी संजय जाजू ने कहा था कि पांच सालों में भारत का निर्यात करीब आठ गुना बढ़ा है। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तब 2015-16 में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट महज 2059 करोड़ रुपये था।
The Indian Defence sector, the second largest armed force is at the cusp of revolution.
Defence exports grew by 334% in the last five years; India now exporting to over 75 countries due to collaborative efforts.#8YearsOfMakeInIndia #AmritMahotsav @makeinindia pic.twitter.com/r2p8ErqmIq
— PIB India (@PIB_India) September 25, 2022
भारत के पास खुद विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता
मेक इन इंडिया के तहत कई ऐसे विनिर्माण किए हैं, जिससे भारत को अपनी तकनीकी क्षमता पर गर्व हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2 सितंबर, 2022 को कोचीन शिपयार्ड में एक भव्य समारोह के दौरान देश का पहला स्वेदशी एयरक्राफ्ट कैरियर ‘आईएनएस विक्रांत’ भारतीय नौसेना को सौंप दिया। 45 हजार टन वजन वाले इस युद्धपोत को 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। स्वदेशी होने के बावजूद यह एयरक्राफ्ट कैरियर तकनीक के मामले में विदेशी युद्धपोतों के समकक्ष खड़ा होता है। नौसेना में इसके शामिल होने से भारत उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में भी शामिल हो गया, जिनके पास खुद विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता है।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर भारत
इससे पहले स्वदेशी निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर MK3 स्क्वॉड्रन को भी इंडियन कोस्ट गार्ड ने अपनी सेवा में शामिल किया। इस स्वदेशी एएलएच एमके III हेलीकॉप्टर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने बनाया है। इनमें उन्नत रडार सहित इलेक्ट्रो ऑप्टिकल सेंसर, शक्ति इंजन, पूरा ग्लास कॉकपिट, उच्च-तीव्रता वाली सर्चलाइट, उन्नत संचार प्रणाली, स्वचालित पहचान प्रणाली के साथ-साथ SAR होमर जैसे अत्याधुनिक उपकरण हैं। लेजर गाइडेड ATGM का भी सफल परीक्षण किया गया। न्यूक्लियर कैपेबल बैलिस्टिक मिसाइल Agni-P का भी सफल परीक्षण किया गया।
रक्षा उत्पादन में टॉप पांच देशों में शामिल होना लक्ष्य
रक्षा सचिव अजय कुमार ने गुरुवार (22 सितंबर, 2022) को एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल की ताकत का इस्तेमाल रक्षा क्षेत्र में करने के प्रयास किए जा रहे हैं और अमृत काल की कल्पना देश को रक्षा उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर शीर्ष पांच देशों के बीच देखने की है। उन्होंने कहा था कि बीते 75 वर्ष में भारत दुनिया में रक्षा उत्पादों के सबसे बड़े आयातकों में से एक रहा है और सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है। इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारतीय सेना देश पर बुरी नजर डालने वाली किसी भी ताकत को मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता रखती है। अपने पास एटमी प्रतिरोध की ताकत होने के कारण भारतीय सेना को आत्मरक्षा का पूरा भरोसा है।
मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ को दिया बढ़ावा
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उनकी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए। इनमें कानून में संशोधन, अनावश्यक अनुपालन बोझ कम करने के लिए दिशानिर्देशों एवं विनियमनों का उदारीकरण, लागत में कमी लाना और भारत में व्यवसाय करने की सुगमता बढ़ाना शमिल है। इसके अतिरिक्त, श्रम सुधारों से भर्ती और छंटनी में लचीलापन लाया गया है। स्थानीय विनिर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लागू किए गए हैं। विनिर्माण और विनिवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कदमों में कंपनी करों में कमी, सार्वजनिक खरीद ऑर्डर और चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शामिल है।
सार्वजनिक खरीद में ‘मेक इन इंडिया’ को वरीयता
स्थानीय उद्योग को वस्तुओं, कार्यों और सेवाओं की सार्वजनिक खरीद में वरीयता प्रदान करने के जरिये स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक सक्षमकारी प्रावधान के रूप में सामान्य वित्तीय नियम, 2017 के नियम 153 (iii) के अनुरुप सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) ऑर्डर, 2017 भी जारी किया गया। इस नीति का लक्ष्य केवल व्यापार या असेंबल मदों का आयात करने वाले निकायों की तुलना में सार्वजनिक खरीद गतिविधियां में घरेलू विनिर्माता की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है। यह नीति सभी मंत्रालयों या विभागों या संबद्ध या अधीनस्थ कार्यालयों या भारत सरकार द्वारा नियंत्रित स्वायतशासी निकाय पर लागू है और इसमें सरकारी कंपनियां शामिल हैं। इसके अलावा रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ा देने के लिए मोदी सरकार ने कई सुधार किए हैं।
अमेरिकी नौसेना के जंगी जहाज का भारत में मरम्मत
दुनिया भर में भारत दबदबा बढ़ा है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश भी भारत की तकनीकी सफलता का लोहा मानने लगे हैं और अपनी नौसेना के जंगी जहाज को मरम्मत के लिए भारत भेज रहे हैं। अमेरिकी नौसैनिक पोत ‘चार्ल्स ड्रयू’ मरम्मत एवं संबद्ध सेवाओं के लिए रविवार (6 अगस्त, 2022) को चेन्नई के कट्टूपल्ली में कंपनी ‘लार्सन एंड टुब्रो’ (एलएंडटी) के शिपयार्ड में पहुंचा। यह पहली बार है, जब कोई अमेरिकी पोत मरम्मत कार्य के लिए भारत पहुंचा। रक्षा मंत्रालय ने इसे ‘मेक इन इंडिया’ के लिए ‘‘उत्साहजनक’’ करार दिया।
रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया कि यह पहली बार है, जब अमेरिकी नौसेना का जहाज मरम्मत के लिए भारत पहुंचा है। अमेरिकी नौसेना ने जहाज के रखरखाव के लिए कट्टुपल्ली में एलएंडटी के शिपयार्ड को ठेका दिया था। यह कदम वैश्विक जहाज मरम्मत बाजार में भारतीय शिपयार्ड की क्षमताओं को दर्शाता है। भारतीय शिपयार्ड जहाज मरम्मत और रखरखाव के लिए उन्नत समुद्री प्रौद्योगिकी का उपयोग करके व्यापक और किफायती सेवाएं प्रदान करते हैं।
अमेरिकी नौसैनिक जहाज के मरम्मत के लिए भारत आने की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रक्षा सचिव डा. अजय कुमार, नौसेना के उप प्रमुख वाइस एडमिरल एसएन घोरमडे, तमिलनाडु व पुडुचेरी नौसेना क्षेत्र के फ्लैग आफिसर कमांडिंग रियर एडमिरल एस वेंकटरमन और रक्षा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी चार्ल्स ड्रिव का स्वागत करने के लिए एलएंडटी शिपयार्ड में मौजूद थे। इस दौरान चेन्नई में अमेरिकी महावाणिज्य दूत जुडिथ रेविन के अलावा नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।
रक्षा सचिव अजय कुमार ने कहा कि हमें अमेरिकी नौसेना पोत चार्ल्स ड्रयू का भारत में स्वागत करते हुए प्रसन्नता हो रही है। भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने में भी भारत की पहल का विशेष महत्व है। रक्षा सचिव ने भारत अमेरिका के रक्षा संबंधों में प्रगति को लेकर कहा कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच रक्षा उद्योग सहयोग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। अमेरिकी दूतावास की महावाणिज्य दूत जूडिथ रविन ने इस मौके पर इसे भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों में एक नया अध्याय करार देते हुए इसे गहरे संबंधों का प्रमाण बताया।
रक्षा सचिव ने कहा कि भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के पास आज लगभग दो अरब डालर के कारोबार के साथ छह प्रमुख शिपयार्ड हैं। हमारा अपना डिजाइन हाउस है और यह सभी प्रकार के अत्याधुनिक जहाज बनाने में सक्षम है। वहीं एलएंडटी के सीईओ के सलाहकार जेडी पाटिल ने कहा कि अमेरिकी नौसेना ने काफी जांच-परख के बाद अपने जहाज के मरम्मत के लिए एलएंडटी का चयन किया है। वैश्विक मानकों के अनुसार निर्मित इस शिपयार्ड में सभी आधुनिक तकनीक मौजूद है। गौरतलब है कि अमेरिका का यह पोत मरम्मत के लिए 11 दिन तक कट्टूपल्ली के शिपयार्ड में रहेगा। यह पोत अमेरिकी नौसेना को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जंगी बेड़े के संचालन में अहम सहयोग देता है।
हथियार बनाने के लिए 494 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है। वहीं भारत को लेकर दुनिया का दृष्टिकोण भी काफी आशावादी है। इसी का परिणाम है कि रक्षा क्षेत्र में तेजी से विदेशी निवेश हो रहा है। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने सोमवार (25 जुलाई, 2022) को लोकसभा में बताया कि 2020 में संशोधित एफडीआई नीति पर अधिसूचना जारी होने के बाद से रक्षा क्षेत्र में लगभग 494 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ है।
358 निजी कंपनियों को 584 रक्षा लाइसेंस जारी
भट्ट ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिए निजी कंपनियों को लाइसेंस जारी कर रही है। रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 358 निजी कंपनियों को विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने की खातिर 584 रक्षा लाइसेंस जारी किए हैं। इनमें हथियार निर्माण के लिए 107 लाइसेंस शामिल हैं।
भारतीय कंपनियों से रक्षा उपकरण खरीदने पर जोर
रक्षा राज्य मंत्री ने कहा कि सरकार आयात पर निर्भरता कम करना चाहती है और उसने घरेलू रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने का फैसला किया है। अगले पांच वर्षो में भारत करीब 130 अरब डालर (दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा) के हथियार और रक्षा उपकरण खरीद सकता है। सरकार की कोशिश है कि भारतीय कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाले हथियार बनाने की क्षमता प्राप्त करें और सरकार उनसे ही हथियार खरीदे।
निवेश को आकर्षित करने के लिए कई नीतिगत सुधार
संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए रक्षा राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने घरेलू रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं। 2020 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से एफडीआई की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत और सरकारी मार्ग से 100 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की थी। रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) ने निवेश को आकर्षित करने के लिए कई नीतिगत सुधार किए हैं। रक्षा मंत्रालय ने अब तक 200 से अधिक रक्षा उपकरणों की सूची जारी की, जिन्हें अब विदेश से नहीं खरीदा जाएगा। इसके लिए देश में ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रक्षा अनुसंधान, डिजाइन और विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
2014 के बाद रक्षा क्षेत्र में 3,343 करोड़ रुपये का FDI
इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 28 मार्च, 2022 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2014 से रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में कुल 3,343 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। उन्होंने कहा था कि वर्ष 2001-2014 की अवधि के दौरान, लगभग 1,382 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई प्रवाह दर्ज किया गया था और वर्ष 2014 से अब तक लगभग 3,343 करोड़ रुपये का कुल एफडीआई हासिल किया गया है।
दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण जारी
गौरतलब है कि बजट 2018-19 में सरकार ने रक्षा क्षेत्र की मजबूती के लिए दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का ऐलान किया था। पहला डिफेंस कॉरिडोर उत्तर प्रदेश में और दूसरा कॉरिडोर तमिलनाडु में बनाया जा रहा है। इस कॉरिडोर की मदद से सरकार डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहती है। सरकार की योजना इस कॉरिडोर की मदद से वित्त वर्ष 2024-25 तक दोनों राज्यों में 10-10 हजार करोड़ के निवेश को आकर्षित करने को है।
मोदी सरकार द्वारा स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा
मोदी सरकार के नीतिगत फैसले और प्रोत्साहन की वजह से 14 रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियों द्वारा बनाया जा रहा है, उसमें एमसीडी ग्लैंड्स शामिल है। इसे स्वीडन की रोक्सटैक से आयात किया जा रहा था, जिसे फरीदाबाद की मैसर्स वालमैक्स ने बनाना शुरू कर दिया है। इसी प्रकार ब्रिज विंडो ग्लास पहले स्पेन की सेंट गोबैन कंपनी से आयात किया जाता था, लेकिन जयपुर के एक स्टार्टअप मैसर्स जीत एंड जीत इसका विकास और निर्माण कर रहा है। इसके अलावा जर्मनी की एक कंपनी से सीकेड्स को लासर्न एंड टूब्रो बेंगलुरु और आयुध कारखाने डीआरडीई ग्वालियर ने तैयार किया है। मुंबई की कंपनी मैसर्स जेम्स वाल्कर ने फ्रांस से आयातित दो तकनीकों को तैयार किया है।
आयात होने वाले रक्षा उपकरणों का भारत में निर्माण
समुद्री पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी लोडिंग ट्राली एक बहुतायत से इस्तेमाल होने वाला उपकरण है। इसके मैसर्स नेवल ग्रुप फ्रांस से आयात किया जाता था, जिसे अब हैदराबाद की स्टार्टअप कंपनी एसईसी इंडस्ट्रीज द्वारा तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा पनडुब्बियों में इस्तेमाल होने वाले वातानुकूलन संयंत्र का आयात मैसर्स सनोरी फ्रांस से हो रहा था, जिसे कारद स्थित श्री रेफ्रीजरेशन ने तैयार कर लिया है। इसी प्रकार वेंटीलेसन वालव्स का आयात भी ब्रिटेन से किया जा रहा था, जिसका निर्माण अहमदाबाद की कंपनी मैसर्स चामुंडा वालव्स द्वारा किया जा रहा है। रिमोट कंट्रोल वालव्स का आयात ब्रिटेन की कंपनी थामपसान से किया जा रहा था, जिसका निर्माण पुणे की कंपनी मैसर्स डेलवाल ने शुरू कर दिया है।
आत्मनिर्भरता में सहायक बनीं स्टार्टअप कंपनियां
आज भारत की स्टार्टअप कंपनियां रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता में अहम भूमिका निभा रही है। विदेशों से आयात की जाने वाली रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियां अब तेजी से तैयार करने लगी हैं। रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल के दौरान 14 ऐसी महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों को भारत में तैयार करने में सफलता मिली है, जिन्हें अभी तक विदेशों से आयात किया जा रहा था। इनके देश में ही निर्माण का रास्ता साफ होने से इन्हें आयात करने की बाध्यता खत्म हो गई है।
आयात में कमी से विदेशी मुद्रा की बचत, रोजगार सृजन
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से इनके आयात में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है। दूसरे, इससे हर साल भारी मात्रा में विदेश मुद्रा की बचत होगी। साथ ही रोजगार सृजित होंगे। रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनेगा। भारत अपने रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर होने के साथ ही बड़े निर्यातक के रूप में उभर रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाले शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत ने मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए कई देशों से समझौता किया है।
सैन्य हथियार बनाने वाली 3 भारतीय कंपनियां दुनिया की टॉप 100 में शामिल
सैन्य हथियार बनाने में भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन रहा है। आज दुनिया भर में मेक इन इंडिया का दबदबा बढ़ा है। सैन्य उपकरण बनाने वाली दुनिया की टॉप 100 कंपनियों में 3 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। स्वीडिश थिंक-टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के दौरान जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (42वें स्थान पर) और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (66वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में क्रमश: 1.5 प्रतिशत और 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज (60वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियों की कुल हथियारों की बिक्री 6.5 बिलियन डॉलर (लगभग 48,750 करोड़ रुपये) रही, जो 2019 की तुलना में 2020 में 1.7 प्रतिशत अधिक थी।
स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार का अर्मेनिया को निर्यात
प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का असर है कि अब तक हथियारों का आयात करने वाला भारत अब हथियारों का निर्यात कर रहा है। भारत ने रूस और पौलेंड की पछाड़ते हुए अर्मेनिया के साथ रक्षा सौदा किया। इस करार में भारत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित 40 मिलियन डॉलर (करीब 280 करोड़ रुपये) का हथियार अर्मेनिया को बेच रहा है। इसमें ‘स्वाती वेपन लोकेटिंग रडार’ सिस्टम शामिल है। इन हथियारों का निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया गया है। स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार 50 किमी के रेंज में दुश्मन के हथियारों जैसे मोर्टार, शेल और रॉकेट तेज, स्वचालित और सटीक तरीके से पता लगा लेता है।
भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट 100 से ज्यादा देशों को निर्यात
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि आज दुनिया भर में भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की मांग है। भारत ने 100 से ज्यादा देशों को राष्ट्रीय मानक की बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्यात शुरू कर रहा है। भारत की मानक संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के मुताबिक, बुलेटप्रूफ जैकेट खरीददारों में कई यूरोपीय देश भी शामिल हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के बाद भारत चौथा देश है, जो राष्ट्रीय मानकों पर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की बुलेटप्रूफ जैकेट बनाता है। भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की खूबी है कि ये 360 डिग्री सुरक्षा के लिए जानी जाती है।
लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो म्यांमार को किया गया निर्यात
भारत ने स्वदेश निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन शायना टॉरपीडो को म्यांमार को निर्यात किया। एडवांस्ड लाइट टॉरपीडो (TAL) शायना भारत की पहली घरेलू रूप से निर्मित लाइटवेट एंटी-सबमरीन टॉरपीडो है। इसे DRDO के नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला द्वारा विकसित किया गया है और इस टॉरपीडो का निर्माण भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने किया है। भारतीय हथियार उद्योग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। टीएएल शायना टॉरपीडो के पहले बैच को 37.9 मिलियन डॉलर के निर्यात सौदे के हिस्से के रूप में म्यांमार भेजा गया, जिस पर 2017 में हस्ताक्षर किए गए थे।
इसके अलावा भी कई ऐसी रक्षा परियोजनाएं हैं जिनमें पीएम मोदी की पहल पर मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। डालते हैं एक नजर-
अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर बनाने के प्रोजेक्ट पर काम जारी
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत भारत में अपाचे जैसा हेलिकॉप्टर के विनिर्माण का रास्ता खुला है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने भारतीय सेना के लिए युद्धक हेलिकॉप्टर बनाने के मेगा प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। एचएएल के मुताबिक 10 से 12 टन के ये हेलिकॉप्टर दुनिया के बेहतरीन हेलिकॉप्टर्स की तरह आधुनिक और शक्तिशाली होंगे। एचएएल के प्रमुख आर माधवन ने कहा कि जमीनी स्तर पर काम शुरू किया जा चुका है और 2027 तक इन्हें तैयार किया जाएगा। इस मेगा प्रोजेक्ट का लक्ष्य आने वाले समय में सेना के तीनों अंगों के लिए 4 लाख करोड़ रुपये के सैन्य हेलिकॉप्टर्स के आयात को रोकना है।
पनडुब्बी बढ़ाएगी नौसेना की ताकत
मेक इन इंडिया के तहत नौसेना के लिए भारत में ही करीब 40 हजार करोड़ रुपये की लागत से छह पी-75 (आई) पनडुब्बियां बनाई जा रही है। पनडुब्बियों के निर्माण की दिशा में स्वदेशी डिजाइन और निर्माण की क्षमता विकसित करने के लिए नौसेना ने 20 जुलाई, 2021 को संभावित रणनीतिक भागीदारों को छांटने के लिए कॉन्ट्रैक्ट जारी कर दिया। रणनीतिक भागीदारों को मूल उपकरण विनिर्माताओं के साथ मिलकर देश में इन पनडुब्बियों के निर्माण का संयंत्र लगाने को कहा गया है। इस कदम का मकसद देश को पनडुब्बियों के डिजाइन और उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है।
मेक इन इंडिया के तहत क्लाश्निकोव राइफल
मेक इन इंडिया के तहत अब दुनिया के सबसे घातक हथियारों में से एक क्लाश्निकोव राइफल एके 103 भारत में बनाए जाएंगे। असास्ट राइफॉल्स एके 47 दुनिया की सबसे कामयाब राइफल है। भारत और रूसी हथियार निर्माता कंपनी क्लाश्निकोव मिलकर एके 47 का उन्नत संस्करण एके 103 राइफल बनाएंगे। सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे भारत में बनाया जाएगा। इसे भारत से निर्यात भी किया जा सकता है।
भारत में फाइटर जेट एफ-16 के उपकरण का निर्माण
पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ परवान चढ़ रहा है। इसी योजना के तहत भारत में फाइटर जेट एफ-16 के विनिर्माण का रास्ता खुला। सुरक्षा और एयरो स्पेस काम करने वाली अमेरिकी कंपनी लॉकहिड मार्टिन ने इसके लिए भारतीय कंपनी टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड (TASL) के साथ समझौता किया। इसके तहत भारत में फाइटर जेट F-16 के विंग का निर्माण का समझौता किया गया। पीएम मोदी का सपना भारत को आने वाले कुछ सालों में दुनिया के बड़े सैन्य उपकरण बनाने वाले देशों में शामिल करना है। पीएम मोदी के मेक इन इंडिया की पहल से देश इस दिशा में कदम मजबूती से बढ़ा रहा है।
रोबोटिक ड्रोन ‘आईरोवटुना’ का उत्पादन
केरल के कोच्चि स्थित फर्म ने रिमोट कंट्रोल की मदद से नियंत्रित किया जाने वाला एक ड्रोन विकसित किया, जिसे ‘आईरोवटुना’ नाम दिया गया। इसका व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उत्पादन किया जा रहा है। कंपनी ने अपना पहला रोबोट डीआरडीओ के नेवल फिजिकल ओसियनोग्राफी लेबोरेटरी (एनपीओएल) को सौंपा। पानी के भीतर काम करने में सक्षम यह रोबोटिक ड्रोन पानी के भीतर जहाजों और अन्य संरचनाओं का समय पर वीडियो भेजने सक्षम है।
आइए देखते हैं मेक इन इंडिया के तहत निर्मित रक्षा उपकरण किस तरह सेना की ताकत बढ़ा रहे हैं…
डॉर्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट से बढ़ी नौसेना की ताकत
भारतीय नौसेना में नया डॉर्नियर -228 स्क्वाड्रन INAS 313 शामिल किया गया। नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने जुलाई 2019 में मीनाम्बक्कम में पांचवें डॉर्नियर एयरक्राफ्ट स्वैड्रॉन को भारतीय नौसेना को सौंपा। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से बनाए गए इन विमानों को आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। मल्टीरोल सर्विलांस डॉर्नियर एयरक्राफ्ट में आधुनिक सेंसर्स और उपकरण लगाए गए हैं, जिससे दुश्मन पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी। यह बचाव और खोजी अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे नौसेना की निगरानी क्षमता काफी बढ़ गई है। डॉर्नियर विमान का इस्तेमाल पूर्वी समुद्री सीमा पर निगरानी के लिए किया जाएगा।
‘मेक इन इंडिया’ के तहत तैयार आईएनएस ‘करंज’
मेक इन इंडिया के तहत निर्मित स्कॉर्पीन श्रेणी की तीसरी पनडुब्बी आईएनएस ‘करंज’ को 31 जनवरी, 2018 को नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया था। ‘करंज’ एक स्वदेशी पनडुब्बी है। करंज पनडुब्बी कई आधुनिक फीचर्स से लैस है और दुश्मनों को चकमा देकर सटीक निशाना लगा सकती है। इसके साथ ही ‘करंज’ टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती है। करंज पनडुब्बी में कई और खूबियां भी हैं। यह पनडुब्बी रडार की पकड़ में नहीं आ सकती। यह जमीन पर हमला करने में सक्षम है, इसमें ऑक्सीजन बनाने की भी क्षमता है, यही वजह है कि करंज पनडुब्बी लंबे समय तक पानी में रह सकती है। युद्ध की स्थिति में करंज पनडुब्बी हर तरह के हालात से सुरक्षित और बड़ी आसानी से दुश्मनों को चकमा देकर बाहर निकल सकती है।
पीएम मोदी ने लांच की आईएनएस ‘कलवरी’
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में बनी स्कॉर्पीन श्रेणी की पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी को 14 दिसंबर, 2017 को लांच किया था। वेस्टर्न नेवी कमांड में आयोजित एक कार्यक्रम में पीएम मोदी की मौजूदगी में इस पनडुब्बी को नौसेना में कमीशंड किया गया था। इस पनडुब्बी ने केवल नौसेना की ताकत को अलग तरीके से परिभाषित किया, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए भी इसे एक मील का पत्थर माना गया। कलवरी पनडुब्बी को फ्रांस की एक कंपनी ने डिजाइन किया था, तो वहीं मेक इन इंडिया के तहत इसे मुंबई के मझगांव डॉकयॉर्ड में तैयार किया गया। आईएनएस कलवरी के बाद 12 जनवरी, 2019 को स्कॉर्पीन श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस खांदेरी को लांच किया गया था। कलवरी और खंडेरी पनडुब्बियां भी आधुनिक फीचर्स से लैस हैं। यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं, साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती हैं।
पूरी तरह देश में निर्मित धनुष तोप सेना में शामिल
अक्टूबर 2019 में भारतीय सेना ने संभावित खतरों को देखते हुए बोफोर्स से भी खतरनाक तोप धनुष को अपने आर्टिलरी विंग में शामिल कर लिया। स्वदेश में निर्मित इस तोप की मारक क्षमता इतनी खतरनाक है कि 50 किलोमीटर की दूरी पर बैठा दुश्मन पलक झपकते ही खत्म हो जाएगा। यह 155 एमएम और 45 कैलिबर की आर्टिलरी गन है। धनुष में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम को जोड़ा गया है। इसमें आटो लेइंग सुविधा है। ऑनबोर्ड बैलिस्टिक गणना और दिन और रात में सीधी फायरिंग की आधुनिकतम क्षमता से लैस है। इसमें लगी सेल्फ प्रोपल्शन यूनिट पहाड़ी क्षेत्रों में धनुष को आसानी से पहुंचाने में सक्षम है। धनुष के ऊपर मौसम का कोई असर नहीं होता। यह -50 डिग्री सेल्सियस से लेकर 52 डिग्री की भीषण गर्मी में भी 24 घंटे काम कर सकती है। सेल्फ प्रोपेल्ड मोड में भी ये गन रेगिस्तान और हजारों मीटर ऊंचे खड़े पहाड़ों पर चढ़ सकती है।
K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपें सेना में शामिल
K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपों को 9 नवंबर 2018 को सेना में शामिल किया गया। इससे सेना की ताकत और बढ़ गई है। के9 वज्र तोप की रेंज 28-38 किमी है और तीन मिनट में 15 गोले दाग सकती है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है। इसके साथ एम 777 होवित्जर तोप 30 किमी तक वार कर सकती है। इसे हेलिकॉप्टर या प्लेन से आवश्यकतानुसार एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। 9 नवंबर को देवलाली में आयोजित समारोह में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत समेत कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए।
वायु सेना में देसी ‘तेजस’ का पहला स्क्वैड्रन शामिल
प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा लॉन्च किये गए मेक इन इंडिया अभियान के तहत देश में बने हल्के लडाकू विमान, तेजस के पहले स्क्वैड्रन को जुलाई 2016 में वायुसेना में शामिल कर लिया गया। पहली खेप में दो विमान वायुसेना में शामिल किए गए। एचएएल ने यहां एयरक्राफ्ट सिस्टम टेस्टिंग इस्टैबलिशमेंट में एक कार्यक्रम के दौरान वायुसेना के दो तेजस विमान सौंपे। पहली स्क्वाड्रन फ्लाइंग डैगर्स नाम दिया गया। तेजस ने गणतंत्र दिवस, एयरो इंडिया और वायु सेना दिवस में भाग लिया। एसयू-30 एमकेआई विमानों का निर्माण एचएएल में किया जा रहा है।
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