- Hindi News
- Opinion
- Column Pt. Vijayshankar Mehta Save Religion Live Properly So That Struggles World Little Easier
2 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
पं. विजयशंकर मेहता
धर्म निर्भय होना सिखाता है। हमारे देश में धार्मिकता का अर्थ उन्माद नहीं है, प्रेमपूर्ण रहते हुए निर्भय होना है। इस सबके बावजूद एक बड़ा वर्ग इसलिए भयभीत है कि उसके पास बचत का कोई सहारा नहीं है। बचेगा तब, जब वह ठीक से कमाएगा। बहुत सारे लोगों के पास तो मासिक वेतन का आश्वासन भी नहीं है। देश में लगभग 70 फीसदी लोग ऐसे रोजगार में लगे हैं जो असुरक्षित हैं। तो भय होना स्वाभाविक है।
ऐसे में धर्म का सहारा ठीक से लिया जाए। उलझनें कभी किसी की कम नहीं होंगी। पर सही अर्थ में धर्म से जुड़ जाएं तो संघर्ष का सामना करना आसान हो जाएगा। हमें संसार छोड़ना नहीं है। संसार में रहते हुए ये सब भोगना भी है। अब इसको धर्म की दृष्टि से देखें तो संसार से जुड़ने का माध्यम इंद्रियां होती हैं। दस इंद्रियां हम मनुष्यों के शरीर में हैं और इन इंद्रियों से ही दुनिया प्राप्त करते हैं।
हम एक गलती करते हैं कि इन्हीं इंद्रियों से ईश्वर को भी प्राप्त करना चाहते हैं। इंद्रियां बाहर की ओर जाएं तो संसार मिलता है और इंद्रियां भीतर की ओर मुड़ जाएं तो संसार बनाने वाला मिलता है। इसलिए अपने-अपने धर्म को बचाइए, उसमें ठीक से जिएं तो ये दुनिया के संघर्ष थोड़े आसान हो जाएंगे।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post