अरुण नैथानी
देश की जो पीढ़ी कपिल देव के नेतृत्व वाली विश्व विजेता टीम से परिचित रही होगी, उसे भद्रपुरुषों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट खेल के भद्रपुरुष रोजर बिन्नी के बारे में बखूबी पता होगा। उनकी साफगोई व भद्रता के किस्से तब से लेकर अब तक खूब गूंजा करते हैं। हालांकि, क्रिकेटर के रूप में उनकी पारी ज्यादा लंबी नहीं रही, लेकिन जितना भी क्रिकेट उन्होंने खेला उनके दामन पर कभी आंच नहीं आई। इस जेंटलमैन क्रिकेटर को उनकी सहजता-सरलता के चलते ही भारतीय क्रिकेट का ‘अजातशत्रु’ कहा जाता है। चार दशक के क्रिकेट से जुड़ाव के जीवन में उन्होंने सिर्फ मित्र ही बनाये। निस्संदेह, उन्हें रिश्तों को संजोना बखूबी आता है। वे नब्बे के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के सर्वप्रिय सदस्य रहे। कपिल देव के नेतृत्व वाली टीम में बिन्नी और मदनलाल की जोड़ी प्रतिद्वंद्वी टीम पर करीब एक दशक तक भारी पड़ती रही। क्रिकेट प्रेमियों को हेडिंग्ले में 1986 का वह टेस्ट मैच याद है जब पिच पर इंग्लैंड की टीम को छकाकर बिन्नी ने सात विकेट झटके थे। वे संदीप पाटिल की अध्यक्षता वाली सीनियर टीम की चयन समिति के सदस्य रह चुके हैं। बिन्नी 2012 में राष्ट्रीय चयनकर्ता बने। लेकिन जब लोढ़ा समिति ने हितों के टकराव का मुद्दा उठाया तो उन्होंने अपना पद छोड़ दिया। वजह थी बेटा स्टुअर्ट बिन्नी, जो राष्ट्रीय स्तर का हरफनमौला खिलाड़ी है। इस शख्स की नैतिक मूल्यों के प्रति ईमानदारी देखिये कि जब भी चयन समिति में स्टुअर्ट के चयन की बात आती तो रोजर बिन्नी मीटिंग रूम को छोड़ देते थे। रोजर बिन्नी को हाल ही में बीसीसीआई की वार्षिक साधारण सभा में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
रोजर बिन्नी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के 36वें अध्यक्ष बने हैं। साल 2019 से सौरभ गांगुली इस पद की जिम्मेदारी निभा रहे थे। कभी गुंडप्पा विश्वनाथ, इरापल्ली प्रसन्ना, सैयद किरमानी, बृजेश पटेल जैसी सितारों से सजी कर्नाटक की क्रिकेट टीम के साथ रोजर बिन्नी खेला करते थे। विश्वनाथ के साथ उनकी खासी अंतरंगता रही है। वैसे क्रिकेट की दुनिया में किसी से उनका कभी मतभेद नहीं रहा। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि मेहनत व ईमानदारी के चलते वे बीसीसीआई के बेहतर खिलाड़ी प्रशासक साबित होंगे।
निस्संदेह, रोजर बिन्नी की पहचान 1983 के विश्वकप में भारत की जीत के नायकों के तौर पर होती रही है। कपिल देव के नेतृत्व में हासिल इस करिश्माई सफलता में बिन्नी का भी बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने आठ मैचों में सबसे ज्यादा 18 विकेट झटके थे। उनका बल्ले के जरिये दिया गया वह योगदान भी याद किया जाता है जब चेम्सफोर्ड में विश्वकप के फाइनल तक जाने के लिये एक जरूरी मैच में उन्होंने आस्ट्रेलिया के खिलाफ मूल्यवान रन भी बनाये थे। इस निर्णायक मैच में मदनलाल व रोजर बिन्नी ने आस्ट्रेलिया को 129 में समेटकर भारत को बड़ी जीत दिलायी थी। तभी भारत फाइनल में पहुंचकर करिश्मा कर सका था।
दरअसल, बिन्नी भारतीय क्रिकेट के ऐसे दौर में खेल रहे थे जब तेज गेंदबाजों का उपयोग कम ही होता था। तेज गेंदबाजों का उपयोग नई गेंद की चमक कम करने के लिये किया जाता था। जब रोजर बिन्नी ने 1979 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट जीवन की शुरुआत की थी तो भारतीय टीम में स्पिनरों का बोलबाला था। भारतीय पिचें भी स्पिन के अनुकूल थीं। यह ठीक है कि बिन्नी की गेंदबाजी में विदेशी तेज गेंदबाजों के मुकाबले स्पीड कम थी, मगर वे बखूबी स्विंग करके विपक्षी टीम के खिलाड़ियों को परेशान करते थे। लेकिन इसके बावजूद उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का लंबा अवसर नहीं मिला। वे केवल 27 टेस्ट तथा 72 एकदिवसीय मैच ही खेल पाये। कभी कर्नाटक के सलामी बल्लेबाज रहे रोजर बिन्नी ने भारतीय टीम में मध्यक्रम के बिखरने के बाद कई बार बेहतरीन पारी खेलकर संकटमोचक का काम किया। यही वजह है कि आज भी उनका क्रिकेट स्टारडम नामचीन खिलाड़ियों से कम नहीं है।
खास बात यह कि रोजर बिन्नी भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने वाले पहले एंग्लो इंडियन थे। दरअसल, बिन्नी स्कॉटिश मूल के भारतीय हैं। वैसे बिन्नी जन्मजात खिलाड़ी रहे। छात्र जीवन में कई खेल खेले, और हॉकी व फुटबॉल में भी हाथ आजमाया। इसके अलावा वे छात्र जीवन में उम्दा एथलीट भी थे। इतना ही नहीं जेवलियन थ्रो में उन्होंने राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया था। लेकिन उन्होंने दिल से जुड़े क्रिकेट में ही भविष्य संवारने का मन बनाया।
इस तरह एक हरफनमौला क्रिकेटर की पारी के बाद भी रोजर बिन्नी किसी न किसी रूप में क्रिकेट के विभिन्न आयामों से जुड़े रहे। सक्रिय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वे इस खेल को बढ़ावा देने के तमाम प्रयासों से जुड़े रहे। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चयनकर्ता बनने के अलावा वे कोच की भूमिका में भी रहे। वे वर्ष 2000 में अंडर-19 क्रिकेट टीम के कोच थे। उस टीम के कोच जिसने भारत की झोली में पहली बार विश्वकप डाला। उनकी कोच की भूमिका वाली टीम में कई ऐसे खिलाड़ी तराशे गये, जिन्होंने कालांतर भारतीय सीनियर टीम में देश को वैश्विक ख्याति दिलायी।
निस्संदेह, एक बेहतरीन इंसान तथा उम्दा क्रिक्रेटर रहे जेंटलमैन क्रिकेटर रोजर बिन्नी से उम्मीद है कि वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में पारदर्शिता को बढ़ावा देकर ऐसा माहौल विकसित करेंगे, जिसमें भारतीय क्रिकेट की पताका पूरी दुनिया में लहराये।
श्रेय: स्रोत लिंक
इस बारे में चर्चा post