चित्रकूट, अमृत विचार। हर साल दीपावली के मौके पर लोगों का ध्यान विलुप्त होती कुम्हारी कला पर जाता है और इसके बाद सब इस हुनर और हुनरमंदों को भूल जाते हैं। कुम्हारों का पैतृक व्यवसाय धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर है तो इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी व्यवसाय और कला को लेकर उपेक्षा है।
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गरीबी की वजह से युवा पेट पालने के लिए मजदूरी कर रहे हैं। सरकारें कलाओं को प्रोत्साहन की बात तो कहती हैं पर जमीन पर नजर कुछ आता नहीं। माटी के कलाकार अब इस कला को छोड़ते जा रहे हैं। इनकी युवा पीढ़ी तो इस व्यवसाय को लाभ का मानती ही नहीं और दूसरे रोजीरोजगार की ओर रुख कर रही है। सरकार का प्रोत्साहन भी ऊंट के मुंह में जीरा सा है।
ग्राम पंचायत रायपुर के कुम्हारन पुरवा निवासी रामचंद्र प्रजापति बताते हैं कि गांव के तमाम परिवार काली व रेतीली दोमट मिट्टी से घड़ा, करवा, परई, दिवलिया, कुल्हड़, कुढ़वा आदि कड़ी मेहनत करके तैयार करते थे लेकिन मिट्टी न मिलने से अब दिक्कत ह रही है। माटी कला के गांव में दो समूह चल रहे हैं, जिनमें आठ परिवारों को इलेक्ट्रिक चाक दिया गया है। 2018 में माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष व जिले के अधिकारियों ने शिविर लगाकर भरोसा दिया था कि मिट्टी कला को बढ़ावा दिया जाएगा लेकिन तीन वर्ष का समय गुजर गया अभी तक वादे ने मूर्त रूप नहीं पाया।
मजदूरी कर पाल रहे परिवार का पेट
बलिराम, नरेश व सुरेश बताते हैं कि मिट्टी के अभाव में कई लोगों का व्यवसाय ठप हो गया है। अब तो मेहनत मजदूरी करके जीविकोपार्जन कर रहे हैं। संसाधनों के अभाव में हुनर भी विलुप्त होता जा रहा है। पूरा परिवार दीयों और बर्तन बनाने में जुटता है और लागत तक नहीं निकलती।
आधुनिकता ने भी पहुंचाया नुकसान
कुम्हार बताते हैं कि आधुनिक उपकरणों ने भी उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाया। फ्रिज के सर्वसुलभ होने से घड़ों, सुराहियों आदि की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई। सरकार द्वारा प्लास्टिक थर्माकोल की बिक्री पर प्रतिबंध हवा हवाई साबित हो रहा है।
झालरों की वजह से प्रभावित दीयों की बिक्री
शिवप्यारी, बेलिया, संगीता, उमेशिया, किरण, उर्मिला, सोनिया आदि ने बताया कि झालरों आदि के सस्ते होने से शहरों ही नहीं गांवों में भी दीयों की बिक्री प्रभावित हुई है। रायपुर निवासी मुन्ना, लल्लू, मैयादीन, शारदा आदि ने बताया कि कुम्हार पट्टा न होने के कारण चोरी-छिपे किसानों के खेतों, मेड़ों से काली व रेतीली दोमट मिट्टी लाते हैं तभी जाकर मिट्टी के बर्तन बनाते हैं।
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