अरविंद मिश्रा: सोमवार को देश और दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया जा रहा है. 24 अक्टूबर 1945 को 51 संस्थापक देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई. वर्तमान में विश्व के 193 देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं. हर सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का सदस्य है. सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर किसी भी देश को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का सदस्य बनाना जाता है. अपनी स्थापना के समय से संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ओर जहां वैश्विक समस्याओं के समाधान में अहम भूमिका रही है वहीं यूएन की भूमिका पर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं. हालांकि इन सबके बीच संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित 17 सतत विकास लक्ष्य आज विश्व के हर देश और वहां की सरकारों के एजेंडे में हैं.
1. गरीबी मुक्त विश्व
1990 में विश्व के 36 फीसदी लोग अत्यंत गरीबी में जीवन गुजर बसर कर रहे थे. 2015 में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत के स्तर पर आ चुका है. यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक रिसर्च के मुताबिक कोविड काल की परिस्थितियों की वजह से विश्व की 8 प्रतिशत आबादी अत्यंत गरीबी रेखा के दायरे में आ चुकी है. पिछले 90 साल में पहली बार गरीबी की वैश्विक दर बढ़ी है. इसमें वह लोग शामिल हैं जिन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, साफ पानी और आवास की बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.
2. भूखमरी की दर को शून्य करना
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक दुनिया की आबादी का 8.9 प्रतिशत हिस्सा भूखमरी का शिकार है. भूखमरी उन्मुलन के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, यदि उनकी यही गति रही तो 2030 तक दुनिया भूखमरी के दंश से बाहर नहीं निकल पाएगी. बल्कि इस दशक के अंत तक विश्व में भूखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या 840 मिलियन के स्तर को पार कर सकती है. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक 135 मिलियन लोग गंभीर भूखमरी का शिकार हैं. यह स्थिति मानवीय संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक उतार-चढ़ाव की वजह से आई है.
3. बेहतर स्वास्थ्य और कुशलता
4. बेहतर शिक्षा: पिछले कुछ दशकों में शिक्षा का दायरा बढ़ा है. खास तौर पर सकल नामांकन अनुपात में बेटियों की हिस्सेदारी बढ़ी है. लेकिन 2018 तक 260 मिलियन बच्चे स्कूलों से बाहर रहे हैं.
5. जेंडर समानता: लैंगिक समानता सिर्फ एक मूलभूत अधिकार नहीं है बल्कि शांति, समृद्धि और समावेशी विकास की एक आवश्यक शर्त है. पिछले कुछ दशकों में शिक्षा में लड़कियों का अनुपात तेजी से बढ़ा है. बाल विवाह की घटनाओं में भी कमी आई है. लेकिन नीति निर्धारण प्रक्रिया और संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी. भारत के संदर्भ में बात करें तो आज हम भले ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं. लेकिन जेंडर समानता को लेकर लंबा सफर अभी तय करना होगा.
6.स्वच्छ जल और सफाई व्यवस्था: विश्व में आज भी 673 मिलियन लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. भारत ने इस क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व प्रगति की है. मोदी सरकार ने 11.5 करोड़ शौचालय बनाकर स्वच्छता की दिशा में मील का पत्थर हासिल किया है. इसी तरह नल-जल मिशन से लेकर स्वच्छ भारत अभियान ने लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा किया है.
7.स्वच्छ ऊर्जा: सतत विकास का यह लक्ष्य लोगों के जीवन को गुणवत्ता देने के साथ पर्यावरण की समृद्धि के लिए भी अत्यंत आवश्यक है. भारत ने पिछले कुछ वर्षों में स्वच्छ ऊर्जा को अपने एजेंडे में शामिल किया है.
8.सम्मानजनक कार्य और आर्थिक समृद्धि: रोजगार सृजन, सामाजिक सुरक्षा, आजीविका का अधिकार और सामाजिक संवाद सतत विकास के इस लक्ष्य का अहम हिस्सा है.
9.इंडस्ट्री, इनोवेशन एंड इंफ्रास्ट्रक्चर
10.असमानता में कमी लाना
11.टिकाऊ शहर और समुदाय: एक आंकड़े के मुताबिक 2007 से विश्व की आधी आबादी शहरों में निवास कर रही है. 2030 तक लगभग 60 फीसदी लोग शहरों में रहेंगे. जाहिर है ऐसे में हमें शहरों और वहां रहने वाले समुदाय को टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं मुहैया करानी होंगी. शहरों की ग्लोबल जीडीपी में हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है. लेकिन कार्बन उत्सर्जन में भी शहरों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है. इसी तरह संसाधनों के उपयोग में शहर और गांव के बीच अंतर काफी बढ़ता जा रहा है.
12. जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन: जैसे-जैसे पर्यावरणीय संकट गहरा रहा है. इस ओर दुनिया को ध्यान देना होगा. संयुक्त राष्ट्र संघ ने सतत विकास लक्ष्य क्रमांक 12 में इसे शामिल कर दुनिया को इस दिशा में प्रेरित किया है. यहां भारतीय जीवनशैली को अपनाकर जलवायु संकट का समाधान खोजा जा सकता है. नरेन्द्र मोदी ने लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (LiFE)अभियान की घोषणा 2021 में ग्लासगो COP26 के दौरान की थी. इस दौरान प्रधानमंत्री ने वैश्विक नेताओं से पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को अपनाकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया था. हालही में पीएम ने इस अभियान का शुभारंभ कर दुनिया को पर्यावरण को लेकर भारत की प्रतिबद्धता का संदेश दिया है.
13. क्लाइमेट एक्शन- संयुक्त राष्ट्र संघ इस समय सबसे अधिक यदि किसी मुद्दे पर सबसे अधिक आक्रामक है तो वह जलवायु परिवर्तन है. भारत ने इस सतत विकास लक्ष्य की दिशा में काफी अहम प्रगति की है. 2070 तक भारत शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा. पीएम मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन के दौरान पंचामृत का मंत्र देकर इस दिशा में ठोस पहल की है.
14.जलीय जीवन (जलीय पारिस्थित तंत्र):नदी, नाले, तालाब से लेकर समुद्र मानवीय जीवन ही नहीं पूरे पारिस्थितिक तंत्र को मजबूती देते हैं. लेकिन मानवीय गतिविधियों ने इन्हें प्रदूषित करने का काम किया है. ऐसे में सर्वप्रथम हमें जलीय पारिस्थित तंत्र को बचाना होगा.
15.भूमि की सेहत-जमीन की सेहत ठीक रखने के लिए हमें वनीकरण को बढ़ावा देना होगा. खेतों में डाले जा रहे बेतहाशा उर्वरकों के इस्तेमाल पर रोक लगानी होगी. जैविक उर्वरक एक अहम विकल्प हो सकते हैं. 2019 में आई ग्लोबल असेसमेंट रिपोर्ट ऑन बायोडावर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विस के मुताबिक लगभग 10 लाख पादप व जीव प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं. इसकी वजह धरती में बढ़ते जहरीले रसायन हैं.
16- शांति, न्याय और मजबूत संस्थान: आतंकवाद, नस्लवाद से मुक्ति के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं को न सिर्फ मजबूत करना होगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संधियों का क्रियान्वय भी प्रभावी बनाना होगा. जाहिर है इसके लिए मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की जरुरत होगी.
17. सतत विकास लक्ष्यों के लिए वैश्विक साझेदारी: संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सतत विकास लक्ष्यों के प्राप्ति के लिए वैश्विक स्तर पर आपसी साझेदारी की जरुरत होगी. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के शब्दों में अब दौर आर्थिक वैश्विकरण का नहीं है. अब दुनिया को मानव केंद्रित वैश्वीकरण की ओर कदम बढ़ाना होगा.
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