झारखंड में ऐसा लगता है, जैसे आम लोगों से पहले राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को स्वयं ही इलाज की जरूरत है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के बावजूद सरकारी अस्पताल की लापरवाही से एक 11 वर्षीय नाबालिग आदिवासी बच्चे की मौत हो गई.
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झारखंड के सरायकेला जिले के राजनगर की घटना ने पूरे स्वास्थ्य विभाग और राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है. झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और परिवहन मंत्री चंपई सोरेन ने स्वास्थ्य विभाग को बीमार बच्चे सलखु सोरेन के समुचित इलाज का निर्देश दिया था. बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल की लापरवाही की भेंट चढ़ गया सलखु सोरेन.
दरअसल, मामला सरायकेला जिले के राजनगर ब्लॉक का है. राजनगर ब्लॉक के रहने वाले आरसु सोरेन के 11 वर्षीय बेटे सलखु सोरेन की 10 दिन पहले शौच क्रिया बंद होने से पेट में दर्द होने लगा था. उसका पूरा पेट फूल गया था. परिवार इतना निर्धन है कि उनके पास इलाज के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं थी. परिवार के पास आयुष्मान कार्ड मौजूद था, लेकिन प्राइवेट नर्सिंग होम ने आयुष्मान योजना के तहत इलाज करने से हाथ खड़ा कर दिया.
राजनगर सीएचसी में भी किया गया था इलाज
थक हार कर पीड़ित परिवार 21 अक्टूबर को अपने बच्चे सलखु सोरेन की गंभीर हालत को देखते हुए राजनगर सीएचसी ले गया, लेकिन वहां से डॉक्टरों ने उसे तत्काल एमजीएम अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी. पैसे के अभाव में विवश होकर परिवार ने एक एनजीओ से संपर्क साधा. एनजीओ और कुछ स्थानीय समाज सेवियों ने इस गंभीर मामले की जानकारी ट्वीट कर परिवहन मंत्री चंपई सोरेन को दी. मंत्री ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सरायकेला डीसी और सिविल सर्जन को निर्देश दिया कि सलखु सोरेन का समुचित इलाज करवाया जाए. बावजूद इसके सरकारी व्यवस्था की भेंट चढ़ गया सलखु सोरेन.
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने बच्चे के इलाज के दिए थे निर्देश
सरकारी प्रक्रिया में देर होने और बच्चे की हालत बिगड़ता देख स्थानीय लोगों ने चंदा जुटाकर बच्चे को जमशेदपुर के सदर अस्पताल पहुंचाया. इसके बाद मामले की जानकारी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को हुई तो उन्होंने भी निर्देश दिया कि बच्चे का पूरा इलाज हो. इसकी व्यवस्था की जाए. स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के बाद सलखु सोरेन को सदर अस्पताल जमशेदपुर से एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया. बच्चे की बिगड़ती हालत को देखते हुए एमजीएम अस्पताल के भी डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर.
मंत्री चंपई सोरेन के कार्यलय से मिली थी एंबुलेंस
इसके बाद कुछ समाजसेवियों की मदद से मंत्री चंपई सोरेन के कार्यालय से परिजनों को एंबुलेंस उपलब्ध हुई, जिससे रिम्स अस्पताल पहुंचाया गया. इसके बाद 22 अक्टूबर की शाम राजधानी रांची के रिम्स अस्पताल में सलखु सोरेन को लेबर रूम में डॉक्टर रंजन की निगरानी में भर्ती कराया गया. रिम्स अस्पताल की सरकारी प्रक्रिया की जटिलता कहें या स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था. गरीब परिवार को अल्ट्रासाउंड से लेकर ब्लड टेस्ट तक बाहर से कराने की सलाह दे दी गई.
टेस्ट के लिए इधर-उधर दौड़ाता रहा रिम्स हॉस्पिटल
रिम्स अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि जल्द ऑपरेशन कराने के लिए बाहर से सभी टेस्ट करा लें, क्योंकि अस्पताल की रिपोर्ट में काफी समय लगेगा. सलखु सोरेन के परिजनों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह बाहर से प्राइवेट टेस्ट करवा सकें. उन्हें सरकारी अस्पताल के भरोसे इंतजार करना पड़ा. अपने की आंखों के सामने अपने 11 वर्षीय बच्चे को तड़प-तड़प कर मरते हुए इस गरीब परिवार ने देखा.
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