गोरखपुर, जागरण संवाददाता। सत्तर के दशक में आइसक्रीम का व्यवसाय। ख्याल आते ही सफलता पर संदेह का ग्रहण लग जाता है। लेकिन शहर के मुरारी लाल अग्रवाल का समृद्ध व्यावसायिक इतिहास इस संदेह को निराधार साबित करता है। उन्होंने 1964 में ‘अग्रवाल आइसक्रीम’ के नाम से तब व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थापित किया जब आइसक्रीम केवल उच्च वर्ग की डिश हुआ करती थी और उन दिनों इस वर्ग की संख्या शहर में गिनती में थी। तब तो आज की तरह ठंड के मौसम में आइसक्रीम खाने का चलन भी नहीं था। ऐसे में मुरारी लाल का इस प्रतिष्ठान को खोलने का फैसला चुनौती भरा था।
शुरुआती दौर में करना पड़ा संघर्ष
शुरुआती दौर में उन्हें इसे लेकर संघर्ष भी करना पड़ा लेकिन हौसले भरी जिद रंग लाई और उनका प्रतिष्ठान आइसक्रीम का ब्रांड बन गया। मुरारी लाल की तबीयत खराब हुई तो उनके बेटे मोती लाल और गिरधारी लाल ने प्रतिष्ठान का नाम कायम रखने की जिम्मेदारी पूरी क्षमता से संभाल ली। अब तो तीसरी पीढ़ी में कुलदीप और आशीष भी उनका बखूबी साथ निभा रहे हैं। सीजनल व्यवसाय से ब्रांड बनने की दिक्कतों के सवाल पर गिरधारी बताते हैं कि पिता जी ने इसे लेकर खासा संघर्ष किया लेकिन हार नहीं मानी।
दाल के पकौड़े से करते थे आइसक्रीम की भरपाई
दिवाली से होली तक के ठंड के मौसम में काफी और खास किस्म के दाल के पकौड़े से आइसक्रीम की भरपाई की जाती थी। ऐसे में आइसक्रीम के साथ-साथ काफी और पकौड़े प्रतिष्ठान की साख से कब जुड़ गए, पता ही नहीं चला। अब जबकि नई पीढ़ी के शौक के चलते ठंड में भी आइसक्रीम की डिमांड बनी हुई है, ऐसे में जाड़े के सीजन में बाजार में बने रहने का संकट जाता रहा और अब तो पूरे वर्ष आइसक्रीम की डिमांड बनी रहती है। बदले परिदृश्य में शहर में तमाम आइसक्रीम के प्रतिष्ठानों के स्थापित होने से पड़ने वाले प्रभाव के जवाब में गिरधारी दो-टूक कहते हैं कि उनके ग्राहक सिर्फ उन्हें ही ढूढते हैं।
Edited By: Pragati Chand
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