आज हालत यह हो चुकी है कि एक ओर व्यक्ति, उसकी निजी जानकारियां और सार्वजनिक गतिविधियां साइबर तंत्र के तहत ब्योरों और आंकड़ों में दर्ज होने लगी है, तो दूसरी ओर इन आंकड़ों तक कुछ अवांछित समूहों या लोगों की पहुंच हो जाती है और वे उसका इस्तेमाल आपराधिक तौर पर भी अपने मुनाफे के लिए करने लगते हैं। तकनीक पर निर्भरता के समांतर इसके बेजा इस्तेमाल के मामले भी तेजी से बढ़ने लगे हैं।
भारत में अभी आंकड़ों की सुरक्षा की दीवार बहुत मजबूत नहीं है, इसलिए यहां साइबर खतरे का दायरा बड़ा होता जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरे विकसित देश ऐसे जोखिम से पूरी तरह सुरक्षित हैं। बीते हफ्ते शुक्रवार को इनर्जी आस्ट्रेलिया में हुई आंकड़ों की चोरी उन घटनाओं की महज एक कड़ी है, जिनमें सिर्फ बीते एक महीने के दौरान आस्ट्रेलिया के सात प्रमुख व्यवसाय आंकड़ों की सेंधमारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या ने दुनिया भर में यह चिंता पैदा की है कि आधुनिक होती तकनीकी की दुनिया में डेटा की चोरी क्या एक बड़ी चुनौती बनने जा रही है!
दरअसल, आंकड़ों में सेंधमारी की लगातार बढ़ती घटनाएं दुनिया भर में गैरकानूनी तौर पर चल रहे समूहों या कंपनियों के जरिए अंजाम दी जा रही हैं जो लोगों का डेटा हासिल करके उनका सौदा करती हैं। पहले वे अपनी जरूरत के लक्षित तबकों के आंकड़ों में सेंध लगाती हैं, फिर उन्हें अन्य साइबर अपराधियों को बेच देती हैं। हालांकि इस तरह आंकड़ों में सेंधमारी करने वाले लोग आज विस्तृत साइबर अपराध के बड़े संजाल का एक छोटा-सा हिस्सा भर हैं।
मुश्किल यह है कि अगर दुनिया भर में इस अपराध से निपटने के लिए कोई ज्यादा सक्षम और उपयोगी तरीका और तंत्र विकसित नहीं किया जाता है तो यह चुनौती किसी एक देश या वहां के नागरिकों के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए एक बड़ा खतरा बन जाएगी। यह छिपा नहीं है कि पिछले कुछ समय से आनलाइन अपराध खासतौर पर आंकड़ों की चोरी के मामले में तेजी से अपने पांव फैलाता जा रहा है और इसके सहारे बड़े साइबर हमलों को अंजाम देने की कोशिश की जा रही है।
गौरतलब है कि साइबर अपराधों की दुनिया में आंकड़ों की चोरी के जरिए मुख्य रूप से बड़ी फिरौती हासिल करने की कोशिश की जाती है। तकनीकी दक्षता के साथ किसी व्यक्ति या फिर कंपनी के उपकरण या उसकी कंप्यूटर और इंटरनेट व्यवस्था को पूरी तरह ठप कर दिया जाता है और इसके बदले फिरौती वसूली जाती है। यह साइबर अपराधों की दुनिया में ज्यादा परिष्कृत तरीके के फैलता जाल है।
ज्यादातर आम लोग तकनीक का इस्तेमाल तो करते हैं, मगर आमतौर पर उनके पास इसके सुरक्षित उपयोग का प्रशिक्षण नहीं होता है। तकनीकी के विकास की रफ्तार इतनी तेज है कि जब एक यंत्र या उसके स्वरूप के साथ कोई व्यक्ति अभ्यस्त होने लगता है, तब तक कोई नई या बदली हुई तकनीक आ जाती है। जरूरत इस बात की है कि आधुनिक तकनीकी के फैलते दायरे को अगर एक व्यवस्था के तौर पर स्वीकृत किया गया है तो हर स्तर पर इसके उपयोगकर्ताओं और आम लोगों के आंकड़ों या डोटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकारें जरूरी कदम उठाएं। वरना यह आम लोगों के साथ खुद सरकारों के लिए भी एक बड़ा जोखिम पैदा करेगा।
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