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श्रीनगर/जम्मू। एक ही अपराध पर दोहरे दंड को कानूनी प्रावधान का उल्लंघन करार देते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ जवान को बर्खास्त करने का आदेश खारिज कर दिया। 13 वर्ष पूर्व इस जवान को 28 दिन के क्वार्टर गार्ड की सजा दी गई थी, जिसके बाद सजा को बढ़ाते हुए उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया। कोर्ट ने कहा, एक ही अपराध की दो सजाएं नहीं हो सकतीं। यह आश्चर्यजनक और दुर्लभ में दुर्लभतम मामला है। बर्खास्त जवान को बहाल करते हुए उसके सभी सेवा लाभ दिए जाएं।
बर्खास्त किए गए सीआरपीएफ जवान मोहम्मद अमीन वानी की याचिका पर न्यायाधीश वसीम सादिक नरगल ने कहा, सीआरपीएफ के डीआईजी का यह आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता। लिहाजा 15 जून 2009 को जारी आदेश रद्द किया जाता है। याची के अनुसार उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में उसकी चुनाव ड्यूटी लगी थी। एक घटना के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया गया, जबकि उसका इस घटना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। उसे इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए वेतन से वंचित रखते हुए 5 जून 2008 से 2 जुलाई तक 28 दिन के क्वार्टर गार्ड की सजा दी गई। निचले स्तर का कार्मिक होने की वजह से उसने इस फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की। क्वार्टर गार्ड की सजा पूरी होने के बाद उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया। कोर्ट ने पाया कि तत्कालीन डीआईजी ने बर्खास्तगी के लिए कोई जांच अथवा रिपोर्ट का हवाला नहीं दिया। कोर्ट में सरकार की ओर से भी माना गया है कि बर्खास्त करने के फैसले का कोई आधार नहीं पाया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सीआरपीएफ के नियम 29 (डी) का इस्तेमाल अनुचित था।
श्रीनगर/जम्मू। एक ही अपराध पर दोहरे दंड को कानूनी प्रावधान का उल्लंघन करार देते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ जवान को बर्खास्त करने का आदेश खारिज कर दिया। 13 वर्ष पूर्व इस जवान को 28 दिन के क्वार्टर गार्ड की सजा दी गई थी, जिसके बाद सजा को बढ़ाते हुए उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया। कोर्ट ने कहा, एक ही अपराध की दो सजाएं नहीं हो सकतीं। यह आश्चर्यजनक और दुर्लभ में दुर्लभतम मामला है। बर्खास्त जवान को बहाल करते हुए उसके सभी सेवा लाभ दिए जाएं।
बर्खास्त किए गए सीआरपीएफ जवान मोहम्मद अमीन वानी की याचिका पर न्यायाधीश वसीम सादिक नरगल ने कहा, सीआरपीएफ के डीआईजी का यह आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता। लिहाजा 15 जून 2009 को जारी आदेश रद्द किया जाता है। याची के अनुसार उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में उसकी चुनाव ड्यूटी लगी थी। एक घटना के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया गया, जबकि उसका इस घटना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। उसे इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए वेतन से वंचित रखते हुए 5 जून 2008 से 2 जुलाई तक 28 दिन के क्वार्टर गार्ड की सजा दी गई। निचले स्तर का कार्मिक होने की वजह से उसने इस फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की। क्वार्टर गार्ड की सजा पूरी होने के बाद उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया। कोर्ट ने पाया कि तत्कालीन डीआईजी ने बर्खास्तगी के लिए कोई जांच अथवा रिपोर्ट का हवाला नहीं दिया। कोर्ट में सरकार की ओर से भी माना गया है कि बर्खास्त करने के फैसले का कोई आधार नहीं पाया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सीआरपीएफ के नियम 29 (डी) का इस्तेमाल अनुचित था।
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