Singrauli News: राम का नाम आते ही रामायण का ध्यान आ जाता है. मन में या तो रामभक्ति हिलोरें लेने लगती है या फिर रामकथा की किताबों में लिखे गए प्रसंगों पर सवालों के पहाड़ खड़े हो जाते हैं. राम ऐसे थे, रावण वैसा था. सब कैकेयी का किया-कराया है. शूर्पनखा कैसी थी? सोने का मृग कैसे हो सकता है? कैसे राम ने पंचवटी में रह कर सेना एकत्र की? कैसे कुंभकर्ण इतना लंबा-चौड़ा हो सकता है? कैसे रामजी ने उसे हराया? या फिर हनुमान जी इतने बलवान कैसे थे? विभीषण ने ठीक किया या गलत किया? कोई पुरानी किताबों में लिखी सारी बातों को बस मान लेने को कहता है, तो बहुत से लोग अपनी मति-बुद्धि के अनुरूप प्रसंगों पर प्रकाश डालते हैं.
एनसीएल के अधिकारी ने क्यों की बाल रामायण की रचना?
कविताओं, लेखन की दुनिया में बनाने वाले पाणी पंकज पाण्डेय ने रामकथा से जुड़े मिथकों, संकेतों और सवालों को एक नए तरीके से उठाया है. उनकी किताब “बाल रामायण” में कई रूढ़ विषयों को अलग तरीके से छूने की कोशिश की गई है. पाणी पंकज पाण्डेय ने रामायण के सातों कांड को बहुत ही सरल भाषा हिंदी में लिखा है. बाल रामायण की रचना के पीछे का उद्देश्य पंकज ने साझा करते हुये बताया कि आधुनिक दौर में लोग भगवान श्रीराम और श्रीरामचरितमानस के आदर्शों से दूर होते जा रहे हैं. इस दूरी के कारण समाज में अब वेस्टर्न कल्चर हावी होते जा रहा है. संस्कृत में वाल्मीकि रामायण और अवधि में श्रीरामचरितमानस की लिखी भाषा को लोग आसानी से समझ नहीं पाते हैं. इसलिए सरल हिंदी भाषा में इस ग्रंथ की रचना की गई है ताकि लोग पढ़ें और समझें.
मौजूदा दौर में शारीरिक, आध्यात्मिक, नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक, राजनीतिक हर स्तर पर चुनौतियां हैं. भौतिक सुख-सुविधाओं की बढ़ती मांग हमें कुछ सोचने का मौका नहीं दे रही है. इसलिए हम मानसिक और आध्यात्मिक तृप्ति नहीं पा रहे हैं. झूठ, रिश्वतखोरी, बेईमानी जीवन पद्धति में अंग की तरह घुल-मिल गई है. स्वार्थपरता और स्वेच्छाचारिता का बोलबाला है. संयुक्त परिवार की व्यवस्था का मूल्य खत्म हो रहा है. चारों ओर असुरक्षा का भाव जन्म ले रहा है. तेज रफ्तार और निरंतर बदलती जीवन शैली में दम तोड़ते प्राचीन मूल्यों को आज के सन्दर्भ में फिर से स्थापित करने की जरूरत महसूस हो रही है. प्राचीन मान्यताओं और परंपराओं से बंधकर जीवन बिताना मुश्किल है और नई मान्यताओं का निर्माण कोई साधारण काम नहीं है.
इसलिए हमें विचार करना होगा कि प्राचीन परम्पराओं की विशेषताओं को प्रासंगिक बनाकर जीवन प्रणाली में स्वीकार कर लेना या उनके अनुरूप कार्य करना ही एक मात्र सही उपाय है. उनका दावा है कि एक मात्र बाल रामायण की कथा हमें सही मार्ग पर ले जा सकती है. पाणी पंकज पाण्डेय नार्दन कोल फील्ड्स लिमिटेड (Northern Coalfields Limited) के खड़िया परियोजना में प्रबंधक कार्मिक पद पर कार्यरत हैं. सिंगरौली (Singrauli) जिले के जयनगर जुवाड़ी गांव निवासी 34 वर्षीय पाणी पंकज ने वर्ष 2016 में झरते मोती काव्य की रचना की. बचपन से ही पाणी पंकज को कहानी, कविता लेखन का शौक रहा है.
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2 वर्ष 3 माह और 5 दिन की मेहनत का सामने है नतीजा
पाणी पंकज को बाल रामायण ग्रंथ की रचना करने में 2 वर्ष 3 माह और 5 दिन का समय लग गया. 190 पन्नों की पुस्तक में श्रीराम की जीवन लीला और आदर्शों को समाहित करने का प्रयास किया गया है. खास बात है कि पुस्तक में कठिन लगने वाले शब्दों के अर्थ उसी पेज पर दिए गए हैं. इससे पुरानी हिंदी न समझने वालों को भी समझने में आसानी होगी. राम के चरित्र पर साहित्य, कथाएं और लोकश्रुतियों की भरमार है. फिर भी बाल रामायण में कथा, भाषा और संदेश कुछ ऐसा है कि पुस्तक का रस लिए बिना नहीं रहा जा सकता. भोपाल के मंजुल प्रकाशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक का मूल्य 250 रुपये है. आवरण और छपाई को देखकर हो सकता है कीमत ठीक हो, लेकिन इस तरह की पुस्तक अगर और कम दाम पर मिले तो ज्यादा अच्छा है. भले ही हार्ड बाइंड की जगह पेपरबैक हो.
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