सीहोरएक घंटा पहले
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नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में प्रतिदिन सुबह श्रीजी का अभिषेक, शांति धारा, पूजा, अर्चना एवं धार्मिक अनुष्ठान किए जा रहे हैं। यह अनुष्ठान मुनि संस्कार सागर महाराज के सानिध्य, ब्रह्मचारी शोभित भैय्या के निर्देशन में किए जा रहे हैं।
इस दौरान मुनि संस्कार सागर महाराज ने कहा कि अहिंसा परम धर्म है अर्थात दया संसार के सभी धर्मों की मूल शिक्षा है और इसके विपरीत प्राणियों का वध करना अधर्म हैं। उसी प्रकार दूसरे पर आई हुई आपत्ति को भी अपनी आपत्ति समान जानकर उसकी मदद करना ही दया धर्म है। वहीं दुख का अनुभव करके आचरण में लाना दयालुता है ।
जीवों की रक्षा का भाव उनके मन में
मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि मेघदूत का पूर्वभव का जीव हाथी, जीव को बचाने की भावना से तीन दिन तक एक पैर को ऊंचा उठाकर खड़ा रहा। उन्होंने कहा कि भगवान नेमिनाथ बिना शादी किए वापस क्यों लौटें थे, क्योंकि जीवों की रक्षा का भाव उनके मन में था। अहिंसा धर्म के पालन करने वालो के सानिध्य में रहने पर भी जीव दया धर्म का पालन करते हुए हिंसक प्रवृति छोड़ कर अहिंसा धर्म का पालन करते हैं। जैसे जयपुर नरेश दरबार में अहिंसा धर्म के अनुयायी अमरचंद नामक दीवान थे।
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