Dumka : राजकीय पुस्तकालय में सोमवार को रेव. पीओ बोर्डिंग मेमोरियल संथाली लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया. इस आयोजन में देश विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले संथाली समाज और साहित्य से जुड़े लोगों ने भाग लिया. डीसी रवि शंकर शुक्ला ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का और डीडीसी कर्ण सत्यार्थी ने दुमका विधायक बसंत सोरेन का संदेश पढ़ कर सुनाया.
पांच ऑफलाइन और दो ऑनलाइन सत्रों में आयोजित इस फेस्टिवल का प्रथम सत्र ‘रेव. पीर्ओ बोडिंग की सेवा का जीवन’ पर केंद्रित था. इस सत्र में संथाली लेखक मारियनस टुडू ने कहा कि पीओ बोर्डिंग विभिन्न भाषा के जानकार थे. लेकिन उन्हें संथाली भाषा से अटूट प्यार था. उन्होंने लगभग 44 वर्ष भारत में सेवा की और मुख्य रूप से संथाल परगना के दुमका शहर से कार्य किया. संथाली व्याकरण सहित उनकी कई रचनायें आज भी मौजूद हैं, जो संथाली भाषा के क्षेत्र में किया गया अद्भुत कार्य है.
डॉ.डबलू सोरेन ने कहा कि पीओ बोर्डिंग का संथाली भाषा के क्षेत्र में किया गया योगदान बहुमूल्य है. रमेश चंद्र किस्कू ने कहा कि पीओ बोर्डिंग ने ऐसी कई पुस्तकों की रचनाएं की है जिससे संथाली भाषा को बेहतर ढंग से लिखा, पढ़ा व बोला जा सकता है. उनके द्वारा लिखी संथाली डिक्शनरी संथाली भाषा को समझने में काफी महत्वपूर्ण है. प्रमोदिनी हांसदा ने कहा कि संथाल हूल के कारण पीओ बोर्डिंग संथाल परगना आए और यहां रहकर संथाली समाज और संथाली भाषा के लिए उन्होंने कई कार्य किए. संथाली भाषा में बाइबल का उन्होंने अनुवाद किया है. संथाली लिटरेचर फेस्टिवल का तीसरा सत्र ऑनलाइन आयोजित किया गया. इस सत्र का विषय ‘संथाल स्वदेश ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत’ था. वक्ता के रूप में बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रषेत श्रृंखल, प्रोफेसर अच्युत चेतन व लंटिती बेसरा ने भाग लिया. प्रोफेसर अच्युत चेतन ने कहा भरतीय समाज मे आदिवासी समाज की अपनी पहचान है. भारत के सभी चर्चाओं में आदिवासी शब्द का महत्व बहुत पहले से रहा है.
शोषण व अत्याचार के खिलाफ हुआ था संथाल हूल – डा धुनी सोरेन
दूसरा सत्र ‘संथाल हूल-कारण, विवरण और परिणाम’ पर केंद्रित था. इस सत्र में डॉ.धुनी सोरेन ने कहा कि संथाल हूल कोई विद्रोह या आंदोलन नहीं था. बल्कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध था. यह युद्ध शोषण और अत्याचार के खिलाफ था. उन्होंने कहा कि आज संथाल देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं. लेकिन इससे आदिवासी समाज को कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा है. आदिवासी समाज को शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. जॉय टुडू ने कहा कि सूदखोर महाजन के शोषण का ही परिणाम संथाल हूल था. उन्होंने कहा कि संथाल हूल की जानकारी अभी भी कई लोगों को नहीं है. इसके बारे में लोगों को बताना होगा. उन्होंने कहा कि आदिवासी जीवन शैली पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण के साथ जीवन यापन करने की शिक्षा देती है.
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