Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Nov, 2022 08:15 AM
नागपुर से 350 कि.मी. दूर बुलढाना के प्रणीता नदी के तट पर विराजते हैं महकर के शारंगधर बाला जी। शारंगधर बाला जी में पूजा और अभिषेक का महत्व बढ़ जाता है
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Shri Balaji Temple Mehkar: नागपुर से 350 कि.मी. दूर बुलढाना के प्रणीता नदी के तट पर विराजते हैं महकर के शारंगधर बाला जी। शारंगधर बाला जी में पूजा और अभिषेक का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि यहां सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, पालनहार विष्णु और संहारक भगवान शिव विराजते हैं। एक साथ तीन देवताओं के दर्शन ही इस मंदिर को विशेष और अद्भुत बना देते हैं। बाला जी की 12 फुट की प्रतिमा इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है, जो हजारों साल पुरानी है। कहते हैं कि पूरी दुनिया में बाला जी की इससे बड़ी मूर्ति और कहीं नहीं है। इस मंदिर में आकर भक्तों के मन को शांति मिलती है। साथ ही त्रिदेव से मांगी हर मन्नत पूरी होने का विश्वास भी भक्तों को यहां खींच लाता है।
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पुराणों में है मंदिर का वर्णन
यह मंदिर जितना सुंदर है उतना ही प्राचीन भी। इस मंदिर का उल्लेख पद्म पुराण, मत्स्य पुराण के साथ-साथ भागवत गीता में भी किया गया है। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव जी से माता पार्वती ने पूछा कि धरती पर ऐसा कौन सा मंदिर है जहां के दर्शन करने से भक्तों को कष्टों से मुक्ति और मन को शांति मिल सकती है। तब शिवजी ने पार्वती को इसी बाला जी के दर्शन का महत्व बताया। पुराणों में बताए गए इस महत्व के चलते सावन के महीने में यहां भक्त दूर-दूर से पूजा और अभिषेक के लिए आते हैं।
भक्त यहां आकर गीता और विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करते हैं। इस मंदिर में सिर्फ त्रिदेव के ही एक साथ दर्शन नहीं होते, बल्कि इस भव्य मूर्ति में विष्णु के दशावतार के दर्शन भी होते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि यहां आकर देवलोक के दर्शन भी हो जाते हैं।
यह दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर है जहां भगवान विष्णु अपनी पत्नी महालक्ष्मी के साथ विराजते हैं। महकर के शारंगधर मंदिर में महालक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी हैं। इस मंदिर में महालक्ष्मी अपनी दृष्टि भगवान के पैरों पर गड़ाएं हुए हैं। यानी जो भगवान की शरण में आता है लक्ष्मी स्वयं उससे प्रसन्न हो जाती हैं और उस पर कृपा बरसाती है।
पुराणों में बाला जी के इस मंदिर की कहानी का भी उल्लेख है। कहते हैं प्राणीता नदी के इसी तट पर एक बलवान राक्षस रहता था, जो शिव की तपस्या में लीन ऋषि मुनियों को परेशान किया करता था और तपस्या में विघ्न और बाधा डाला करता था। इससे परेशान होकर ऋषियों ने शिवजी को प्रसन्न कर उसने मुक्ति का मार्ग पूछा तो शिवजी कहा इसके संहार का शस्त्र विष्णु जी के पास है जिसे शारंग कहते हैं।
तब ऋषियों ने तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने शारंग रूपी धनुष से राक्षस का वध किया। मंदिर में दिव्य मूर्ति के दर्शन के साथ ठीक मंदिर के सामने विराजे हैं उनके वाहन गरुड़, जिनके दर्शन किए बगैर लौटना शुभ नहीं माना जाता।
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