अजमेर2 घंटे पहले
भगवान विष्णु की मूर्ति, जिसके दुनिया की सबसे प्राचीन मूर्ति होने का दावा है।
- पुष्कर से 9 किलोमीटर दूर कानबाय में है मंदिर, यहां मंत्रों का उच्चारण अश्वमेघ यज्ञ के बराबर
अजमेर जिले के पुष्कर से करीब 9 किमी दूर स्थित सनातन धर्म का उत्पत्ति स्थल कानबाय। यहां है क्षीर सागर मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीनतम मूर्ति। कार्बन डेटिंग से यह मूर्ति 4000 वर्ष पुरानी बताई गई, जबकि मंदिर के महंत का दावा है कि ज्ञात इतिहास के मुताबिक मूर्ति 41070 वर्ष पुरानी है। कानबाय वो स्थान है, जहां सप्तऋषियों, रावण, ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण दाे बार आए थे। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में यहां 7 बार आए थे। वे मथुरा से द्वारिका जाते समय कानबाय ठहरते थे। इसका प्रमाण पदम पुराण और हरिवंश पुराण में मिलता है।
विश्व की सबसे प्राचीन मूर्ति, सवा नौ फिट लंबी…यहां मंत्रों का उच्चारण अश्वमेघ यज्ञ के बराबर
महंत महावीर प्रसाद वैष्णव बताते हैं कि यह मंदिर समुद्र मंथन के बाद ब्रह्म, शंकर, इंद्र व सप्त ऋषियों द्वारा सेवित है। त्रेता युग में सनातन धर्म में मूर्ति पूजा की शुरुआत इसी कानबाय से हुई थी। 1971 में यूएस से आर्कियोलॉजिस्ट की टीम आई थी, मूर्ति की कार्बन डेटिंग (सी-14) की गई, ताे 4000 वर्ष से ज्यादा पुरानी होना सामने आया था। वैष्णव बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि कानबाय वो स्थान हैं, जहां आप एक बार मंत्र पढ़ेंगे ताे 10000 गुणा फलदायी हाेगा और एक अश्वमेघ यज्ञ के बराबर हाेगा।
अजमेर जिले के पुष्कर से करीब 9 किमी दूर स्थित सनातन धर्म का उत्पत्ति स्थल कानबाय, जहां बना है मंदिर।
भगवान विष्णु के हाथ में गदा, चक्र, पदम और शंख, पैर दबा रही माता लक्ष्मी
मूर्ति की लंबाई सवा नौ फीट है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन मुद्रा में हैं। उनके हाथों में गदा, चक्र, पदम और शंख है। एक ही पत्थर की बनी इस विशाल मूर्ति में विष्णुजी शेषनाग पर लेटे हैं, उनके सिर पर शेषनाग के नौ फन छाया करते हुए हैं। माता लक्ष्मीजी पैर दबा रही हैं। कानबाय में सप्तऋषियों, रावण, ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण दाे बार आए थे। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में यहां 7 बार आए थे। वे मथुरा से द्वारिका जाते समय यहीं ठहरते थे।
यह प्रमाण पुराणों में है वर्णित
- हरि वंश पुराण पेज नंबर-939 व 1328 : सतयुग में पृथ्वी पर भगवान विष्णु का प्रथम पदार्पण स्थान। ब्रह्माजी का उत्पत्ति स्थल आैर यज्ञ के समय यहीं निवास किया था। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने पुष्कर यात्रा के समय इसी जगह काे निवास स्थान बनाया था। यहीं जन्मोत्सव का आयोजन भी किया गया। वापस दुर्वासा ऋषि के कहने पर हंस व डिंबक से युद्ध करने आए आैर अग्नि बाण का प्रयोग करके विचक्र राक्षक काे मारा।
- पद्मपुराण पेज नंबर-64, 106 व 122 : सरस्वती नदी पुष्कर से ही महासागर की ओर गई, यहां महायोगी आदिदेव मधुसूदन भगवान विष्णु सदा निवास करते हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने माता सीता और भैया लक्ष्मण के साथ पुष्कर यात्रा के समय यहां निवास किया। श्रीराम वापस राज्यभिषेक के समय सुग्रीव और भरत के साथ पुष्पक विमान से यहां पधारे।
मंदिर में बनी बावड़ी।
उठो देवा, जागो देवा…
देव प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु काे योग निद्रा से जगाने के लिए विष्णु स्तुति स्तवन हुआ। जागरण के बाद विशेष मंत्रों के साथ विष्णुसहस्त्रनाम, पुरुष सूक्त, श्री सूक्त और गोपाल सहस्त्रनाम से स्तुति स्तवन हुआ। महंत महावीर प्रसाद वैष्णव ने बताया कि कानबाय वो स्थान है जहां भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को जन्म दिया था। यहीं दुनिया को तपस्या का अर्थ व महत्व समझाने के लिए एक पैर पर 10000 वर्षों तक तपस्या की थी। यह विष्णु का तपोवन है।
(कंटेन्ट-अतुलसिंह, फोटो-मुकेश परिहार)
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