शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : आप भागीरथी के तट पर बसे पहले नगर को करीब से जानने, वहां की ग्रामीण संस्कृति व जीवन शैली से रूबरू होने और तैंतीस कोटि देवों का वासस्थल माने जाने वाले वरुणावत पर्वत की साहसिक ट्रेकिंग करना चाहते हैं, तो बेफिक्री से किसी भी मौसम में उत्तरकाशी चले आएं। उत्तरकाशी मुख्य बाजार से घसियारी बटिया (रास्ता) के जरिये वरुणावत शिखर और संग्राली गांव तक की तीन किमी ट्रेकिंग बेहद ही रोमांचक एवं ग्रामीण जनजीवन की यादगार अनुभूति कराने वाली है। वरुणावत शिखर पर डिजास्टर मैनेजमेंट का विश्वस्तरीय माडल अपने आप में अद्भुत है। इसे देखने और समझने के लिए विदेशी इंजीनियर भी आते हैं।
शिखर से ऐसा दिखता है नजारा
वरुणावत शिखर से उत्तरकाशी शहर भागीरथी की गोद में सिमटा नजर आता है। वरुणावत की तलहटी में भागीरथी नदी का घुमावदार व घेरदार दृश्य और उत्तर की ओर हिमालय का मनमोहक नजारा सम्मोहन बिखेरते हैं। यहां से मनेरी-भाली जल-विद्युत परियोजना का बैराज व विश्व प्रसिद्ध नेहरू पर्वतारोहण संस्थान सहित उत्तरकाशी की निकटवर्ती पहाड़ियों की सुंदरता को निहार सकते हैं। ट्रेकिंग के दौरान आप वरुणावत पर्वत के शिखर पर स्थित विमलेश्वर महादेव, शिखरेश्वर महादेव व वेद व्यास कुंड का दीदार भी कर सकते हैं। हर वर्ष अप्रैल में होने वाली इस क्षेत्र की पंचकोसी वारुणी यात्रा भी दिव्य अनुभूति कराने वाली है। धार्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से इस यात्रा का खास महत्व है।
घसियारी रास्ते के जरिये वरुणावत की ट्रैकिंग करते स्थानीय पर्यटक।
घुड़सवारी व साइकिलिंग का लें आनंद
ट्रेकिंग के दौरान आप वरुणावत शिखर से लेकर एक किमी दूर संग्राली गांव तक देवदार के घने जंगल के बीच घुड़सवारी का आनंद ले सकते हैं। इसके लिए संग्राली गांव के ग्रामीणों ने दो घोड़ों की व्यवस्था की है। कुछ पर्यटक संग्राली से पाटा होते हुए बग्यालगांव पहुंचते हैं। यह रास्ता गांव और खेतों के बीच से गुजरता है। इसमें पर्यटक ग्रामीण संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं। बग्यालगांव से गोफियारा होते हुए आसानी से पर्यटक उत्तरकाशी पहुंच सकते हैं। वरुणावत शिखर से डेढ़ किमी की दूरी पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल की 35वीं वाहिनी का मुख्यालय भी है। यहां पर्यटक हिमवीरों की वीरता से भी रूबरू हो सकते हैं।
स्थानीय व्यंजनों का लें जायका
संग्राली गांव में पर्यटकों के स्वागत के साथ ही नाश्ते और भोजन की व्यवस्था भी होती है। भोजन में मंडुवे की रोटी, झंगोरे की खीर, लाल भात (चावल), चैंसू, तिल की चटनी आदि पहाड़ी व्यंजन बनेंगे। कई बार स्थानीय महिलाएं व पुरुष लोकनृत्य रांसो व तांदी की भी छटा बिखेरते हैं. इसके लिए पारंपरिक वाद्ययंत्र ढोल, दमाऊ, मसकबीन और रणसिंघा की व्यवस्था संग्राली के ग्रामीण करते हैं। पर्यटकों गांव की सैर, कंडार देवता के दर्शन, पारंपरिक पहाड़ी शैली में बने घरों का दीदार भी कर सकते हैं।
इस तरह किया गया है वरुणावत शिखर पर भूस्खलन का ट्रीटमेंट।
शीतकाल का समय उपयुक्त
वरुणावत की ट्रेकिंग के लिए आप ऋषिकेश से 160 किमी और देहरादून से 140 किमी सड़क मार्ग से उत्तरकाशी पहुंच सकते हैं। उत्तरकाशी शहर में होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। उत्तरकाशी के निकटवर्ती गांव कोटबंगला व बग्यालगांव में होम स्टे भी हैं। वरुणावत की ट्रेकिंग एक दिन में हो जाती है। यहां ट्रेकिंग के लिए वैसे तो हर मौसम अनुकूल है, लेकिन शीतकाल का समय सबसे उपयुक्त है। वरुणावत शिखर से बंदरपूंछ सहित हिमालय की कई चोटियों का दीदार होता है।
घसियारी बटिया
पहाड़ी गांवों के जंगल में महिलाएं हर रोज विकट रास्तों से घास और लकड़ी के लिए जाती हैं। जंगल में घास काटने वाली और घास लेकर आने वाली महिलाओं को घसियारी नाम से संबोधित किया जाता है। वरुणावत शिखर को जोड़ने वाला रास्ता भी घसियारियों की पारंपरिक बटिया है, जो पहाड़ की महिलाओं के साहस एवं जीवटता को भी दर्शाती है।
Edited By: Sanjay Pokhriyal
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