पीछे पड़ीं ग्रामोफोन कंपनियां
– रेकॉर्ड का कंटेंट क्या हो, यह बड़ा सवाल था। गांधीजी ने कहा कि यह उनके जीवन की पहली और आखिरी रेकॉर्डिंग होगी ग्रामोफोन के लिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह किसी राजनीतिक विषय पर नहीं, ईश्वर की अवधारणा पर बोलेंगे। लगभग साढ़े छह मिनट की रेकॉर्डिंग के लिए गांधीजी को कहा गया।
– 17 अक्टूबर, 1931 को कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी के लोग अपनी मशीनें लेकर किंग्सले हॉल पहुंच गए। वहीं के एक कमरे में रेकॉर्डिंग की व्यवस्था की गई थी।
– रेकॉर्डिंग के समय की तस्वीर भी ली गई, जो कि बहुत ही ऐतिहासिक तस्वीर है। कमरे के कोने में रखी एक आलमारी पर रेकॉर्डिंग मशीन रखी गई। गांधी माइक्रोफोन की ऊंचाई तक ठीक से पहुंच पाएं, इसके लिए नीचे एक गोल सी चीज रखी गई और फिर उस पर कुछ कपड़े रखकर ऊंचाई को व्यवस्थित किया गया। गांधीजी को देखकर पढ़ना था रेकॉर्डिंग के लिए, उसके लिए एक लैंप की व्यवस्था भी की गई।
– गांधीजी ने जिस प्रफेशनलिज्म के साथ वह रेकॉर्डिंग की, वहां उपस्थित हर आदमी उससे अभिभूत था। कोलंबिया कंपनी की तो जैसे लॉटरी लग गई। यह महात्मा गांधी की पहली रेकॉर्डेड आवाज थी। गांधी की आवाज में यह पहला रेकॉर्ड दिसंबर 1931 में भारत-सहित पूरी दुनिया में रिलीज होने वाला था।
– रेकॉर्ड का लेबल भारत के तिरंगे झंडे के तीन रंगों से बना था। रेकॉर्ड पर गांधीजी के हस्ताक्षर भी थे अंग्रेजी में। रेकॉर्ड के विवरण सुनहरे अक्षरों में थे।
– कोलंबिया कंपनी ने लक्ष्य रखा था कि वह उस रेकॉर्ड की दस लाख प्रतियां बेचेगी। भारत में जब वह रेकॉर्ड रिलीज हुआ, तो उसे हाथों-हाथ लिया गया। एक रेकॉर्ड की कीमत भारत में चार रुपये रखी गई थी।
रेकॉर्ड अधिक-से-अधिक बिके इसके लिए कोलंबिया कंपनी ने एक ऑफर दिया था कि हर बिके रेकॉर्ड के लिए आठ आने कंपनी की तरफ से कांग्रेस या उस संस्था को दिया जाएगा, जिसके लिए गांधीजी की सहमति होगी। गांधीजी ने कांग्रेस की एक सहवर्ती संस्था- अखिल भारतीय बुनकर संघ को उस रॉयल्टी का भुगतान करने की सलाह दी। यदि दस लाख रेकॉर्ड बिकते, तो अखिल भारतीय बुनकर संघ को प्रति रेकॉर्ड आठ आने के हिसाब से पांच लाख रुपये मिलते। 1931 में पांच लाख रुपये बहुत होते थे।
गिरफ्तार हुए गांधी
इस बीच दूसरे राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस की विफलता के बाद गांधी 28 दिसंबर, 1931 को भारत लौटे, तो एक हफ्ते बाद ही उनको गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन तेज कर दिया और ब्रिटिश हुकूमत ने कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया। तब की भारत सरकार और इंग्लैंड-स्थित इंडिया ऑफिस ने कांग्रेस को हर तरह से कमजोर करने के लिए कठोर कदम उठाने शुरू कर दिए। कांग्रेस के पास किसी भी स्रोत से फंड न आए, उसके लिए हर संभव प्रयास किए जाने लगे। ऐसे में सरकार गांधीजी के रेकॉर्ड की रॉयल्टी कांग्रेस की किसी संस्था तक कैसे पहुंचने दे सकती थी। इन बदले हालात का असर कई रूपों में देखने को मिला:
– कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी ने अब भारत सरकार से यह पूछना बेहतर समझा कि वह बुनकर संघ को गांधी के रेकॉर्ड की रॉयल्टी की राशि दे या न दे।
– वायसराय के ऑफिस से लेकर गृह मंत्रालय, विदेश एवं राजनीति मंत्रालय, सीआईडी, पुलिस, इंग्लैंड-स्थित इंडिया ऑफिस- सबने अपना सारा ज्ञान लगा दिया इस बात में कि किस तरह रॉयल्टी का भुगतान बुनकर संघ को न हो सके।
– उस समय इंटेलिजेस ब्यूरो के डायरेक्टर एच. विलियमसन ने 20 जनवरी, 1932 को तो गांधी के भाषण के सभी कोलंबिया रेकॉर्ड्स को सी कस्टम्स एक्ट के तहत जब्त कर लेने का सुझाव दिया था।
– 21 जनवरी, 1932 को वायसराय के कार्यालय से इंग्लैंड के इंडिया ऑफिस को एक टेलीग्राम भेजा गया, जिसमें यह आग्रह किया गया था कि जब तक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलता है, तब तक कोलंबिया कंपनी को ये निर्देश दिया जाए कि वह कोई भी भुगतान बुनकर संघ को न करे। इस बीच पूरी ब्रिटिश हुकूमत कांग्रेस और उसकी सहवर्ती संस्थाओं को सब तरह से परेशान करते रहे।
दुनिया में धूम मची थी
एक तरफ भारत में ब्रिटिश हुकूमत इस रेकॉर्ड को लेकर ऊहापोह में थी, तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया में वह रेकॉर्ड धूम मचा रहा था। मार्च, 1932 के अंक में अमेरिका से निकलने वाली ‘डिस्क’ पत्रिका ने महात्मा गांधी के उस रेकॉर्ड की खूब तारीफ की और कहा कि यह रेकॉर्ड गांधीजी की उस काबिलियत की तस्दीक करता है कि क्यों सारी दुनिया उनकी आवाज़ से आंदोलित हो उठती है। सचमुच, गांधीजी ने अपने चमत्कारी स्पर्श से साधारण-सी दिखने वाली चीजों को भी ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक चुनौती बना दिया- चाहे वह चरखा हो या ग्रामोफोन रेकॉर्ड।
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