यह है सीओपीडी रोग
क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों का ऐसा रोग है, जिसमें मरीज सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता। फेफड़े बहुत स्पॉन्जी होते हैं। जब हम सांस के जरिए हवा अंदर लेते हैं तो ऑक्सीजन हमारे खून के अंदर मिल जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर चली जाती है, लेकिन सीओपीडी रोग इस प्रक्रिया को रोकता है। किसी भी कारण से इस प्रक्रिया में अवरोध आ जाता है तो सीओपीडी के मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। ऑक्सीजन उसके शरीर में पूरी मात्रा में नहीं पहुंच पाती है। चिकित्सकों के अनुसार एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में करीब 13 से 16 बार सांस लेता है। जबकि सीओपीडी रोगी का सांस लेने की प्रक्रिया मार्ग अवरुद्ध होने के कारण एक मिनट में करीब 30 बार तक सांस लेनी पड़ती है।
नवजात भी हो रहे शिकार
पहले इस बीमारी की चपेट में अमूमन वे लोग आते थे जो सिगरेट पीते थे और जिनकी उम्र 40 से 45 वर्ष से ऊपर है। लेकिन अब यह बीमारी 18 और 20 वर्ष की उम्र के बाद से भी देखी जा रही है। कई बार तो जन्म के फौरन बाद बच्चे की इसकी चपेट में आ जाते हैं। जिन्हें अस्पतालों में कृत्रिम तरीके से ऑक्सीजन उपलब्ध करवाई जाती है। गंभीर होने पर संबंधित को वेंटीलेटर पर लेना पड़ता है। जिससे उसकी जान बचाई जा सके।
दमा से घातक
सांस की यह बीमारी को दमा रोग से ज्यादा घातक है। सीओपीडी के कारण फेफड़े के अंदर की नलियां सिकुड़ जाती हैं, जिसकी वजह से हवा ठीक तरह से फेफड़ों से बाहर नहीं निकल पाती। सीओपीडी का स्पेयरोमेटरी मशीन से लगाया जा सकता है। सीओपीडी पेशेंट में लंग्स में दबाव के कारण रक्त का संचार कम हो जाता है। ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगती है।
डॉ. मुकेश वर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, कल्याण अस्पताल
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