छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और आंध्र प्रदेश में भी यहां की झाड़ू की काफी डिमांड है. यही वजह है कि पिछले एक साल में एक करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार यहां के लोगों ने कर लिया है. इस व्यवसाय से करीब 130 परिवार जुड़े हुए हैं. आदिवासियों के इस स्टार्टअप को वन विभाग ने मदद की.
छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ वैसे तो नक्सलियों के गढ़ के नाम से पूरे प्रदेश में जाना जाता है. वहीं अब इसकी पहचान देशभर में यहां के वनवासियों के द्वारा तैयार की जाने वाली झाड़ू से हो रही है. छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और आंध्र प्रदेश में भी यहां की झाड़ू की काफी डिमांड है. यही वजह है कि पिछले एक साल में एक करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार यहां के लोगों ने कर लिया है. इस व्यवसाय से करीब 130 परिवार जुड़े हुए हैं. आदिवासियों के इस स्टार्टअप को वन विभाग ने मदद की.
इसके बाद आदिवासियों से करीब 1500 क्विंटल झाड़ू खरीदा गया. दरअसल, अबूझमाड़ में रहने वाले वनवासियों ने यहां की विशेष घांस टिलगुम को पहचाना, जो झाड़ू बनाने में काम आती है. ओरछा इलाके में नदी के पार के गांव हितुलवाड़ा की महिलाओं ने इसी घांस से घर पर झाड़ू बनाने का काम शुरू किया. आज आलम यह है कि अबूझमाड़ की झाड़ू दिल्ली के मुख्य बाजारों में भी बिक रही है. लोगों को भी मार्केट में अबूझमाड़ के इन झाड़ूओं का इंतजार रहता है.
देशभर में बढ़ रही इन झाड़ूओं की डिमांड
नारायणपुर कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी ने बताया कि झाड़ू का प्रचार छत्तीसगढ़ में बढ़ने लगा तो अबूझमाड़ के महिलाओं ने स्व सहायता समूह के माध्यम से इसे बढ़ाने का काम अपने हाथ में लिया और इसमें सुधार किया. कुछ ही महीने पहले इन झाड़ूओं की बिक्री के लिए केंद्र की संस्थान ट्रायफेड से एमओयू भी किया गया. पहला एमओयू 20 लाख रुपये का हुआ और ट्रायफेड ने झाड़ू को देश की राजधानी दिल्ली के बाजार में उपलब्ध करवा दिया. वर्तमान में भी दिल्ली में झाड़ू बिक रहे हैं. इसके अलावा कोलकाता, महाराष्ट्र के नागपुर समेत आंध्र प्रदेश के हैदराबाद और ओडिशा में भी अबूझमाड़ के झाड़ू सप्लाई हो रहे हैं.
अबतक 80 लाख का किया कारोबार
महिलाओं ने बताया कि अबूझमाड़ इलाके में टिलगुम घांस को पहाड़ी घांस कहते हैं. यहां यह प्राकृतिक तौर पर ही मिलती है. इस पहाड़ी घांस से पहले भी झाड़ू बनते थे लेकिन इन्हें बेचने के लिए बाजार नहीं मिला था. शुरुआत में महिलाओं ने अपने घरों में इस्तेमाल करने के लिए झाड़ू बनाया और इसके बाद वन विभाग के माध्यम से उन्हें पहले लोकल बाजारो में बिक्री करने का मौका मिला. जिस तरह से झाड़ूओं की डिमांड बढ़ने लगी धीरे-धीरे वन विभाग ने महिलाओं से झाड़ू क्रय करने का काम शुरू किया और करीब 1500 क्विंटल झाड़ू खरीदे.
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