– सात दशक बाद भारतभूमि पर जन्म लेंगे नन्हें चीते, कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाई गई मादा चीता आशा गर्भवती, पीएम मोदी ने दिया था नाम
– मादा चीता की देखरेख कूनो प्रबंधन के लिए होगा चुनौती
ग्वालियर.नईदुनिया प्रतिनिधि। जिस मादा चीता को पीएम मोदी ने आशा नाम दिया था उसने प्रोजेक्ट की सफलता की पहली उम्मीद बंंधा दी है। खुशखबरी यह है कि आशा ‘उम्मीद” से है। सबकुछ ‘आशा”नुरूप रहा तो नये साल की शुरूआत में कूनो नेशनल पार्क में नन्हे चीतों की मधुर पुकार सुनाई दे सकती है। चीतों की देखरेख कर रही टीम के अधिकारियों के अनुसार आशा में वह सभी प्रकार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, जो गर्भवती मादा चीता में होते हैं। नामीबिया से चीतों को भारत लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चीता कन्जर्वेशन फंड की प्रमुख लौरी मार्कर ने भी इसी प्रकार के संकेत दिए हैं। मार्कर के अनुसार चूंकि साढ़े तीन साल की आशा नामीबिया में प्राकृतिक जंगली वातावरण में रह रही थी इसलिए उसका गर्भाधान नामीबिया में ही हुआ है। यह भारत के लिए दोहरा उपहार जैसा है।
सात दशक बाद 17 सितंबर को नामीबिया से भारत भूमि पर लाए गए आठ चीतों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 72 वें जन्मदिवस के मौके पर कूनो नेशनल पार्क के क्वारंटाइन बाड़ों में छोड़ा था। इसमें तीन नर और पांच मादा चीता शामिल थीं। फिलहाल क्वारंटाइन बाड़ों में छोड़े गए इन चीतों के खानपान, व्यवहार और स्वास्थ्य को लेकर कड़ी निगरानी की जा रही है। डब्ल्यूआइआइ देहरादून और मप्र वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि चीतों की निगरानी कर रही टीम आशा में गर्भवती के लक्षण दिखाई दिए हैं लेकिन इसकी पुष्टि कुछ सप्ताह का इंतजार करना होगा।
आशा में दिखाई दिए हैं कई बदलाव
मादा चीता की निगरानी कर रही टीम के अनुसार आशा में कई प्रकार के शारीरिक, व्यवहारिक और हार्मोनल बदलाव दिखाई दे रहे हैं। यह बदलाव वैसे ही हैं जैसे गर्भवती मादा चीता में होते हैं। यह बदलाव देखकर टीम काफी उत्साहित है और आशा के स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क भी हो गई है। क्योंकि चीता विशेषज्ञ लौरी मार्कर के अनुसार गर्भधारण के बाद मादा को पूर्ण रूप से शांत माहौल की जरूरत होगी। उसके आसपास लोगों का जाना प्रतिबंधित करना होगा जिससे उसका तनाव कम हो और वह अच्छे से चीतों को जन्म दे सके।
चिंता इसलिए
विशेषज्ञों के अनुसार चीता के शावकों की मृत्यु दर सर्वाधिक (90 प्रतिशत) होती है। जन्म के बाद महज 10 प्रतिशत शावक ही सर्वाइव कर पाते है। जन्म के समय, शावकों का वजन 240 ग्राम से 425 ग्राम तक होता है और वे देख नहीं पाते। शावकों के लिए यह सबसे मुश्किल दौर होता है। मादा चीता शावकों का करीब डेढ़ साल तक देखभाल करती है। इसके बाद शावक अपनी मां का पीछा करना शुरू कर देते हैं। जब वह शिकार की तलाश में होती है। हालांकि, कुछ महीनों के दौरान वह दूर या तेज नहीं चल सकते।
इसलिए नाम रखा था आशा
नामीबिया से चीतों से आई टीम के सदस्यों ने पीएम मोदी को बताया था कि आशा को करीब एक साल पहले नया जीवनदान मिला है। नामीबिया के हवाई अड्डे के रनवे पर यह एक विमान से टकरा कर गई। यह सुनकर ही मोदी ने इस चीता का नाम आशा रखा था।
Posted By: anil tomar
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